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स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल ‘अनुपमां’ (Anupamaa) अपने शुरुआती दिनों से ही दर्शकों का पसंदीदा बना हुआ है। टीआरपी चार्ट पर भी शो नंबर 1 के पायदान पर टिका रहता है। सीरियल में एक ऐसी महिला ‘अनुपमां’ की कहानी दिखाई गई है, जिसका जीवन घर की चार दीवारों तक सीमित है और जो घर के काम, बड़ों की सेवा, बच्चों का लालन-पालन और पत्नी धर्म निभाते हुए अपनी जिंदगी के 25 साल गुजार चुकी है। मगर जब उसे पता चलता है कि उसका पति पिछले कई सालों से उसे धोखा देकर अपने ऑफिस में काम करने वाली एक लड़की से एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है तो उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल जाती है। इस धोखे से उबरने के लिए ‘अनुपमां’ अपने पैरों पर खड़े होने का निर्णय करती है और कम समय में ही एक स्कूल में टीचर बनने के अलावा ऑनलाइन डांस क्लासेज भी चलाने लगती है।
एक नारी के आत्मनिर्भर बनने की कहानी कहता यह शो लोगों की ज़ुबां चढ़कर बोल रहा है। शो का फॉर्मेट सभी को काफी पसंद आ रहा है। खासतौर पर उन महिलाओं को जो ‘अनुपमां’ की तरह अपना जीवन घर की चार दीवारी में बिता रही हैं और घर के काम करते-करते अपनी ज़िंदगी को जी रही हैं। बहुत अच्छी बात है। मगर क्या आपने सोचा है एक तरफ जहां या सीरियल एक नारी के आत्मनिर्भर बनने की कहानी कहता है वहीं दूसरी ओर डंके की चोट पर पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा भी दे रहा है। शो देखते समय हो सकता है आपके मन में ये बातें न आई हों। इसलिए हम आपका ध्यान ज़रा इस और भी खींचना चाहते हैं। तो शुरू करें…।
घर का काम सिर्फ बहुएं करेंगी
सीरियल के एक डायलॉग में किंजल काव्या को चिढ़ाने के लिए कहती है कि घर के काम तो बहुएं करती हैं अभी तक मम्मी और मैं काम करती थी अब कल से मैं और काव्या घर के सारे काम करेंगी। बात भले ही मजाक में कही गई हो लेकिन ये किस किताब में लिखा है कि घर के काम केवल घर की बहुएं ही करती हैं और किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है क्या। जब सुपर हिट शो होते हुए आप खुद ऐसी बातें दिखाएंगे तो देखने वालों के मन में इसका बुरा असर नहीं पड़ेगा क्या।
बेटी घर के कोई काम नहीं करती
सीरियल में अनुपमां की एक बेटी भी दिखाई गई है, जिसकी उम्र लगभग 15 या 16 साल है। आज भी कई घरों में बहुओं से तो आते ही यह उम्मीद की जाती है कि वो घर के सारे काम संभाल ले लेकिन बेटियों को नाज़ों के साथ पाला जाता है। क्या बेटी घर के काम में अपनी मां और भाभी की मदद नहीं करा सकती। या फिर उसके भी बहू बनने का इंतज़ार किया जा रहा है, कि ससुराल जाकर ही काम करेगी। इतना बड़ा सीरियल होने के बावजूद घर के काम को लेकर बहू और बेटी में इतना फर्क क्यों?
बेटों का काम सिर्फ नौकरी करना
‘अनुपमां’ सीरियल में घर के कामों को एक मुद्दा बनाकर दिखाया गया है। मगर बेटी के साथ यहां दो बेटे भी घर के किसी काम में हाथ नहीं बटांते। तोषू और समर बस घर में औरतों के बीच हो रही लड़ाई और गॉसिप का मजा लेते हैं। उन्होंने कभी अपनी मां, भाभी या बीवी की घर के कामों में कोई मदद नहीं की। एक बार को वनराज और बाबूजी की जनरेशन को छोड़ भी दें मगर समर और तोषू तो इसी जनरेशन के हैं, वो घर के कामों में मदद क्यों नहीं करते।
बहू नौकरी भी करे और घर के काम भी
पितृसत्तात्मक सोच की तरह इस सीरियल में भी घर की बहू से यह उम्मीद की जाती है कि वो 8-9 घंटे ऑफिस का काम करने के बाद घर के भी सारे काम करे। काव्या ने ऐसा करने से मना कर दिया तो वो विलेन बन गई। माना कि कई पैमानों में काव्या गलत है लेकिन अगर वो ऑफिस के साथ घर के काम नहीं करना चाहती तो उसे सीरियल में बुरा साबित करने पर क्यों तुले हैं। वनराज, तोषू और समर भी तो नौकरी करते हैं, वो घर आकर काम में मदद क्यों नहीं करते। जबकि अनुपमां और किंजल अच्छी हैं क्योंकि वो ऑफिस के साथ घर के भी सारे काम करती हैं। क्या हम औरतें इंसान नहीं होतीं। कहां लिखा है कि ऑफिस से घर आकर सारे काम सिर्फ हम औरतें ही करेंगी। सीरियल में क्यों बेवजह इस सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है।
क्या बेमन घर के काम कराना दबाव डालना नहीं
वट सावित्री पूजा के एक सीन में काव्या अपने पति वनराज से उसके लिए व्रत रखने को कहती है। उसका तर्क है कि तोषू ने भी किंजल के लिए व्रत रखा है तो तुम भी मेरे लिए व्रत रखो। बदले में वनराज जवाब देता है कि तोषु ने व्रत अपनी मर्जी से रखा है जबकि तुम मझसे जबरदस्ती व्रत रखवा रही हो। तो क्या यही बात घर के कामों को लेकर काव्या पर लागू नहीं होती। अगर यह जबरदस्ती है तो वनराज भी तो काव्या के साथ जबरदस्ती ही कर रहा। उसे बार-बार अनुपमां और किंजल का उदाहरण देकर यह कहना कि वो भी तो ऑफिस के साथ घर के काम करती हैं तो तुम क्यों नहीं कर सकतीं। आखिर यह भी तो एक तरह का दबाव डालना ही हुआ। हर कोई एक नहीं होता। अनुपमां और किंजल अपनी खुशी से ऐसा करती हैं लेकिन अगर काव्या अलग है तो उससे भी यही उम्मीद क्यों। बदले में अगर वो मना कर देती है तो बन जाती है बुरी बहू।
हमारे समाज में भी तो यही होता आ रहा है। अगर घर की बहू ऑफिस से थकी-हारी घर आती है तो कोई उसे चाय पूछना तो दूर एक गिलास पानी तक नहीं पूछता। उल्टा उससे उम्मीद की जाती है कि वो ही खाना बनाये, कपड़े धोये और ऑफिस के साथ घर के बाकी काम भी करे। वहीं जब बेटा ऑफिस से घर आता है तो मां अपने पल्लू से उसका पसीना पोछने को भी तैयार रहती है, जैसे वो एसी वाले ऑफिस में काम करके नहीं बल्कि खेत में हल जोतकर आया हो। आज जब लड़कियां भी घर के साथ बाहर की जिम्मेदारी संभाल सकती हैं तो लड़के क्यों नहीं ऑफिस से आकर घर की जिम्मेदारी में अपना हाथ बटांते। कुछ ऐसा ही तो दिखा रहे हैं सीरियल ‘अनुपमां’ में। अगली बार सीरियल देखते समय शायद आपके मन में भी ये बातें आयें।
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26 Jun 2021
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