शरद पूर्णिमा का दिन हिन्दु पुराणों के अनुसार शुभ लाभ का दिन माना जाता है और साथ ही इसी से शरद ऋतु का आगमन भी होता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था जो कि धन की देवी मानी जाती है। अश्विन मास में आने वाली इस पूर्णिमा का महत्व अन्य की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ”पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।” अर्थात रसस्वरूप चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं। यानि कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे ज्यादा करीब होता है। खास बात ये भी है कि उस वक्त चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। ये भी कहा जाता है जाता है कि इस दिन रात को चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है। इसी कारण लोग एक दिन पहले ही खीर बना लेते हैं और रात को खुले आसमान की नीचे उसपर कपड़ा या छलनी लगा कर रखते हैं। और अगले दिन इसे प्रसाद के रूप में सभी घरवालों को खिलाया जाता है। मान्यता है कि इस खीर को खाने से शरीर निरोग रहता है। साथ ही लक्ष्मी की कृपा सदा घर में बनी रहती है और धन- दौलत के भंडार का आशीर्वाद मिलता है।
हर किसी को इस बात की दुविधा है कि आखिर शरद पूर्णिमा है किस दिन? 23 या फिर 24 अक्टूबर? दरअसल अगर आप गूगल में सर्च करेंगे तो 23 अक्टूबर को ही पूर्णमा है, ऐसा आपको नतीजा मिलेगा। लेकिन आइए जानते हैं इस विषय में पंचाग और एक्सपर्ट्स का क्या कहना है। आचार्य विनोद मिश्र का कहना है कि शरद पूर्णिमा के दिन किया जाने वाला कोजागर व्रत प्रदोष और निशीथ दोनों में व्याप्त पूर्णिमा के दिन किया जाता है। लेकिन पहले दिन यानि कि 23 को पूर्णिमा केवल निशीथ काल यानी मध्य रात्रि में पड़ रही है और दूसरे दिन यानि कि 24 अक्टूबर को प्रदोष काल में। इसीलिए ये व्रत 24 अक्टूबर को ही करना चाहिए। यदि आपको खीर बनानी है तो आप 23 को बनाकर खुले आसमान के नीचे रख सकते हैं क्योंकि पूर्णिमा 23 अक्टूबर से रात 10.36 से लग रही है।
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पूर्णिमा तिथि आरम्भ = 23 अक्टूबर, 10 बजकर 36 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त = 24 अक्टूबर, 10 बजकर 14 मिनट तक
विज्ञान का भी मानना है कि शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य व सकारात्मकता देने वाली मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा धरती के बहुत करीब होता है। चंद्रमा की किरणों में खास तरह के लवण यानि कि विटामिन आ जाते हैं। पृथ्वी के पास होने पर इसकी किरणें सीधे जब खाद्य पदार्थों पर पड़ती हैं तो तो वो लाभदायक औषधि बन जाती है। माना जाता है कि इससे रोग मुक्ति होती है और उम्र लंबी होती है।
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शरद पूर्णिमा की रात से मौसम में बदलाव आने लगता है। इस समय से शीत ऋतु का आगमन होता हैं। मौसम गर्मी से ठंडी की तरफ बढ़ जाता है इसीलिए खीर खाई जाती हैं। तो आइए जानते हैं कि शरद पूर्णिमा में बनने वाली इस अमृत खीर को खास कैसे बनाएं?
शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में चीनी चावल डालकर पकाएं और खीर बना लेंI खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें, साथ ही मेवा भी। अब इस खीर को तांबे के साफ बर्तन में पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे जालीनुमा ढक्कन से ढककर छोड़ दें और अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ्य दें। इस खीर को रात्रि जागरण कर प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में प्रसाद के रूप में ग्रहण करें I
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माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन श्री कृष्ण गोपियों के साथ रास लीला भी करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय विचरण करती हैं। यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग रात में जागते हैं, जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर में लक्ष्मी आएं और कभी न जाएं।
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