दीपिका पादुकोण (Deepika Padukone) व रणवीर सिंह (Ranveer Singh) 14- 15 नवंबर को इटली के लेक कोमो में शादी के बंधन में बंध चुके हैं। बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस दीपिका एक कोंकणी (Konkani) ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती हैं तो वहीं रणवीर सिंह भवनानी का परिवार सिंधी (Sindhi) समुदाय का है। इसी वजह से दीपवीर (DeepVeer) के परिवारों ने तय किया कि इन दोनों की शादी दोनों रिवाजों (कोंकणी व सिंधी) से संपन्न करवाई जाए।
दीपवीर – वायरल हुई दीपिका पादुकोण- रणवीर सिंह की शादी की पहली तस्वीर
अब जब फैन्स को लंबा इंतज़ार करवाने के बाद दीपवीर (DeepVeer) यानि कि दीपिका पादुकोण (Deepika Padukokne) और रणवीर सिंह अपनी शादी की पहली तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर कर ही चुके हैं तो हम आपको सिंधी व कोंकणी रीति- रिवाज से हुई इन शादियों की ख़ासियत बताने जा रहे हैं।
मस्ती और संस्कृति से भरपूर कोंकणी शादी
कोंकणी शादी में काले चने का महत्व
उडिदु यानि कि काले चने को कोंकणी समाज का प्रमुख आहार माना जाता है। कोंकणी संस्कृति में काले चने को बेहद शुभ माना जाता है।
फिल्मों से ज्यादा अपनी शादी में मस्त दिखी मस्तानी दुल्हन दीपिका पादुकोण
कोंकणी शादी में काले चने के द्वारा दूल्हा व दुल्हन को उनके भावी जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण सीख भी दी जाती है। दरअसल, इस रस्म में दुल्हन को चक्की पर काला चना पीसना होता है। फिर दूल्हा भी प्रतीकात्मक तौर पर यही रस्म दोहराता है, जिसका मतलब होता है कि कभी पत्नी के बीमार पड़ जाने पर पति को उसकी सहायता करनी चाहिए। उसके बाद परिजन काले चने से बनी इडली खाते हैं।
शादी से पहले काशी यात्रा
हर शादी में कुछ मस्ती- मज़ाक की रस्में भी रखी जाती हैं, जिससे कि दोनों परिवार एक- दूसरे के करीब आ सकें। कोंकणी शादी में भी एक ऐसी ही रस्म है, जिसमें दूल्हा मज़ाक में काशी यात्रा पर निकलता है।
दीपवीर – शादी से पहले देखें संगीत का रॉयल जश्न
इस रस्म में दूल्हा दिखावा करता है कि वह शादी की रस्मों से थककर काशी यात्रा पर जा रहा है। उसके बाद दुल्हन के पापा दूल्हे से आग्रह करते हैं कि वह उनकी बेटी से शादी कर ले और कुछ उपहार देकर उसे मना लेते हैं। फिर दूल्हा मान जाता है और मंडप पूजा की तैयारी शुरू कर देता है।
वरमाला से कन्यादान तक
दूल्हन की मां पूजा के लिए दुल्हन को लेकर मंडप में आती हैं और उसके गले में मनके की माला पहनाती हैं। फिर दुल्हन को वापस भेज दिया जाता है। फिर वरमाला के लिए दुल्हन के मामा उसे गोद में उठाकर मंडप तक लाते हैं। फिर दूल्हे और दुल्हन के बीच में पर्दे को पकड़कर श्लोक पढ़े जाते हैं। पर्दा हटाने के बाद दूल्हा- दुल्हन एक- दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। कन्यादान की रस्म में दुल्हन के पिता, अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में सौंपते हैं और दुल्हन की मां दोनों के हाथों पर दूध डालती हैं। मंत्रोच्चार के बीच इस रस्म को पूरा किया जाता है।
