हृदय को विभिन्न शारीरिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों के केंद्र में रखता है आयुर्वेद। उदाहरण के लिए, दिल को आयुर्वेद की मर्मा थेरेपी में केंद्रीय माना जाता है। इसी तरह दिल में रहने वाले अनाहत चक्र भी सभी सात चक्रों के केंद्र में होते हैं। ऊर्जा और प्रतिरक्षा का सार ओजस भी दिल में ही स्थित होता है।
सभी जानते हैं कि आपके अस्तित्व के लिए हृदय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन एक खुश और संपूर्ण जीवन जीने के लिए, आपको सिर्फ दिल ही नहीं, बल्कि ‘स्वस्थ दिल’ की जरूरत होती है। स्ट्रेस, चिंता, तनाव, रक्तचाप, गलत आहार और गलत जीवन शैली विकल्प हमारे दिल के स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करते हैं। टैकीकार्डिया, ब्रैडीकार्डिया, फाइब्रिलेशन और कमजोर दिल जैसी कॉमन दिल की बीमारियां हमें यह बताती हैं आपका हृदय सही ढंग से काम नहीं कर रहा है।
आयुर्वेद में दिल को आत्मा और भावनाओं का स्थान माना जाता है। तो, एक स्वस्थ दिल के लिए, आपकी भावनाओं (भाव) और आत्मा (प्राण) दोनों को स्वस्थ होने की आवश्यकता है, और यही वह बात है जिसकी आयुर्वेद में सिफारिश की गई है।
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भावनाओं और दिल का संबंध
दिल भावनात्मक अशांति के प्रति संवेदनशील होता है। जब आपके दिमाग पर भावनाओं का हमला होता है, तो यह दिल पर भी प्रभाव करता है। आपके अंदर लगातार हो रही भावनात्मक उथल-पुथल आपके दिल के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती है।
आयुर्वेद की भाषा में कहा जाए तो जब आप भावनाओं में बह रहे होते हैं, तो आपका दिमाग राजस (जुनून, क्रोध, लगाव, इच्छा, इत्यादि) या तामस (मूडी, ईर्ष्या, अपराध, शर्म, शर्मिंदगी इत्यादि) के प्रभाव में होता है और ये स्थितियां आपके अच्छे स्वस्थ की ओर इशारा नहीं करती हैं।
लेकिन जब आपका मन सत्त्व की स्थिति में होता है तो स्वास्थ्य बहुत अच्छा माना जाता है और आप आनंद, शांति, उत्साह और उत्साह का अनुभव करते हैं। अब सवाल यह है कि आप सत्त्व कैसे प्राप्त कर सकते हैं? इसका सरल जवाब ‘धीरे-धीरे’ है। खुद को वास्तविकता की जमीन पर रखें और आत्मनिरीक्षण करने के लिए कुछ समय निकालें।
शोरगुल से बाहर निकलकर, चुप्पी और शांति की तलाश करें। उन लोगों के साथ की तलाश करें जिन्हें आप शांत और आश्वस्त करने वाला मानते हैं। यह एक तूफान के गुजर जाने जैसा होता है, एक बार आपका दिमाग सत्त्विक हो जाए तो आप जरूर शांति का अनुभव करेंगे और स्वस्थ दिल के लिए आपको बस यही चाहिए। कुछ यूं करें हाइपरटेंशन को मैनेज –
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अग्नि और अमा को मैनेज करें
यदि आपका शरीर स्वस्थ है तो यह निश्चित रूप से आपकी भावनाओं को सत्त्व की स्थिति में रखने में मदद करेगा। आयुर्वेद में स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए दो चीजों को महत्व दिया गया है – मजबूत अग्नि (पाचन) और अमा (विषाक्त पदार्थ) की अनुपस्थिति। जब दोनों सही होते हैं, तो आपका शरीर ओजस पैदा करता है, यानि आपकी इम्युनिटी काफी अधिक है, आपको कोई बीमारी नहीं है और एक रोगग्रस्त शरीर का कोई मनोवैज्ञानिक बोझ भी नहीं है।
इससे आपका दिल हल्का और चिंता मुक्त करेगा जिससे आप वह खुशियों को एंजॉय कर सकें जो आपके लिए जीवन में स्टोर हो। याद रखें, तनाव और चिंता मानसिक अमा के ही परिणाम होते हैं। एक बार जब आप इसे दिमाग से हटाना सीख जाएं, तो आपके दिमाग या दिल के बारे में चिंता करने की कोई वजह ही नहीं होगी। यदि आप अामा को कम करना चाहते हैं, तो जान लें कि शरीर को पोषण देने के लिए खाए जाने वाला भोजन भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। देखते हैं कि आप यह कैसे कर सकते हैं।इसे भी पढ़ें – चेहरे पर ग्लो लाने के लिए टॉप 10 आयुर्वेदिक स्किन केयर रूल्स
अगर आपको अपने हृदय से संबंधित कोई संदेह हो, तो इसे अनदेखा न करें। तुरंत एक हृदय विशेषज्ञ से परामर्श जरूर लें।
(इस आर्टिकल के लेखक जिवा आयुर्वेद के निदेशक डॉ प्रताप चौहान हैं जो एक सार्वजनिक वक्ता, टीवी व्यक्तित्व और आयुर्वेदचार्य हैं। 1992 से वे दुनिया भर में आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने के लिए समर्पित हैं।)