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कैंसर से भी खतरनाक है ये ओटो इम्यून बीमारी ‘Lupus’, जानें खुद सर्वाइवर की जुबानी
आपने कई ऐसी बीमारियों के बारे में सुना होगा, जिनके बारे में जानकर आप हैरान या दंग रह गए होंगे लेकिन आज हम जिस बीमारी की बात करने जा रहे हैं, यह एक ऐसी बीमारी है जो कैंसर से भी अधिक खतरनाक है। मुख्य रूप से तो ये बीमारी 4 तरह की होती है लेकिन भारत जैसे देश में आज भी इस बीमारी के बारे में बहुत अधिक लोगों को जानकारी नहीं है।
इस बीमारी का नाम लुपस (lupus kya hai) है। यह एक प्रकार की ओटो इम्यून बीमारी है। अब अगर आप सोच रहे हैं कि ओटो इम्यून बीमारी (Autoimmune Disease) क्या होता है तो आपको बता दें कि यह एक ऐसी बीमारी होती है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगती है। इस प्रकार की बीमारी में शरीर में कई तरह के बदलाव आने लगते हैं। कई बार ऑटोइम्यून बीमारी के कारण शरीर खुद ही खुद का दुश्मन बन जाता है। इस वजह से ऑटोइम्यून बीमारियों का कोई स्थाई इलाज नहीं है।
यहां तक कि किसी भी ओटो इम्यून बीमारी के लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि बीमारी का पता चल पाने में ही काफी अधिक वक्त लग जाता है और आज इस लेख में हम जिस लड़की की बात कर रहे हैं, उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनका नाम निशा पवार है और वह खुद को लुपस वॉरियर कहती हैं। इसका कारण है कि वह लुपस जैसी खतरनाक बीमारी ग्रसित हैं लेकिन फिर भी उन्होंने इस बीमारी के साथ जीना सीख लिया है और वह अपने जैसे दूसरे लोगों को भी प्रेरित करने की कोशिश करती रहती हैं। तो चलिए आपको निशा के लुपस (lupus causes symptoms and treatment) से जुड़े अनुभवों के बारे में बताते हैं और यह भी बताते हैं कि उन्हें और उनके परिवार को पहली बार इस बीमारी के बारे में कैसे पता चला। इसके साथ ही हम आपके लुपस से जुड़े सवालों का भी जवाब देंगे।
सवालों की शुरुआत करने से पहले मैं आपको बताना चाहूंगी कि भारत में लुपस बीमारी 1000 लोगों में से किसी एक को होती है और यह बीमारी 90 प्रतिशत महिलाओं या फिर लड़कियों में ही होती है। बता दें, अब तक 80 तरह की ऑटोइम्यून बीमारियों का पता लगाया जा चुका है और उनमें से एक खतरनाक बीमारी लुपस (Lupus) है।
मुझे इस बीमारी के बारे में 24 दिसंबर 2013 को पता चला। दरअसल, 2013 की शुरुआत से ही मैं काफी बीमार रहने लगी थी और मेरा पूरा साल अस्पताल के चक्कर काटते हुए ही निकला। हर महीने ही मुझे बुखार हो जाता था। कभी 2-4 दिन के लिए तो कभी 9-10 दिनों के लिए मुझे बुखार या फिर लूज मोशन की समस्या रहने लगी। इस वजह से मेरे घरवाले भी काफी परेशान रहने लगे और हमें कई बार अस्पताल के चक्कर काटने पड़े।
इसके बाद अक्टूबर के महीने में डॉक्टर्स ने बताया कि मुझे पेट का टीबी है और मेरी टीबी की दवाई शुरू कर दी। हालांकि, फिर भी नवंबर के महीने में मुझे फिर से बुखार हो गया और दवाई दे दी गई। इसके बाद 7 दिसंबर को मुझे फिर से बुखा हो गया और डॉक्टर ने मुझे धूप में बैठने की सलाह दी क्योंकि टीबी में धूप में बैठना जरूरी होता है। हालांकि, फिर भी मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ और कभी 104 तो कभी 102 डिग्री तक बुखार रहने लगा।
