हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और आज के वक्त में टेक्नोलॉजी और इंटरनेट ने लोगों की जिंदगी में अहम जगह बना ली है लेकिन फिर भी दुनिया में महिलाओं को लेकर लोगों का पर्सपेक्टिव आज भी सेम ही है। इसी वजह से दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ क्राइम भी बढ़ रहा है। फिर चाहे डोमेस्टिक वायलेंस हो या फिर एसिड अटैक, महिलाओं के खिलाफ अलग-अलग क्राइम होते रहते हैं। ऐसे में हम नवरात्रि के आखिरी दिन आपके लिए एसिड अटैक सरवाइवर रूपा की कहानी लेकर आए हैं।
2008 में बदल गई थी रूपा की जिंदगी

रूपा की जिंदगी बिल्कुल आसान नहीं थी। उन्होंने छोटी उम्र में ही मां को खो दिया था और उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। इसके बाद उन्हें मुज्जफरपुर में अपनी सौतेली मां के साथ रहना पड़ा था, जो उनकी जिंदगी में किसी डेविल से कम नहीं थी। उन्होंने रूपा की पढ़ाई रुकवा दी और उनसे घर के काम करवाने लगी। एक दिन रूपा की सौतेली मां ने उनके साथ मारपीट की और उन्हें काफी चोट आई। इस चीज ने रूपा को डरा दिया लेकिन बात तब बिगड़ी जब रूपा की सौतेली मां ने उनपर एसिड डाल दिया और इससे उनका पूरा चेहरा बिगड़ गया। हालांकि, चीजें यहीं खत्म नहीं हुई क्योंकि इसके बाद जब रूपा मुज्जफरपुर अस्पताल में भर्ती थीं तो उनकी मां ने उन्हें जहर देने की भी कोशिश की थी लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाई थीं। इसके बाद रूपा को ट्रीटमेंट के लिए सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कर दिया गया था।
अपनी पढ़ाई नहीं पूरी कर पाईं थी रूपा
रूपा 8वीं क्लास के बाद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाई थीं। एसिड अटैक के बाद उन्हें कई सारे ट्रीटमेंट और सर्जरी करानी पड़ी थी जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हुई थी। रूपा ने कहा, ”अगर मैंने पढ़ाई की होती तो आज मैं देश के लिए कुछ अच्छा कर रही होती। हालांकि, फिर भी मैं सोशल वर्क कर रही हूं और लोगों को मुझ पर गर्व है।”
छांव फाउंडेशन स्थायी समर्थन प्रणाली

सफदरजंग अस्पताल में अपने ट्रीटमेंट के दौरान रूपा की मुलाकात एक अन्य एसिड अटैक सरवाइवर से हुई थी। उन्होंने रूपा को छांव फाउंडेशन के बारे में बताया था जो एसिड अटैक सरवाइवर के लिए काम करती थी। रूपा ने 2013 में इस एनजीओ से संपर्क किया था जहां वह इसके फाउंडर आलोक दीक्षित से मिली थीं। रूपा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि आलोक ने मुश्किल वक्त में उन्हें काफी सपोर्ट किया था और उनकी हिम्मत बांधने में भी मदद की थी।
रूपा की हिम्मत ने बदला लोगों का नजरिया
छांव फाउंडेशन के साथ जुड़ने से पहले लोग रूपा के किरदार पर कमेंट किया करते थे लेकिन इस फाउंडेशन से जुड़ने के बाद उन्होंने लोगों के नजरिए में खासा बदलाव देखा। रूपा ने कहा उन्होंने खुद में फर्क देखा और इसकी वजह से उनकी तरफ लोगों का नजरिया भी बदला। अब लोग हमें तुरंत ही कहीं हुए एसिड अटैक के बारे में बताते हैं ताकि हम उनकी मदद कर सकें।
शीरोज कैफे और रूपा

छांव फाउंडेशन ने 2014 में आगरा में अपना पहला शीरोज कैफे खोला था। इसके सक्सेसफुल होने के बाद उन्होंने लखनऊ और नोएडा में भी इसका आउटलेट खोला था। उन्होंने कहा, मैं नोएडा कैफे में काम कर रही हूं। यहां हमारे साथ 35 एसिड अटैक सरवाइवर लड़कियां काम कर रही हैं और वो अपने परिवारों को सपोर्ट कर रही हैं और अपनी खुद की पढ़ाई का भी खर्चा उठा रही हैं।
आज के वक्त में भी एसिड अटैक सरवाइवर से उनके खुद के परिवार भी अच्छे से संपर्क नहीं करते हैं। हालांकि, रूपा इन सभी स्टीरियोटाइप को तोड़ रही हैं और लड़कियों को इंडीपेंडेंट बनाने में मदद कर रही हैं।