मुंबई जैसी महानगरी में भी किसी लड़की को किराये पर फ्लैट देने के लिए सिर्फ इसलिए मना कर दिया जाता है कि वह एक बैचलर है, एक्टर है और मुस्लिम है। ‘ये है मोहब्बतें’ में दिव्यांका त्रिपाठी की ननद सिमी भल्ला का किरदार निभाने वाली शिरीन मिर्जा को मुंबई में अपने लिए फ्लैट ढूंढने में परेशानी हो रही है।
बैचलर्स के लिए यह कहां का कानून?
जयपुर की शिरीन एक्टिंग में करियर बनाने के लिए 8 साल पहले मुंबई आई थीं। ‘ये है मोहब्बतें’ में सिमी का किरदार निभाकर उन्हें घर-घर में पहचाना जाने लगा है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक लंबा पोस्ट शेयर कर अपनी परेशानी के बारे में बताया है। उसे पढ़कर समझ में आया कि सोसाइटी के बिना मतलब के ये कायदे-कानून दरअसल सिलेब्रिटी और आम लोग, हर किसी पर लागू होते हैं। वे मुंबई में अपने रहने के लिए किराये पर एक फ्लैट ढूंढ रही हैं और उनका दावा है कि एमबीए (मुस्लिम, बैचलर और एक्टर) होने के कारण वे अब तक अपनी इस कोशिश में नाकाम रही हैं। अब समय आ गया है कि लोग अकेले रहने वालों की परेशानी को समझें। देश में ऐसे बहुत से बैचलर्स हैं, जो पढ़ाई या नौकरी के सिलसिले में घर से दूर रहते हैं। ऐसे में अगर हर कोई उन्हें उनके बैचलर होने या धर्म/प्रोफेशन के बेसिस पर किराये पर रखने से इनकार कर देगा तो वे कहां जाएंगे?
शिरीन ने बेबाकी से रखी अपनी बात
शिरीन मिर्जा ने मुंबई में अपने शुरूआती दिनों की एक फोटो साझा करते हुए लिखा, ‘मैं मुंबई में एक घर लेने के काबिल नहीं हूं, इसकी वजह है मेरा एमबीए (मुस्लिम, बैचलर और एक्टर) होना। यह फोटो उस समय की है, जब मैं मुंबई में रहने का सपना लिए इस शहर में आई थी और आज यहां 8 साल बिताने के बाद मुझे यह सुनने को मिल रहा है… पहली बात, हां मैं एक्टर हूं, मैं शराब नहीं पीती, सिगरेट नहीं पीती, मेरा कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है। फिर दूसरे लोग मुझे मेरे प्रोफेशन की वजह से कैसे जज कर सकते हैं? दूसरी बात, मैं जब भी ब्रोकर को फोन करती हूं तो वे मेरा बैचलर स्टेटस जानकर किराया बढ़ाकर बताते हैं और कहते हैं कि बैचलर होने की वजह से घर नहीं मिलेगा। तीसरी बात कि लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं हिंदू हूं या मुस्लिम। मुझे समझ नहीं आता कि इसका क्या मतलब है। हमारे खून में तो कोई अंतर नहीं है।’ हर तरफ से ना सुनने के बाद वे जानना चाहती हैं कि आखिर वे इस शहर का हिस्सा हैं भी या नहीं!
अब तो हमें जीने दो!
शिरीन मिर्जा के इस पोस्ट ने मुझे दिल्ली में अपने शुरूआती दिनों की याद दिला दी। मैं भी अपनी रूम पार्टनर के साथ ऐसे ही गली-गली, सोसाइटी-सोसाइटी भटकती थी। कहीं लोगों को मेरा मीडिया के क्षेत्र में होना नहीं भाता था तो कहीं उन्हें इस बात से आपत्ति थी कि कभी-कभी मैं रात में 1-2 बजे तक भी घर पहुंचती हूं। मुझे अच्छी तरह से याद है कि एक लैंडलेडी ने हम दोनों को बहुत ही अजीब निगाहों से घूरकर देखा था, जैसे कि हम घर ढूंढ कर कोई गलती कर रहे हों। फिर मजबूरी में हम दोनों एक ऐसे घर में रहने लगे थे, जिसमें जगह के नाम पर कुछ नहीं था पर किराया डबल…। कई पीजी में खाना या टाइमिंग की समस्या होने के कारण वहां रहना भी मुसीबत का सबब बन जाता है। ऐसे में अगर कोई लड़की पढ़ाई या जॉब के सिलसिले में अपने घर, अपने शहर, अपने परिवार से दूर रह रही है तो क्या वह इन नियम-कायदों के कारण सड़कों पर रहे या एक्स्ट्रा रेंट देकर अपने मकान मालिक का एहसान मानें?
मेरे ख्याल से बैचलर को फ्लैट रेंट पर देने में ऐसे गैरकानूनी कानून/नियम नहीं बनाए जाने चाहिए। कुछ लोगों को लगता है कि बैचलर को फ्लैट किराये पर देने से सोसाइटी में शोर-शराबा बढ़ेगा, वे अपनी हरकतों से फैमिली वाले लोगों को परेशान करेंगे… पर दरअसल ऐसा होता नहीं है। उन्हें भी पता होता है कि उनके आसपास और भी लोग रह रहे हैं, इसलिए अब ज़रूरी है कि लोग अपनी धारणा बदलें। मेरा सभी से निवेदन है कि बैचलर्स को भी नॉर्मल लोगों की तरह जिंदगी जीने का हक दें!
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