रामायण में कहा गया है कि जिस प्रकार ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण का स्मरण किया जाना फलदाई है, उसी प्रकार रामचरितमानस का स्मरण भी वंदनीय माना गया है। वाल्मीकि रामायण के बाद गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस अधिक प्रचलित माना जाती है। तुलसीदास द्वारा रचित चौपाईयां और दोहों में अनेक आदर्शों के साथ-साथ दैनिक जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान भी समाहित है। तुलसीदास का दर्शन एक अर्थ में एकात्मक था। उन्होंने शंकराचार्य के एकेश्वरवाद और रामानुजाचार्य के एकेश्वरवाद दोनों को स्वीकार करने की भूमिका निभाई है। सामान्य तौर पर यह कहा जा सकता है कि उनका झुकाव रामानुजाचार्य के दर्शन की ओर अधिक था। तुलसीदास ने मानवीय धर्म की शिक्षा दी। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मनुष्य को संकीर्णता से महानता की ओर मोड़ने का प्रयास किया। तुलसीदास ने व्रज और अवधी दोनों भाषाओं का प्रयोग किया। रामकथा को तुलसीदास ने जिस मुकाम तक पहुंचाया था, उस मुकाम तक कोई दूसरा हिंदी कवि नहीं पहुंच पाया है। गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे (tulsidas ke dohe in hindi), हर युग, हर हालात और काल में मनुष्य को जीवन जीने की सीख देते हैं।
तुलसीदास जी को राम भक्ति शाखा का कवि माना जाता है। नरहरिदास जी कवि तुलसीदास जी के गुरु थे, जिनके सानिध्य में आकर कवि तुलसीदास जी को राम भक्ति का मार्ग मिला। तुलसीदास ने राम पर बहुत कुछ लिखा है। तुलसीदास जी की रचना श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। इसके अलावा विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली, हनुमान चालीसा आदि भी तुलसीदास द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण रचनाएं है। तुलसीदास के विचारों ने समय-समय पर देश के लोगों को नई ऊर्जा और सोच का अनुभव कराया है। उनकी दूरदर्शिता और ऊर्जावान विचार आज भी लोगों को एक नई राह दिखाने का सामर्थ्य रखते हैं। यहां पढ़ें मित्रता पर तुलसीदास के दोहे (tulsidas ke dohe), समाज की बुराइयों पर प्रहार करते तुलसीदास के दोहे और राम भक्ति में लीन तुलसीदास के दोहे उनके अर्थ सहित –
Tulsidas ke Dohe in Hindi
अर्थ – तुलसीदास के दोहे का अर्थ है कि जो होना है वो होकर रहेगा। भगवान पर भरोसा करें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए। कुछ भी अनावश्यक नहीं होगा, और अगर कुछ अनिष्ट घटना ही है तो वो होकर रहेगा, इसके लिए बेकार में चिंता करना अनावश्य है।
अर्थ – तुलसीदास जी कहते हैं (tulsidas ke dohe) कि मीठे बोल सभी ओर सुख का वातावरण पैदा करते हैं। हर किसी को अपनी और सम्मोहित करने का यही एक कारगर मंत्र है इसलिए हमें कटु वाणी त्याग कर मधुर वाणी में ही बातचीत करना चाहिए।
अर्थ – इस तुलसीदास जी के दोहे में ये कहा गया है कि जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे नीछ और पापमय होते हैं। दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता। कहने का मतलब है कि हमें हमेशा मद्द के लिए आए लोगों की सहायता करनी चाहिए।
अर्थ – इस दोहे का अर्थ है कि तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है, तो उसे हर कोई छूने लगता है।
अर्थ – तुलसीदास के दोहे का अर्थ है कि जिस जगह पर आपके जाने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते वहां लोगों की नजरों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहां स्वर्ण की वर्षा ही क्यूं न हो रही हो।
अर्थ – इस दोहे का अर्थ है कि बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध के मैदान में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते हैं और कायर व्यक्ति लड़कर नहीं बल्कि अपनी बातों से ही वीरता दिखाते हैं।
अर्थ – तुलसीदास के दोहे का अर्थ (tulsidas ke dohe in hindi) है कि जब तक किसी व्यक्ति के मन में काम की भावना, गुस्सा, अहंकार, और लालच जैसे भावभरे हुए हैं, तबतक एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नहीं होता है। वो दोनों एक हीं जैसे होते हैं।
अर्थ – मूर्ख सेवक कंजूस राजा कुलटा स्त्री एवं कपटी मित्र सब शूल की तरह दुख देने बाले होते हैं। मित्र पर सब चिंता छोड़ देने पर भी वह सब प्रकार से काम आते हैं।
Tulsidas ji ke Dohe
अर्थ – तुलसीदास के दोहे का अर्थ बेहद सोचनीय है, वो कहते हैं हमारा मुखिया, मुख यानि मुंह के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सभी अंगो का पालन-पोषण करता है।
अर्थ – गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष यानि पहनावा देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं। जैसे आप सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार सांप का होता है।
