ADVERTISEMENT
home / लाइफस्टाइल
सेनेटरी पैड के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं अनेक पैड वुमन

सेनेटरी पैड के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं अनेक पैड वुमन

सेनेटरी नैपकिन यानि पैड के इस्तेमाल के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म “पैडमैन” ने काफी बड़ा काम किया है। अब देश की बहुत सी लड़कियां न सिर्फ पैड के इस्तेमाल, बल्कि यह भी जान गई हैं कि गंदा कपड़ा इस्तेमाल करना अपने शरीर की स्वच्छता के लिए कितना गलत है। यही नहीं, इस फिल्म ने शहर से लेकर गांव और फिल्म से लेकर सोशल मीडिया हर तरफ महिलाओं और युवतियों को इस ओर जागरूक करने का काम किया है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार देश की 60 प्रतिशत से अधिक की महिला आबादी अभी भी सेनेटरी पैड की जगह सूती कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। महिलाएं इस कपड़े को लंबे समय तक बार- बार धोकर इस्तेमाल करती रहती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है। इस बात ने जहां पैडमैन फिल्म के असली चरित्र, अरुणाचलम मुरुगनंतन को परेशान किया था, वहीं ऐसी अनेक महिलाओं को भी इस बात ने परेशान किया है। यही वजह है कि देश के बहुत से रिमोट इलाकों में ऐसी अनेक महिलाएं, यानि पैड वुमन इस दिशा में काम कर रही हैं और बिना किसी पब्लिसिटी या पैसे की चाहत के भी पैड के इस्तेमाल के प्रति जागरूकता के अलावा जरूरतमंद महिलाओं को पैड बांट भी रही हैं। ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में हम आपको बता रहे हैं।

1. मध्य प्रदेश की पैड वुमन किरण वाजपेई ने महिलाओं  को दिखाई पैडमैन

MP Pad Woman

मध्य प्रदेश के ग्वालियर की पैड वुमन किरण वाजपेई उन गांवों में महिलाओं को सैनेट्री नैपकिन बांट रही हैं जहां इससे संबंधित सरकारी मदद अब तक नहीं पहुंची है। किरण वाजपेयी काफी समय से महिलाओं में पैड को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए काफी काम कर रही हैं। इसके तहत उन्होंने कई बार नैपकिन पैड से जीएसटी को खत्म करने की मांग कर की और अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन महिलाओं को दिखाई। पैड वुमन किरण वाजपेई सेनेटरी नैपकिन के बारे में शहर से लेकर गांव तक महिलाओं को जागरूक कर रही हैं।

ADVERTISEMENT

किरण वाजपेई ने कहती है, ‘मैंने पैड वुमन के नाम से एक संगठन बनाया है, जिसमें अनेक महिलाएं मिलकर रिमोट ग्रामीण इलाकों की, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली गरीब और बीमारियां झेल रही महिलाओं को तलाश करके उन्हें सेनेटरी पैड बांटने का काम करती हैं। किरण बताती हैं कि बहुत से ग्रामीण इलाकों की महिलाएं सेनेटरी पैड के बारे में जानती ही नहीं थी। वहां महिलाएं पीरियड के वक्त सिर्फ कपड़ा ही इस्तेमाल करती थीं। किरण ने यह काम पैडमैन फिल्म देखने के बाद से शुरू किया है और उनका लक्ष्य अगले तीन महीने में 1 लाख पैड मुफ्त में बांटना है, ताकि महिलाओं में पीरियड से संबंधित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़े। किरण के इस काम से इलाके की महिलाएं  बेहद खुश हैं और उन्हें अब सैनेटरी पैड की सही वैल्यू का पता लग गया है।

2. झारखंड के रांची की ‘पैड वुमन’ विद्या सहाय ने बनाया पैड बैंक

Ranchi Pad woman

झारखंड की राजधानी रांची के ज़ेवियर कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स ने अक्षय कुमार की पैडमैन फिल्म से प्रभावित होने के बाद मिलकर एक पैड बैंक बनाया है। यह पैडबैंक ज़ेवियर कॉलेज में पढ़ने वाली विद्या सहाय और उनके दोस्तों ने मिलकर बनाया है। ‘पैड बैंक में मिलने वाले सेनेटरी पैड को ये छात्र ग्रामीण इलाकों में बांटते हैं और इसके साथ ही इस बारे में जागरूकता भी पैदा कर रहे हैं। इनका कहना है कि झारखंड के ग्रामीण इलाकों में अब भी महिलाएं सेनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती और पीरियड के समय जरूरत पड़ने पर वो राख या गोबर के उपले का प्रयोग करती हैं। इस  ‘पैड बैंक’ में लोग सेनेटरी पैड या पैड के लिए पैसे डोनेट कर सकते हैं।

