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वेश्यालय की मिट्टी से क्यों बनाई जाती है मां दुर्गा की मूर्ति, जानिए इससे जुड़ी मान्यता

वेश्यालय की मिट्टी से क्यों बनाई जाती है मां दुर्गा की मूर्ति, जानिए इससे जुड़ी मान्यता

जहां उत्तर और पूर्व भारत में नवरात्रि नौ दिनों का त्योहार होता है वहीं पश्चिम बंगाल में आठवें व नवें दिन मां दुर्गा की बड़ी धूम-धाम से पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा (Durga Puja Facts) पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। साथ ही दुर्गा पूजा के दौरान देवी मां की भव्य प्रतिमाएं भी बनाई जाती है। नौ दिन तक चलने वाले शारदीय नवारात्रि के महापर्व में देवी पूजन के साथ कई सारी प्राचीन मान्यताएं और लोक परम्पराएं भी जुड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक मान्यता जुड़ी हैं मां दुर्गा की मूर्ति में इस्तेमाल की जाने वाली पुन्य मिट्टी (Punya Mati) से। 
ये बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए जिस मिट्टी का इस्तेमाल होता है वो वेश्यालय के आंगन यानि कि रेड लाइट एरिया से लाई जाती है। फिल्म ‘देवदास’ में भी आपने एक सीन देखा होगा कि पारो बनी ऐश्वर्या राय चंद्रमुखी बनीं माधुरी दीक्षित, जो कि एक वेश्या होती हैं, उनके आंगन से दुर्गा पूजा के लिए मिट्टी लाने जाती है। लेकिन असल में मूर्तिकार के पुरोहित या फिर कुमार डोली के लोग वेश्यालय की मिट्टी ला कर मां दुर्गा की मूर्ति बनाई जाने वाली मिट्टी में लाकर मिलाते हैं।  हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मां दुर्गा की पूजा के लिए जो मूर्ति बनती है वो चार चीजों से निर्मित होती है। इनमें पहली गंगा तट की मिट्टी, दूसरी गौमूत्र, तीसरा गोबर और चौथी वेश्यालय की मिट्टी होती है। ये परम्परा दशकों से चला आ रही है। 
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इस परंपरा का क्या है उद्देश्य

हर किसी से मन में यही सवाल उठता है कि पूरी दुनिया में वेश्यों को नीचा समझा जाता है, तो मां दुर्गा की मूर्ति को बनाने में अपवित्र स्थान की मिट्टी का प्रयोग ही क्यों किया जाता है? तो आपको बता दें कि हमारे समाज में वेश्याओं को सामाजिक रूप से काट दिया जाता है, लेकिन इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने का एक जरिया है। क्योंकि आदि शक्ति मां दुर्गा के आंचल से पावन कोई स्थान नहीं है और जहां कि मिट्टी उनके शरीर पर लगी हो वो जगह और वहा के लोग कैसे अपवित्र हो सकती है।
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इस परम्परा के पीछे क्या है मान्याता

वेश्यालय की मिट्टी से दुर्गा मूर्ति बनाने की परम्परा के पीछे एक नहीं बल्कि कई मान्यताएं जुड़ी हैं। ऐसा माना जाता है कि पहले मंदिर के पुजारी वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से अपने आंगन की मिट्टी मांगते थें और उसी मिट्टी से मंदिर के लिए मूर्ति बनाई जाती रही है। बाद में नवरात्रि पूजने के लिए बनाई जाने वाली मूर्तियों के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाने लगा। जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर रह जाती है, इसका अर्थ यह हुआ कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई, इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है।
वहीं अन्य किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन काल में एक वेश्या मां दुर्गा की अन्नय भक्त थी। उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं भक्तों को आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई। साथ ही उसे वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा। तब से ये परंपरा चली आ रही है। बिना वेश्यालय की मिट्टी के मां की मूर्ति को अधूरा माना जाता है।
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17 Oct 2020

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