कस्थली रस्म में फेरे हैं खास
दोनों परिवारों की मौजूदगी में दूल्हा, दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाता है। दुल्हन की मां हवन के लिए सामग्री लाती हैं और दुल्हन के मायके पक्ष के सभी लोग अपनी उम्र के हिसाब से एक क्रम में खड़े हो जाते हैं। दूल्हा- दुल्हन घर के सबसे छोटे सदस्य के हाथों से लाई लेकर हवन कुंड में डालते हैं, इस प्रक्रिया को 5 बार दोहराया जाता है। फिर दूल्हा दुल्हन को उसके अंगूठे से पकड़ता है और दोनों कुंड के 4 फेरे लेते हैं। दो फेरों में दूल्हा आगे रहता है तो दो में दुल्हन। फिर मामा दूल्हन के अंगूठे में चांदी की बिछिया पहनाकर रस्म को पूरा करते हैं।
सात प्रतिज्ञाओं से जुड़ी सप्तपदी की रस्म
फेरों के बाद दूल्हा- दुल्हन के बीच चावल के 7 ढेर रखे जाते हैं और दुल्हन उन पर कदम रखते हुए आगे बढ़ती है। इस रस्म को सात प्रतिज्ञाओं का प्रतीक माना गया है। फिर दुल्हन शादी की साड़ी पहन लेती है और उसकी अर्द्धचंद्र बिंदी को पूर्णचंद्र बना दिया जाता है, जो उसके शादीशुदा होने की निशानी है। तब दुल्हन की सास उसे उपहार में नारियल, फूल- कुमकुम और ब्लाउज़ का कपड़ा देती हैं। शादी की आखिरी रस्म (वर उभर्चे) में दुल्हन के मामा- मामी जोड़े को मंडप से ले जाते हैं। फिर दुल्हन ज़मीन पर बैठ जाती है और दूल्हा उसके पल्लू पर बैठकर उस पर एक सोने का सिक्का बांधता है। इसका मतलब है कि पति अपनी पत्नी को अपनी इनकम का ख्याल रखने देगा।
कोंकणी रिवाज से की गई शादी में लगभग 4- 5 घंटे का समय लगता है।
सिंधी विवाह : ‘आनंद कारज’ के लिए हर मुहूर्त है शुभ
गुरु पर हो आस्था
आनंद कारज को हिन्दू धर्म के विवाह से काफी अलग माना जाता है। दिन में होने वाली इस रस्म के लिए मुहूर्त, लग्न और जन्म कुंडली मिलाना ज़रूरी नहीं होता है। सिख धर्म में जो लोग अपने गुरु पर पूरी आस्था रखते हैं, उनके लिए हर दिन शुभ होता है और वही आनंद कारज करते हैं। आनंद कारज में गुरुग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है और इस दौरान सभी परिजनों के सिर पर पगड़ी या सरापा होता है।
ताकि शुभ हो सब कुछ
शादी की सुबह नवग्रही पूजा की जाती है। इसमें पुजारी विभिन्न देवी- देवताओं और नौ ग्रहों की पूजा करवाते हैं। यह पूजा ग्रह- नक्षत्र को शुभ बनाने के लिए की जाती है, जिससे कि शादी में कोई विघ्न न पहुंचे और शादीशुदा जीवन में भी कोई समस्याएं न हों। दूल्हा और दुल्हन के घरों में हल्दी की पूजा भी की जाती है। इसमें उनके बालों में तेल लगाकर शरीर पर हल्दी का उबटन लगाने के बाद स्नान करवाया जाता है।
घरी पूजन, खीरम सत और पीर वारी
घरी पूजन में पंडित जी दूल्हा और दुल्हन के घरों में अलग- अलग पूजा करवाते हैं। इस पूजा में दोनों के हाथों में आटा भरा जाता है, जिससे उनके दांपत्य जीवन के समृद्ध और परिपूर्ण रहने की कामना की जाती है। खीरम सत रिवाज में कच्चे दूध से आराध्य की पूजा की जाती है और फिर उसे प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है। पीर वारी की रस्म में दुल्हन के परिजन दूल्हे की लंबाई को एक धागे से मापने के बाद सिरे पर गांठ बांध देते हैं। वहीं, गारो धागो में दूल्हा- दुल्हन की कलाई पर लाल धागा बांधा जाता है।