महिलाओं के ‘पीरियड्स’ को अभी भी समाज और परिवार के बीच एक ऐसा विषय माना जाता है, जिसके बारे में खुलकर बात नहीं की जा सकती। खासतौर पर जब किसी लड़की को पहली बार पीरियड शुरू होते हैं तो जानकारी के अभाव में उसे स्कूल में मजाक का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा पीरियड के दौरान महिलाओं के साथ परिवार में अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है। उस दौरान उनका घर की रसोई और कुछ अन्य जगहों पर प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है। कई जगह तो पीरियड्स के दौरान उन्हें अकेला रहना पड़ता है।

ADVERTISEMENT

3. गोवा की पैड वुमन जयश्री पवार लेकर आईं हेल्थ हाईजीन रिवॉल्यूशन

Goa Pad woman

गोवा में महिलाओं का एक ग्रुप भी तमिलनाडु के रीयल लाइफ पैडमैन अरुणाचलम मुरुगनंतन के पदचिह्नों पर चलते हुए पैडवुमन बनकर महिलाओं में पैड के इस्तेमाल के प्रति जागरूकता फैला रहा है। अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन को देखने के बाद गोवा का यह ग्रुप इसलिए खुश हो गया, क्योंकि उन्हें यह कहानी बिलकुल अपनी जैसी लगी। करीब तीन साल पहले इस ग्रुप ने यहां गोवा के मलगांव के बिकोलिम तालुका में मुरुगनंतन से प्रेरित होकर पाइन वुड पेपर से बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड बनाना का काम शुरू किया था।

इन महिलाओं की मुखिया जयश्री पवार ने बताया कि इन सैनेटरी पैड का नाम उन्होंने सखी रखा है। सखी नाम के यह बायोडिग्रेडेबल पैड देश ही नहीं विदेशों तक सप्लाई किये जाते हैं। दरअसल कुछ साल पहले किसी के माध्यम से जयश्री मुरुगनंतन से मिली थीं और इसके बाद उन्होंने 10 महिलाओं का एक ग्रुप बनाया। काफी संघर्ष के बाद बायो डिग्रेडेबल पैड बनाने के साथ महिलाओं में जागरूकता फैलाने का उनका उद्देश्य काम कर गया। जयश्री का कहना है कि हालांकि शुरूआत में विज्ञापनों वाले पैड्स के मुकाबले उनके पैड को बेचने में उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा, लेकिन फिर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर काम सही तरह से चल निकला और यहां से उन्हें देश के ही नहीं, बल्कि विदेशी ग्राहक भी मिल गए। यह ग्रुप फिलहाल चार मशीनों से प्रतिदिन 100 पैड बना रहा है।

4. असम की पैड वुमन ऐमनी तुमुंग ने शुरू किया मेंस्ट्रुअल हाईजीन मूवमेंट

Pad woman Assam - Abdul Gani

ADVERTISEMENT

(Photo by Abdul Gani)

असम की राजधानी गुवाहाटी के पामोही गांव में कार्बी जनजाति इलाके में काफी पिछड़ी हुई मानी जाती है, जहां पीरियड के बारे में बात करना वर्जित माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ ही महीनों में यहां एक बड़ा बदलाव आया है। अब वहां की लड़कियां न सिर्फ पीरियड के मुद्दे पर बात करने लगी हैं, बल्कि रियूजेबल सैनिटरी पैड का इस्तेमाल भी करने लगी हैं। उन्हें ये बात भी पता है कि अगर उन्होंने पैड की जगह गंदा कपड़ा इस्तेमाल किया तो कैसी- कैसी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। यह बदलाव पारिजात एकेडमी की ऐमनी तुमुंग और उत्तम तेरॉन द्वारा इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने की वजह से आया है। उन्होंने इस इलाके में हेल्थ और हाईजीन पर पब्लिक गैदरिंग डिस्कशन आयोजित करने के साथ- साथ रियूजेबल सैनिटरी पैड्स भी फ्री में बांटे।

इससे पहले इलाके की गरीब और अशिक्षित महिलाएं माहवारी के मुद्दे पर पुरुषों के सामने कोई बात नहीं कर सकती थीं और पीरियड के समय गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन इलाके में पिछले करीब एक दशक से काम कर रही पारिजात एकेडमी ने जब इस मुद्दे पर लोगों को एकत्रित करके समझाया तो शुरू में कुछ परेशानी के बाद लोगों को समझ आने लगा कि सैनिटरी हाईजीन कितनी जरूरी होती है। असम में करीब 41% ग्रामीण महिलाएं अब पीरियड के समय हाईजीनिक तरीकों का इस्तेमाल करने लगी हैं, लेकिन बाकी महिलाएं अब भी वही पुराने तरीके यानि गंदे पैड या अखबार के कागज का इस्तेमाल करती हैं। परिणामस्वरूप अनेक तरह की बीमारियां फैलती रहती हैं।

