यूं तो आपने कई स्पोर्ट्स पर्सन की कहानी सुनी होगी या फिर देखी होगी लेकिन आज हम जिनके बारे में आपको बताने वाले हैं, उनकी कहानी कई मायनों में अलग है और वाकई बेहद इंस्पायरिंग भी है। दरअसल, अजमेर में जन्मी सूफिया सूफी जो दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर बैगेज हैंडलिंग ऑफिसर का काम करती थीं, आज दुनिया की जानी-मानी रनर हैं। सूफिया ने अभी तक 5 गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं। उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर भागते हुए केवल 87 दिनों में पूरा किया था और सभी ऑड्स से लड़ते हुए अपना सपना पूरा किया था।
सूफिया के लिए थेरेपी है रनिंग
सूफिया के लिए भागना केवल एक स्पोर्ट नहीं है बल्कि यह उनके लिए थेरेपी है जो रोजमर्रा के बोझ को कम करने में उनकी मदद करता है। इससे उन्हें उस आजादी का एहसास होता है, जो वह चाहती हैं। भागने से वह अपनी फिजिकल और मेंटल लिमिट्स को चैलेंज कर पाती हैं और खुद को और बेहतर करने के लिए पुश करती हैं।
ऐसे हुई थी सूफिया की रनिंग जर्नी की शुरुआत
सूफिया की इस जर्नी की शुरुआत तब हुई जब उन्हें एहसास हुआ कि एविशन इंडस्ट्री से उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव हो रहा है क्योंकि यह जॉब काफी डिमांडिंग है। इस वजह से उन्होंने मैराथन में भागना शुरू किया और फिर उन्होंने प्रोफेशनल रनिंग कोच से गाइडेंस ली। उस वक्त वह जानती थीं कि सड़क ही उनकी असली कंपैनियन है।
अपने एक्सपीरियंस के बारे में न्यूज एजेंसी IANS से बात करते हुए 37 वर्षीय सूफिया ने बताया, ”मैं आईजीआई एयरपोर्ट पर एक दशक तक बैगेज हेंडलिंग ऑफिसर की नौकरी कर रही थी। वैसे तो हमेशा से ही एविएशन इंडस्ट्री में आना मेरा सपना था लेकिन मुझे एहसास हुआ कि इसका रॉबोटिक शेड्यूल मेरी हेल्थ को प्रभावित कर रहा है और मुझे असल दुनिया में जीने का कोई अंदाजा नहीं है। तो धीरे-धीरे मैंने मैराथन में हिस्सा लेना शुरू किया और बाद में प्रोफेशनल रनिंग कोच की मदद ली। उस वक्त मुझे पता था कि सड़क मेरी सच्ची दोस्त है।”
बता दें कि हाल ही में सूफिया ने मनाली से लेह सर्किट केवल 97 घंटों में पूरा किया और इसी के साथ उन्होंने दुनिया की सबसे तेज रनर का दर्जा भी अपने नाम कर लिया है। इस चैलेंज को उन्होंने एक बार नहीं बल्कि दो बार लिया, क्योंकि वह 100 घंटो के अंदर इसे खत्म करना चाहती थी। उन्होंने कहा, ”जब मैंने जुलाई में पहली बार मनाली से लेह किया तो मुझे 113 घंटे लगे और इसका कारण कुछ मेडिकल ईशु थे। हालांकि, यह देखते हुए कि मेरी बॉडी पहले से ही तैयार थी तो मैंने 10 दिन बाद दोबारा यह चैलेंज लिया और मैं सफल हुई।”
रनिंग को स्पोर्ट्स का दर्जा दिलाने में जुटी हैं सूफिया
सूफिया ने कहा कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में अभी भी रनिंग को वो दर्जा और पहचान नहीं मिल पाई है। भले ही उन्हें भारत सरकार कोई सपोर्ट न मिला हो लेकिन वह ऑफिशियली रनर के रूप में जानी जाने लगी हैं। वह अपने प्रयासों के लिए वित्तीय सहायता के महत्व को पहचानती है। इस बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “किसी को लगातार सड़क पर रहने की जरूरत है, और लगभग उसी पर जीना पड़ता है; और इसके लिए फाइनेंशियल सपोर्ट जरूरी है। अब तक, हम क्राउडफंडिंग के साथ प्रबंधन कर रहे हैं। यह एक नया खेल है, और इस वजह से इसे पहचान दिलाने के लिए काफी स्ट्रगल करना पड़ रहा है। मुझे अभी तक भारतीय सरकास से कोई सपोर्ट नहीं मिला है लेकिन हम सरकार से ultra running recognition पाने की कोशिश कर रहे हैं और हमें प्राइवेट कंपनी से स्पॉन्सरशिप मिल रही है।”
सूफिया ने आगे कहा, ”आपको कई महीनों तक सड़कों पर रहना होता है। हम हमेशा कोशिश करते हैं कि प्लेटफॉर्म से क्राउडफंडिंग मिल जाए। अंडर आर्मर इसमें हमेशा हमारी मदद करता है लेकिन कई बार वो भी सपोर्ट कर पाने में स्ट्रगल करते हैं।”
जब उनसे उनकी पसंदीदा रन के बारे में पूछा गया तो सूफिया ने कहा कि हर रन में कुछ नए चैलेंज होते हैं, जो उन्हें अलग-अलग लैंडस्केप और एलटीट्यूड पर ले जाते हैं। साथ ही बदला हुआ मौसम और उनकी अपनी हेल्थ कंडीशन भी इसमें अहम भूमिका निभाती हैं और इस वजह से उन्हें हमेशा अलग और एक्साइटिंग एक्सपीरियंस मिलता है।
सूफिया अब अपने अलगे एंबीशियस रन की तैयारी में लग गई हैं। वह 2025 में रन अराउंड क ग्लोब का प्लान कर रही हैं, जिसमें वह 30,000 किलोमीटर 680 दिनों में पूरा करने का चैलेंज लेंगी। सूफिया कॉन्फिडेंट और अपने चैलेंज को लेकर पूरी तरह से तैयार हैं। उन्होंने कहा, ”मैं इसके लिए अच्छे से तैयारी कर रही हूं और पूरी तरह से कॉन्फिडेंट हूं और इन्ही दो चीजों की आपको सबसे ज्यादा जरूरत होती है।”
सूफिया की यह जर्नी हमें यही सिखाती है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है। बस आपको खुद पर भरोसा होना चाहिए और आपकी तैयारी पूरी होनी चाहिए और आप कुछ भी अचीव कर सकते हैं। सूफिया सही में सभी महिलाओं के लिए रियल इंस्पीरेशन हैं।