सागरी में दुल्हन का श्रृंगार, शरारत भरी है सांथ प्रथा
इस रस्म में दूल्हे के परिवार की महिलाएं दुल्हन को फूलों से बने आभूषण पहनाती हैं, फिर दूल्हे के परिवार से दुल्हन का परिचय करवाया जाता है। इसके बाद दुल्हन को गिफ्ट दिए जाते हैं। हर शादी की तरह सिंधी शादी में भी एक मस्ती वाली रस्म को शामिल किया गया है। इस रस्म में दूल्हे के दोस्त उसके बालों में तेल लगाते हैं, फिर दूल्हे के दाएं पैर में जूता पहनाकर उसे मिट्टी के एक मटके को फोड़ने के लिए कहा जाता है। मटका फूटने के बाद दूल्हे के दोस्त और भाई उसके कपड़े फाड़ देते हैं।
3 बार होती है वरमाला
बारात के पहुंचने पर दुल्हन के घरवाले सभी बारातियों का स्वागत करते हैं और फिर वरमाला की रस्म संपन्न करवाई जाती है। सिंधी रिवाज में वरमाला की रस्म तीन बार होती है। फिर पल्ली- पल्लो रस्म में दुल्हन के दुपट्टे के एक कोने को दूल्हे की शेरवानी के दुपट्टे से बांध दिया जाता है। इस गांठ में चावल भी भरे जाते हैं। अगली रस्म, हथिलो में दूल्हे और दुल्हन के दाएं हाथ को एक लाल रंग के कपड़े से बांध दिया जाता है और फिर दोनों मिलकर खुशहाल शादीशुदा जीवन के लिए प्रार्थना करते हैं।
कन्यादान के बाद 4 फेरे
दुल्हन के पिता अपनी बेटी को आधिकारिक तौर पर दूल्हे को सौंप देते हैं और अपनी बेटी को हमेशा खुश रखने का आग्रह करते हैं। इस रस्म में जोड़े के हाथों पर जल भी डाला जाता है। सिंधी शादी में 7 के बजाय 4 फेरे लिए जाते हैं, जिनमें पहले 3 फेरों में दुल्हन और आखिरी फेरे में दूल्हा आगे रहता है। मंत्रोच्चार के साथ पवित्र अग्नि में होम कर पूजा की जाती है, जिसके बाद पुजारी फेरों को संपन्न करवाता है। हर फेरे के बाद पुजारी वर- वधू को प्रतिज्ञाएं दिलवाते हैं।
हमेशा साथ रहने का वादा
सिंधी रिवाज में भी सप्तपदी की रस्म होती है। इसमें दूल्हा व दुल्हन के सामने चावल के बने 7 ढेर रखे जाते हैं। दुल्हन को उन पर चलना होता है, जिसमें दूल्हा उसकी मदद करता है। इस रस्म में चावल के ढेर भविष्य में आने वाली चुनौतियों का प्रतीक होते हैं। चावल के ढेर पर साथ चलने का मतलब है कि वर- वधू हमेशा साथ रहेंगे और इसके साथ ही वे अपने जीवन के नए पड़ाव की शुरुआत करते हैं।
दीपवीर (DeepVeer) की शादी इन दोनों रस्मोरिवाज से संपन्न हुई है। 15 नवंबर को हुई सिंधी शादी के लिए लेक कोमो में ही अस्थाई गुरुद्वारा बनवाया गया था।
दीपिका पादुकोण व रणवीर सिंह को बधाई!
ये भी पढ़ें –
प्राइवेट वेडिंग के बाद दीपवीर को बॉलीवुड से मिलीं बधाइयां
दीपवीर – बेहद खास है रणवीर और दीपिका की शादी का मेन्यू
दुल्हन की तरह सजाया गया दीपिका का ससुराल
दीपवीर वेडिंग से जुड़ी हर जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।