एक बच्चे की परवरिश में जो सबसे बड़ी और ज़रूरी चीज़ होती है, वह है उसे मिलने वाला प्यार और अपनापन। उसके बाद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जहां उसे ये सब मिल रहा है, वह उसे जन्म देने वालों की गोद है या फिर सिर्फ पालने वालों की। यही वजह है कि अगर आप किसी भी कारण से बच्चा गोद लेने की बात सोच रहे हैं तो कुछ मूल-भूत तथ्यों को समझ लें। इससे आपके इस फैसले को और भी मज़बूती मिल जाएगी।
उसे सीने से लगाकर दूध पिलाना औऱ परवरिश देना आसान नहीं होता, जिसे कभी कोख ने न महसूस किया हो। ये बहुत ही कड़वा सच है, लेकिन गोद लिए बच्चे के साथ आप पूरी जिंदगी के लिए एक मजबूत बॉन्डिंग में बंध सकें, इसके लिए इस बेहद कड़वे सच का जवाब अपने-आप से पा लेना बहुत जरूरी है। यहां सवाल सिर्फ आपकी भावनाओं का ही नहीं है, बल्कि ये एक बच्चे की पूरी जिंदगी बदलकर रख देगा। ऐसा हर्गिज नहीं होना चाहिए कि आज आप भावनाओं का उफान महसूस कर या फिर अपनी गोद के सूनेपन को भरने के लिए बच्चा गोद तो ले लें, लेकिन कल लोगों की बातों से प्रभावित होकर या अपना खून न होने जैसी बातें सोचकर उसे पराया कर दें। ये भी मुमकिन है कि पहले अपना बच्चा न होने की स्थिति में आप किसी बच्चे को अडॉप्ट कर लें औऱ बाद में अगर किस्मत पलट जाए और आपकी गोद भी भर जाए तो उस बच्चे के साथ आपके रवैय्ये में बदलाव आने लगे। यही वजह है कि बेहद कड़वी होने के बावजूद हम पहली बात यही आपको कह रहे हैं कि अगर आप किसी बच्चे को अडॉप्ट करने वाले हैं तो हर हालात का ध्यान में रखकर अपना इरादा खूब पक्का कर लीजिए।
दूसरी बात, जब एक बार आप बच्चे को अडॉप्ट कर लें तो इस बात को बच्चे से छिपाने की कोशिश कभी मत कीजिए। अगर आपने बहुत ही छोटे बच्चे को अडॉप्ट किया है, यानी गोद लिया है तो सही समय आने, यानी थोड़ी उम्र बढ़ने के साथ ही, समझदारी से उसे इस सच से जोड़ दें। इसमें छिपाने जैसी कोई भी बात नहीं है। जिस बच्चे को आपने बेहद प्यार-दुलार दिया हो, अपने सीने से लगाकर रखा हो, लेकिन सिर्फ भावनाओं में बहकर उससे सच छिपाया हो तो याद रखिए कि ये बात किसी दूसरे के द्वारा सामने आने पर उसे ज्यादा बुरा लग सकता है। हो सकता है कि उसमें काफी बदलाव भी आ जाएं। ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि आप सच को सिर्फ सच ही रहने दें, झूठ बताकर झुठलाने की कोशिश न करें।
एक और अहम बात ये है कि जब भी बच्चा अडॉप्ट करें तो पूरी कानूनी प्रक्रिया औऱ नियमों का पालन करते हुए ऐसा कीजिए। चाहे आपने अपना बच्चा किसी जान-पहचान वाले से अडॉप्ट किया हो या फिर कहीं और से, इससे जुड़े जितने भी नियम-कायदे हैं, सभी को पालन पूरी तरह से कीजिए।
हर बच्चे के लिए अहमियत सिर्फ इस बात की ही होती है कि उसकी परवरिश कैसी हो रही है, चाहे वह आपका बायोलॉजिकल बच्चा है या फिर अडॉप्टेड, इसलिए आप भी इस बात को ज्यादा अहमियत मत दीजिए औऱ पूरा ध्यान इस बात पर रखिए कि आप उस बच्चे को परवरिश और संस्कार कैसे दे रहे हैं। उसका ख्याल कितना रख रहे हैं।
हर बच्चे के लिए अहमियत सिर्फ इस बात की ही होती है कि उसकी परवरिश कैसी हो रही है, चाहे वह आपका बायोलॉजिकल बच्चा है या फिर अडॉप्टेड, इसलिए आप भी इस बात को ज्यादा अहमियत मत दीजिए औऱ पूरा ध्यान इस बात पर रखिए कि आप उस बच्चे को परवरिश और संस्कार कैसे दे रहे हैं। उसका ख्याल कितना रख रहे हैं।
