भारत संस्कृति की अनमोल विरासत को संजोकर रखने वाला देश है। भारत में साल में आने वाले सभी त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं। शारदीय नवरात्रि की समाप्ति के दूसरे दिन दशहरा का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था। ऐसे में आज भी हर साल रावण दहन किया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि उत्तर प्रदेश के नोएडा में बसा एक ऐसा गांव है जहां आज तक ना तो दशहरा मनाया गया है और ना ही रावण के पुतले का दहन किया गया है। आइए जानते हैं, इसके पीछे क्या कारण है।
यहां हुआ था रावण का जन्म
उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोयडा जिले के बिसरख गांव में भी रावण का मंदिर है। यहां ऐसी मान्यता है कि यहा रावण का ननिहाल था और यही उसका जन्म हुआ था। इसी गांव में रावण का बचपन बीता था, यहां रावण के गुणों का बखान किया जाता है। यहां विजयादशमी के दिन शोक जैसा माहौल रहता है और यहीं राक्षसकुमारी कैकसी का विवाह रावण के पिता विश्वेश्रवा के साथ सम्पन्न हुआ था। बिसरख के लोगों का कहना है कि यह जगह कभी रावण का गांव हुआ करती थी, जिसका जिक्र शिवपुराण में भी हुआ है। यहां स्थित शिव मंदिर में रावण की प्रतिमा भी मौजूद है, जिसकी बड़े विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इसी मंदिर में भगवान शिव ने रावण की तपस्या से खुश होकर उसे दर्शन दिये थे। यही कारण है कि इस गांव में कभी भी रावण का पुतला जलाया नहीं जाता है।
यहां के लोग रावण की करते हैं पूजा
इस गांव के लोग रावण की पूजा करते हैं। ऐसा भी कहते हैं कि कई दशक पहले जब इस गांव के लोगों ने रावण के पुतले को जलाया था तो यहां कई लोगों की मौत हो गई थी। जिसके बाद गांव के लोगों ने मंत्रोच्चारण के साथ रावण की पूजा की तब जाकर यहां शांति हुई थी। यही नहीं, इस गांव में रावण के बाद कुंभकरण, सूर्पणखा और विभीषण ने भी जन्म लिया था। यही वजह है कि जब पूरे देश में श्री राम की जीत की खुशियां मन रही होती है, तो वहीं इस गांव में रावण की मौत का भी शौक मनाया जाता है।
अष्टभुजी शिवलिंग है यहां विराजमान
मान्यताओं के अनुसार, रावण के जन्म से पहले बिसरख गांव में एक शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसकी स्थापना रावण के दादा महर्षि पुलस्त्य मुनि ने इस मंदिर की स्थापना की। कुलस्त मुनि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। आज भी ये शिवलिंग अस्तिव में हैं। बताया जाता है कि बिसरख गांव में शिव की एकमात्र अष्टभुजी शिवलिंग है, जिसकी काफी मान्यता है। रावण की माता कैकसी थी, जो राक्षस कुल की थी। उन्होंने अपनी माता कैकसी के साथ आकर काफी बार बिसरख में पूजा की थी।
रावण की क्यों होती है पूजा?
मान्यताओं के अनुसार, रावण की नाभि में ब्रह्म बाण लगने के बाद वह धराशायी हो गया था। इस दौरान कालचक्र ने जो रचना की, उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था, जब राम ने लक्ष्मण से रावण के पैरों की तरफ खड़े हो कर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने का आदेश दिया था, क्योंकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है। इसी स्वरूप को ध्यान में रखकर रावण की पूजा की जाती है। यही कारण है कि आज भी भारत के कई हिस्सों में रावण की पूजा होती है।
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