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जानें नटखट कान्हा के जन्म महोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा का सही विधि विधान

जानें नटखट कान्हा के जन्म महोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा का सही विधि विधान

आज श्रीकृष्ण भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में आस्था के केंद्र बने हुए हैं। वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा। कभी गोपियों का चैन चुराते छलिया दिखते हैं तो कभी अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हुए नजर आते हैं। श्रीकृष्ण के रूप अनेक हैं और वह हर रूप में संपूर्ण हैं। जन्माष्टमी भारत में ही नहीं, विदेशों के भी घरों- मंदिरों में पूरी आस्था व उल्लास से मनाई जाती है। गोकुल, नन्दगांव और वृन्दावन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की सबसे ज्यादा धूम होती है। ब्रजमंडल में इस दिन मंगल ध्वनि बजाई जाती है और नन्द के आनंद भयो – जय कन्हैया लाल की जैसे जयघोष गूंजते रहते हैं।

अर्जुन को दिया गीता का संदेश

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वे भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया। उन्होंने कालिया नाग के फन पर नृत्य किया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाए। समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियां सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया। अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवाई। सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए गरीब सुदामा की पोटली के कच्चे चावल खाये और बदले में उन्हें राज्य दिया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव विशेष रूप से वृन्दावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गुरुवयूर (केरल), उडृपी (कर्नाटक) तथा इस्कॉन मन्दिरों में आयोजित किया जाता है।

जन्माष्टमी पूजा का विधि विधान

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इस दिन सभी स्त्री-पुरुष नदी में तिल मिलाकर नहाते हैं। पंचामृत से भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। लडडू गोपाल या राधा-कृष्ण की तस्वीर को सुन्दर वस्त्रों व आभूषणों से सजाकर पूजाघर में पूर्व दिशा की ओर आम लकड़ी के सिंहासन पर, लाल वस्त्र बिछाकर या झूले पर स्थापित करना चाहिए। इसके बाद विधि पूर्वक नंदलाल की धूप-दीप पुष्पादि से पूजा करनी चाहिए। आरती उतारनी चाहिए और अंत में माखन-मिश्री आदि का भोग लगाना चाहिए। जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत रखा जाता है और दिन भर तरह-तरह के व्यंजन और पकवान बनाये जाते हैं। रात को बारह बजे खीरा चीरकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कराने के बाद ही पंचामृत या फलाहार ग्रहण किया जाता है।

जन्माष्टमी व्रत विधान

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जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भक्तों को दिन भर उपवास यानि व्रत किया जाना चाहिए। इस व्रत में फलाहार के साथ कुछ अन्य वस्तुओं का भी प्रयोग किया जा सकता है , जैसे दूध, दही, माखन, मावे आदि। इस दिन विशेष रूप से कुछ मीठा बनाने की परंपरा है। 

मंदिरों में होता है भव्य आयोजन

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श्रीकृष्ण जन्म स्थान के अलावा द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं, जिनमें भारी भीड़ होती है। पूरी मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से जगमगा उठती है। श्रीकृष्ण की शोभायात्रा यानी सवारी निकाली जाती है। जन्माष्टमी के मौके पर कान्हा की रासलीलाओं को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से मथुरा पहुंचते हैं। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है।

जन्माष्टमी का खास आकर्षण दही हांडी समारोह

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जन्माष्टमी के दिन देश में कई स्थानों पर दही हांडी समारोह का भी आयोजन किया जाता है। सामान्यतया महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में मनाये जाने वाले इस समारोह को लेकर विशेष रूप से युवाओं में बहुत जोश होता है। इस समारोह में एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन, शहद, फल आदि रख दिए जाते हैं। इस दही हांडी को धरती से 30-40 फुट ऊपर टांग दिया जाता है। इस दही हांडी को फोड़ने की कोशिश करने वाली टोलियों के युवाओं को गोविंदा कहा जाता है। दही हांडी को फोड़ने के लिए अनेक कंपनियां और संस्थाएं-संगठन लाखों के इनाम की घोषणा करते हैं। दही हांडी फोड़ने के लिए युवाओं की टोलियां एक-दूसरे के कन्धे पर चढ़कर पिरामिड सा बना लेते हैं। पिरामिड में सबसे ऊपर चढ़ने वाला व्यक्ति दही हांडी को तोड़ देता है।

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30 Aug 2018
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