9 दिसंबर 2013 को मेरा शरीर एक दम लाल पड़ गया और मुझे काफी तेज बुखार हो गया। इस वजह से हम अस्पताल गए और वहां 2 दिन बाद भी बुखार में कोई आराम नहीं आया। 11 दिसंबर 2013 की रात को मेरी लेफ्ट साइड ने काम करना बंद कर दिया। इस वजह से मुझे दिल्ली के स्टीवन अस्पताल ले जाया गया, वहां डॉक्टर सबीना ने देखते ही बताया कि मुझे लुपस है।
उन्होंने मेरी टीबी की रिपोर्ट देखते ही कहा कि मुझे टीबी नहीं है और इसके बाद मेरे कई सारे टेस्ट कराए। उन्होंने 11 दिसंबर से 20 दिसंबर तक सारे टेस्ट कराए। सारी टेस्ट नोर्मल आईं और फिर 20 को मेरा बोनमैरो और एएनए टेस्ट किया। उसमें पता चला कि मुझे लुपस है। 24 दिसंबर 2013 को बोनमैरो टेस्ट की रिपोर्ट में कन्फर्म हो गया कि मुझे लुपस (lupus meaning in hindi) है। बीमारी के बारे में पता चलते ही उन्होंने मुझे AIIMS के लिए रैफर कर दिया और मेरे स्टीरॉयड्स शुरू किए गए। इसके बाद मेरा बुखार ठीक हुआ और 27 दिसंबर 2013 को मुझे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। बस इसी तरह से मुझे पता चला कि मैं एक ऑटोइम्यून बीमारी से जूझ रही हूं, जिसका नाम लुपस है।
सच कहूं तो बीमारी के बारे में पता चलने के बाद मेरे या फिर मेरे परिवार में किसी का कोई रिएक्शन नहीं था क्योंकि हम सभी ने इस बीमारी का नाम पहली बार सुना था। उस वक्त हमें ये नहीं पता था कि ये बीमारी कितनी बुरी है। मुझे और मेरे परिवार को वक्त के साथ ही पता चला कि ये बीमारी कितनी बुरी है और इस बीमारी के साथ जीना कैसा है।
अब अगर मैं संभालने की बात करूं तो मेरा मानना है कि जिंदगी में जो भी दिक्कत और परेशानी है उसे अगर एक्सेप्ट कर लो तो जिंदगी और परेशानी दोनों ही आसान हो जाती है। साथ ही परिवार ने भी मेरी इस बीमारी के साथ जीना सीख लिया। मैं भी खुश रहती हूं और हंसती खेलती रहती हूं तो वो भी खुश रहते हैं। हालांकि, मम्मी पापा तो मम्मी पापा ही होते हैं, उन्हें कई बारी दुख होता है पर वो मुझे खुश देख कर खुश हैं। मुझे उनसे हिम्मत मिलती है और मुझसे उन्हें हिम्मत मिलती है।
लुपस (symptoms of lupus in hindi) चार तरह का होता है।
– SLE Lupus- Systemic lupus erythematosus
– DLE Lupus- Discoid lupus erythematosus
– Drug-induced lupus
– neonatal lupus
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लुपस (लुपस रोग) की वजह से मेरी ही नहीं बल्कि मेरे परिवार के अन्य सदस्यों का जीवन भी काफी हद तक प्रभावित हुआ है। मैं लुपस के कारण धूप में घर से बाहर नहीं निकल सकती, इस वजह से मैं रेगुलर कॉलेज से अपनी आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई। इसके अलावा मुझे मेरे पसंदीदा खेल, बैडमिंटन को भी छोड़ना पड़ा। मुझे बैडमिंटन खेलना बहुत पसंद था लेकिन लुपस के कारण मेरा शरीर मुझे अब इसे खेलने की इजाज़त नहीं देता है। वहीं कई बार मेरे कारण मेरे परिवार के सदस्यों को भी अपने प्रोग्राम कैंसिल करने पड़ते हैं।
हालांकि, फिर भी मैं हंसती खेलती ही रहना चाहती हूं। मैं भले ही अपनी जिंदगी या अपने करियर में कुछ ना बन पाऊं पर मैं ऐसे ही हंसते हुए जीना चाहती हूं। मैं अपनी जिंदगी से खुश हूं और मुझे खुद पर गर्व है। मैं बस इतना चाहती हूं कि मेरी वजह से कभी कोई दुखी ना हो। वैसे निशा हम आपके इस जज़्बे को सलाम करते हैं और जिंदगी के प्रति आपके इस सकारात्मक नज़रिए की भी सराहना करते हैं।