अपनी परवरिश में इस बात को गहरे तक बिठा लीजिए कि आपने जिस बच्चे को अडॉप्ट किया है, उसे हर वक्त स्पेशल फील कराना जरूरी है। उसे अपने सामान्य बच्चा मानकर ही प्यार दीजिए, न बहुत कम औऱ न ही बहुत ज्यादा। याद रखिए, प्यार की कमी जहां सही विकास को प्रभावित करती है, वहीं इसकी अधिकता भी बच्चे के बिगड़ने में पूरी-पूरी भूमिका अदा करती है, इसलिए संतुलित रहिए। बच्चे को प्यार देते हुए भी हर वक्त उसे एक्ट्रा स्पेशल न फील कराएं और न ही हर वक्त सहानुभूति जताएं। बस समय को अपना काम करने दें।
अडॉप्ट किए गए बच्चे की परवरिश में इस बात को ध्यान में रखिएगा कि ये बच्चे शुरुआत से ही अक्सर कुपोषण या कई तरह के संक्रमण आदि के शिकार हो सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि जन्म से पहले, यानी गर्भ काल में ही अपने माता या पिता की गलत आदतों के चलते ये कई तरह के नशे की चपेट में आ चुके होते हैं, क्योंकि उनके प्रति उपेक्षा बरती गई थी। इसके अलावा जन्म के बाद भी ऐसा अक्सर होता है कि उन्हें शुरुआत से ही उतना पोषण नहीं मिल पाता, जितना मिलना चाहिए। यहां तक कि बहुत कम उम्र में ही वे उपेक्षा, डांट-डपट, भूख-प्यास या मार-पीट का सामना कर चुके होते हैं। सो बहुत जरूरी है कि जब आप उनकी परवरिश का बीड़ा उठा लें तो नियमित रूप से उनका मेडिकल चैकअप करवाते रहें। अगर आपको उस बच्चे के व्यवहार की कोई बात अजीब लगती है तो किसी मनोचिकित्सक से तुरंत सलाह लेने में देर न करें।
छोटे बच्चों के साथ तो ये स्थिति होती है कि वे जिस गोद में प्यार पाते हैं, तुरंत उसी के ही हो जाते हैं, लेकिन बच्चा अगर बड़ा है तो उसकी परवरिश में आपको थोड़ा ज्यादा ध्यान देना होगा। ये तो सच ही है कि आप उसे प्यार करते हैं, तभी तो उसे अपनाया है। जरूरत सिर्फ प्यार करने भीर की ही नहीं, बल्कि उसे जताने की भी है। समय-समय पर बच्चे के सिर पर हाथ रखें, उसे गले लगाएं, पुचकारें, लाड़-प्यार जताएं। याद रखिए, ये प्यार औऱ घर को तरसा हुआ बच्चा है। उसे अपनी इस बदली हुई स्थिति का विश्वास धीरे-धीरे आपके प्यार औऱ बर्ताव के आधार पर ही होगा।
बच्चे को एकदम नॉर्मल रहने दीजिए और उसे वे सारे हक दीजिए, जो आपका बच्चा होने के नाते उसका अधिकार है, जैसे- रूठना, ज़िद करना, नाराज़ होना वगैरह। हां, सावधानी सिर्फ इस बात की रखनी है कि उसकी ज़िद को एक हद तक ही ज़िद रहने देना है। उसे एक बुरी आदत या टेकन फॉर ग्रांटेड जैसी स्थिति में नहीं बदलने देना है।
अडॉप्ट करने के कुछ समय तक बच्चे की ज्यादातर गलतियों को नजरअंदाज ही कीजिए, क्योंकि अभी उसमें आत्मविश्वास की भारी कमी है। साथ ही वह मन के किसी कोने में अभी भी सहमा हुआ है। उसे अनुशासन के नाम पर अभी से बहुत ज्यादा नियम-कायदों से न घेरें।
बच्चे को सभी रिश्तों से जोड़िए। आपके नाते-रिश्तेदार, मिलने-जुलने वाले सभी का प्यार उसे मिलना जरूरी है, क्योंकि सीमित दुनिया तो वह पहले ही देखकर आया है। अब उसकी दुनिया को विस्तार लेने दीजिए। उसके नए दोस्त बनाने में भी उसकी मदद कीजिए, लेकिन साथ ही अपनी नजर भी उस पर बनाए रखें, ताकि किसी का ताना-उलाहना उसे आहत न कर दे। इसके लिए उसे मानसिक रूप से तैयार रखें।