अर्थ – मित्रता पर तुलसीदास के दोहे का अर्थ है कि जिन्हें स्वभाव से ही ऐसी बुद्धि प्राप्त नहीं है, वे मूर्ख हठ करके क्यों किसी से मित्रता करते हैं? मित्र का धर्म है कि वह मित्र को बुरे मार्ग से रोककर अच्छे मार्ग पर चलावे। उसके गुण प्रकट करे और अवगुणों को छिपाएं।
अर्थ – जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ-पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है- हे भाई! जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है।
अर्थ – हे रघुवीर, मेरे जैसा कोई दीनहीन नहीं है और तुम्हारे जैसा कोई दीनहीनों का भला करने वाला नहीं है। ऐसा विचार करके, हे रघुवंश मणि.. मेरे जन्म-मृत्यु के भयानक दुःख को दूर कर दीजिए।
अर्थ – यदि मंत्री वैद्य और गुरु, ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर एवं धर्म इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता हैं।
अर्थ – हे उमा, सुनो वह कुल धन्य है, दुनिया के लिए पूज्य है और बहुत पावन है, जिसमें भगवान श्री राम की मन से भक्ति करने वाले विनम्र लोग जन्म लेते हैं।
अर्थ – तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में सभी शत्रु और मित्र तथा सुख और दुख माया झूठे हैं और हकीकत में तो वे सब बिलकुल नहीं हैं।
अर्थ – यहां पर तुलसीदास जी के दोहे में कहते हैं कि जो लोग मनुष्य का शरीर पाकर भी राम अर्थात ईश्वर का भजन-स्मरण नहीं करते हैं और बुरे विषयों में खोए रहते हैं। वे लोग उसी व्यक्ति की तरह मूर्खतापूर्ण आचरण करते हैं, जो पारस मणि को हाथ से फेंक देता है और कांच के टुकड़े हाथ में उठा लेता है।
अर्थ – इस दोहे का भावार्थ है कि ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा।
Tulsidas Dohe in Hindi
अर्थ – तुलसीदास जी कहते हैं कि समय बहुत बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है। जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय खराब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए थे।
अर्थ – जो लोग दूसरों की निन्दा करके खुद सम्मान पाना चाहते हैं. ऐसे लोगों के मुँह पर ऐसी कालिख लग जाती है, जो लाखों बार धोने से भी नहीं हटती है।
अर्थ – तुलसी जी कहते है की इस संसार में तरह तरह के लोग है हमे सभी से प्यार के साथ मिलना जुलना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो।
अर्थ – बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी तेज़ हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली भी उस शोर में दब जाती है। इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है। तुलसीदास के दोहे का अर्थ (tulsidas ke dohe) ये कहता है कि जब धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप रहता है और व्यर्थ में अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता।
अर्थ – अपने हितकारी स्वामी और गुरु की नसीहत ठुकरा कर जो इनकी सीख से वंचित रहता है, वह अपने दिल में ग्लानि से भर जाता है और उसे अपने हित का नुकसान भुगतना ही पड़ता है। इसीलिए बड़ों और गुरुजनों की नसीहत हमेशा लेनी चाहिए।
अर्थ – किसी की मीठी बातों और किसी के सुंदर कपड़ों से, किसी पुरुष या स्त्री के मन की भावना कैसी है यह नहीं जाना जा सकता है. क्योंकि मन से मैले सूर्पनखा, मारीच, पूतना और रावण के कपड़े बहुत सुन्दर थे। इसीलिए दिखावे से आकर्षित मत हों।
अर्थ – मुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिलखते है सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते है जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते है कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते है और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते हैं।
अर्थ – तुलसीदास जी कहते हैं कि जिन लोगों को तन की सुंदरता, सद्गुण, धन, सम्मान और धर्म आदि के बिना भी अभिमान होता है, ऐसे लोगों का जीवन बेहद परेशानियों से भरा होता है, और उसका परिणाम भी बेहद बुरा होता है।
अर्थ – जो सभी इच्छाओं को छोड़कर राम भक्ति के रस में लीन होकर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन को मछली के रूप में रहते हैं और एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते वही सच्चा भक्त है।
अर्थ – बुद्धिमान शत्रु के अकेले रहने पर भी उसे छोटा नही मानना चाहिए, राहु का केवल सिर बच गया था परन्तु वह आजतक सूर्य एवं चन्द्रमा को ग्रसित कर दुख देता है। अर्थात् तुलसीदास जी के दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि दुश्मन चाहे कितना भी कमजोर क्यों न हो हमेशा उससे बचकर ही रहना चाहिए।
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