लुपस (वर्ल्ड ल्यूपस डे) के लिए दिए जाने वाले स्टेरॉयड के कई सारे साइड इफेक्ट होते हैं। हालांकि, व्यक्ति से व्यक्ति ये बदलते रहते हैं क्योंकि हर एक इंसान का शरीर अलग-अलग तरीके से रिएक्ट करता है। इनमें से कुछ सामान्य साइड इफेक्ट की बात करूं तो उनमें मूड स्विंग, वजन का बढ़ना, सूजन होना, आंखों में समस्या हो जाना, बोन डेंसिटी का कम होना और बार-बार पेट का खराब होना शामिल है।
वहीं लंबे समय तक स्टेरॉयड लेने के कारण इसके शरीर के कुछ हिस्सों पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ते हैं। पिछले सात सालों से मेरा लुपस का इलाज चल रहा है और इस वजह से मुझे बीच-बीच में स्टीरॉयड्स लेते रहना पड़ता है। ऐसे में लुपस और स्टीरॉयड्स की वजह से मेरी खाना निगलने की पाइप या यूं कहूं कि फूड पाइप खराब हो गई है। मैं अब बिना पानी के खाना नहीं निगल पाती हूं। इसके अलावा स्टेरॉयड का नकारात्मक असर शरीर के अन्य हिस्सों पर भी होता है।
यहां मैं आपको ये भी बताना चाहूंकि 2019 में पता चला था कि मुझे dermatomyositis भी है। सरल भाषा में कहूं तो ये लुपस का छोटा भाई है। यह भी एक तरह की ओटो इम्यून बीमारी है। इसमें मसल कमजोर हो जाती हैं और त्वचा पर रैश होने लगते हैं। साथ ही बुखार और स्टिफनेस आदि समस्याएं भी रहती हैं।
दरअसल, भारत में लुपस के बारे में बहुत अधिक लोगों को जानकारी नहीं है। यहां तक कि लुपस को लेकर भारत में अधिक जागरूकता भी नहीं है। भारत में लोग कैंसर, थाइरॉइड, शुगर या फिर टीबी जैसी बीमारियों के बारे में जानते हैं लेकिन लुपस जैसी ऑटोइम्यून बीमारी के बारे में नहीं जानते हैं। इस वजह से मैं चाहती हूं कि भारत में लुपस को लेकर जागरूकता फैलाई जाए। लोगों को इस बीमारी के बारे में बताया जाए।
इस बीमारी में ग्रसित लोग देखने में ठीक लगते हैं और इस वजह से सामने वाले कई बार ये नहीं समझ पाते हैं कि वो किस तकलीफ़ से गुजर रहे हैं। साथ ही इस बीमारी के बारे में जल्दी से पता नहीं चल पाता है। ऐसे में अगर आपके आस पास या फिर आपके परिवार में किसी को बार-बार बुखार या फिर दर्द आदि कुछ बीमारियां हो रही हैं तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं।
खुद को मॉटिवेट रखने का मेरा बहुत ही आसान सा फंडा है। मैं केवल आज में जीती हूं और रोज सुबह उठकर भगवान का शुक्रिया अदा करती हूं कि उन्होंने मुझे आज का दिन देखने का मौका दिया। मैं नहीं जानती कि कल क्या होगा लेकिन मैं ये जानती हूं कि आज मैं जी रही हूं और खुश हूं। मैं बस खुश रहने के बहानों की ही तलाश करती हूं। वैसे भी दुख हमेशा कम होने की उम्मीद दूसरों के दुख में ही देखता है। और भगवान मुश्किल हालात अपने सबसे मजबूत फ़ौजी को ही देता है।
इस वजह से जब भी मुझे लगता है कि अब नहीं हो पाएगा तो मैं एक मिनट के लिए अपनी आंखें बंद करती हूं और सोचती हूं कि कहां थी और कितना दूर आ गई हूं। जीवन सही में बहुत खूबसूरत है।
निशा हम उम्मीद करते हैं कि आप हमेशा खुश रहें और एक वॉरियर की तरह इस बीमारी से लड़ें। जीवन में कई मुकाम हासिल करें और अपने साथ-साथ दूसरों को भी मॉटिवेट करें।
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10 Dec 2020
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