बिना सांस लिए जीवित रहना किसी के लिए संभव नहीं है। चाहे नाक बंद हो, फ्लू हो या फिर अस्थमा हो, हमारी सांस की नली या श्वसन तंत्र में कोई परेशानी हो, हमें चैन नहीं लेने देती। अस्थमा में हमारी सांस लेने वाली नली में सूजन आ जाती है और यह जकड़ कर पस से भर जाती है। इससे हमें सांस लेने में परेशानी होने लगती है। परिणामस्वरूप हम छोटी- छोटी और तेज- तेज सांस लेने लगते हैं।
आयुर्वेद में अस्थमा को तमक रोग कहा जाता है और यह किसी भी उम्र और लाइफस्टाइल वाले व्यक्ति को भी हो सकता है। जीवा आयुर्वेद के डायरेक्टर डॉ. प्रताप चौहान कहते हैं कि अस्थमा बच्चों में भी उतना ही कॉमन है जितना कि बुजुर्गों में। आयुर्वेद का मानना है कि इसमें कफ बढ़ने से श्वसन नली यानि वात (वायु) अवरुद्ध होने लगती है। इसके बाद यही वात पूरे शरीर में फैलकर पूरे श्वसन तंत्र को अपनी चपेट में ले लेती है। यही अस्थमा कहलाता है, एक ऐसी बीमारी जो रोगी के लिए भी खासी परेशान करने वाली होती है। आयुर्वेद में सांस की इस बीमारी के 5 प्रकार बताए गए हैं जिन्हें खासतौर पर इनके लक्षणों और रोगी के दोषों को देखकर पहचाना जा सकता है। आइये, इन 5 तरह के अस्थमा रोग के बारे में जानें -
इसमें ज्यादा भारी भोजन करने या फिर तनाव में काम करने से हल्की और कुछ देर के लिए सांस में रुकावट महसूस होती है, जिसे शूद्रा श्वांस कहा जाता है। इस बीमारी के अनेक लक्षण हैं और ज्यादातर मामलों में कुछ घंटों के लिए आराम करने से इन लक्षणों से मुक्ति और बीमारी से राहत मिल जाती है।
आयुर्वेद में तमक श्वांस को ब्रॉन्कियल अस्थमा के बराबर माना जाता है और यह श्वसंन तंत्र की एक गंभीर बीमारी की ओर इशारा करता है। अस्थमा का एक गंभीर अटैक जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। रोगी के लिए अटैक के दौरान सांस लेना बेहद मुश्किल होता है और ऐसे में उसकी आंखें पलट जाती हैं। जब तक रोगी सारा बलगम न निकाल दे, राहत मिलना मुश्किल होता है। आयुर्वेद में वर्णित सांस संबंधी सभी बीमारियों में इसे सबसे ज्यादा चिंताजनक माना जाता है।
यह श्वसन तंत्र की वह बीमारी है जिसमें रोगी सांस लेने में सामान्यतया परेशानी महसूस करते हैं। इसमें सांस निकालना तो आसान होता है लेकिन सांस लेते वक्त ज्यादा वक्त लगता है। मरीज को बेचैनी, घबराहट और घुटन का अनुभव होता है। इससे मरीज डरा हुआ और कभी इधर तो कभी उधर देखता रहता है, जैसे मदद चाहता हो। अस्थमा अटैक के कुछ खास मामलों में मरीज कभी- कभी बेहोश भी हो जाता है।
महान श्वांस रोगी को काफी परेशान करने वाली बीमारी है जिसमें सांस लेने के साथ कुछ घर्र-घर्र की आवाज आती है। रोगी बहुत कोशिश करने के वावजूद सांस लेने में असमर्थ रहता है। यहां तक कि बातचीत करना भी मुश्किल हो जाता है और कुछ मामलों में बेहोशी भी आ सकती है। ज्यादा परेशानी की अवस्था में मौत तक हो सकती है।
यह वह स्थिति है जिसमें रोगी को सांस लेने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। इसमें चेहरे पर सूजन भी देखी जाती है। थकान, नर्वसनेस और आंखों में लाली भी इसके खास लक्षण हैं। सांस न ले पाने के कारण बेहोशी भी हो सकती है।
अस्थमा का अटैक होने के बहुत से जाने- पहचाने कारण होते हैं, लेकिन आजकल एक बड़ी वजह इसमें और भी बढ़ोतरी कर रही है और वह हमारा प्रदूषित हवा में सांस लेना। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, वह साफ और शुद्ध नहीं है, इसमें बहुत से पॉल्युटेंट होते है जो हमारी सांस की नलिका में जाकर बलगम पैदा करते हैं और पूरे श्वसंन तंत्र को अवरुद्ध कर देते हैं। इस बलगम की वजह से सांस लेने में परेशानी होने लगती है। इसके अलावा भी अस्थमा अटैक से जुड़े बहुत से कारण और कारक होते हैं, जैसे -
अस्थमा अटैक से बचने के लिए रोगी को छोटे- छोटे लक्षणों का भी ध्यान रखना चाहिए और ध्यान से जरूरी कदम उठाने चाहिए। अस्थमा संबंधित कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। अस्थमा अटैक के ज्यादातर मामलों में इमरजेंसी सर्विसेज़ की जरूरत पड़ती है। अस्थमा के रोगियों के परिजनों के लिए सलाह है कि वे अपने पास हमेशा इमरजेंसी नंबर रखें। अस्थमा अटैक से पहले होने वाले कुछ कॉमन लक्षणों में सीने में जकड़न और घुटन महसूस होने के साथ छोटी- छोटी सांसे लेना शामिल हैं।
आयुर्वेद इलाज की मदद से अस्थमा को अच्छी तरह से मैनेज किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर से पूरा इलाज करना जरूरी है। यहां कुछ ऐसे टिप्स दिये जा रहे हैं, जिनकी मदद से आप इस बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं।
(जीवा आयुर्वेद के डायरेक्टर डॉ. प्रताप चौहान से बातचीत पर आधारित)
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