एमनी बताती हैं कि शुरूआत में उन्होंने अपने ट्रेनिंग सेंटर में स्कूल की 15 लड़कियों को दोबारा इस्तेमाल करने वाले पैड बनाना सिखाया, जिसमें शील्ड और लाइनर होते हैं। इन पैड को अच्छी तरह से कैसे धोएं और सुखाएं, यह भी एकेडमी में सिखाया जाता है। इस तरह से इन पैड को करीब तीन साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। एमनी गरीबी से नीचे वाली महिलाओं को यह पैड फ्री में भी बांटती हैं।

ADVERTISEMENT

5. गुरुग्राम की पैड वुमन ने स्कूलों में सिखाई बेसिक हाईजीन

Gurugram Pad woman 

गुरुग्राम के धौला और झामवास गांवों समेत आसपास के गांवों में भी सैनेटरी पैड बनाने और मुफ्त में बांटने का सोशल रिवॉल्यूशन चल रहा है। अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन के आने से पहले ही गुरुग्राम और मेवात की कुछ महिलाओं ने जब सैनेटरी हाईजीन के बारे में जागरूकता की जरूरत महसूस की तो उन्होंने कुछ करने के बारे में सोचा। यह पैड वुमन अब केंद्र सरकार के डिस्ट्रीब्यूशन प्रोजेक्ट के तहत काम कर रही हैं। शुरूआत में जरूरतमंद महिलाओं को पैड कम कीमत पर उपलब्ध कराए जाते थे लेकिन महिला और बाल विकास राज्यमंत्री कविता जैन की घोषणा के बाद पैड मुफ्त में बांटे जाने लगे। इस इलाके में अब एक नहीं, आठ पैड वुमन फाइबर और कॉटन के पैड बनाने का काम कर रही हैं, जिन्हें आसपास के इलाके में बांटा भी जाता है। इन पैड को सखी के नाम से निस्वार्थ कदम नामक एनजीओ बनवा रहा है। कहा जाता है कि पैड बनाने की यह मशीन भी मुरुगनंतन से खरीदी गई है।

एक पैड वुमन बबिता का कहना है कि पहले उसे मालूम ही नहीं था कि पैड जैसी कोई चीज भी होती है। लड़कियां उन दिनों में स्कूल नहीं जाती थीं, क्योंकि यूनिफॉर्म पर दाग लगने का डर होता था, लेकिन अब पैड से होने वाले आराम को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

6. महाराष्ट्र के पूना की पैड वुमन अनुपमा सेन ने सिखाया मशीन से पैड बनाना

Pune Pad woman

ADVERTISEMENT

करीब तीन साल पहले वर्ष 2015 में पुणे मेट्रो ईस्ट क्लब ने महाराष्ट्र के गांवों की महिलाओं की सैनेटरी नैपकिन की समस्या को हल करने के बारे में सोचा। इसके लिए बच्चों की डॉक्टर और क्लब की मेम्बर अनुपमा सेन सस्ते पैड की मशीन बनाने वाले पैडमैन मुरुगनंतन से मिलीं। उन्होंने उनसे सीखा कि बायोडिग्रेडेबल पैड की मशीन कैसे काम करती है। इसके बाद जिला परिषद से मुलाकात करके अनुपमा ने पैड की एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू की। शुरूआत में उन्होंने 10 महिलाओं को पैड बनाने सिखाये। उस वक्त एक पैड की कीमत 1 रुपये आती थी, जिसे 2 रुपये में  बेचा जाता था, ताकि बनाने वाली महिलाओं को भी कुछ मिल सके। जल्दी ही पैड बनाने का काम चल निकला। सहेली के नाम से बिकने वाले यह पैड बायोडिग्रेडेबल होने के साथ-साथ सस्ते भी थे। लेकिन इन पैड में एक समस्या है, इनमें विंग्स न होना। इस समस्या को भी सहेली कुछ डोनेशन जोड़कर और नई मशीन खरीद करे खत्म करने की सोच रही है। सहेली नाम का यह एनजीओ जरूरतमंद लड़कियों को पूरे साल के लिए पैड सिर्फ 500 रुपये में सप्लाई करता है। इसके लिए लोग पैसा दान देते हैं और यह पैसा लड़कियों को पैड सप्लाई करने पर इस्तेमाल किया जाता है। पैड को ज्यादा से ज्यादा आरामदेह बनाने के लिए समय- समय पर नये नये प्रयोग भी किये जाते हैं।

(जानकारी और फोटो: feminisminindia.com, moneycontrol.com, hindi.eenaduindia.com,  scroll.in, hindustantimes.com, timesofindia.indiatimes.com से साभार)

इन्हें भी देखें –

10 Apr 2018

Read More

read more articles like this
good points

Read More

read more articles like this
ADVERTISEMENT