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मिसाल: पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते हुए असम का ये स्कूल फीस के बदले बच्चों से लेता है प्लास्टिक वेस्ट

मिसाल: पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते हुए असम का ये स्कूल फीस के बदले बच्चों से लेता है प्लास्टिक वेस्ट

असम में स्थित अक्षर फॉरम एक ऐसा स्कूल है, जो आपने शायद ही अपने जीवन में देखा होगा। जी हां, अगर आप इस स्कूल के बाहर बच्चं को हाथ में प्लास्टिक का सामान लिए देखें तो आपको हैरान होने की जरूरत नहीं है। साथ ही अगर आप किसी क्लास में हर उम्र के बच्चों को देखें तो भी आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि ये स्कूल सामान्य स्कूलों से काफी अलग है और ये इनका डेली रूटीन है। अक्षर फॉरम में ये एक सामान्य दिन है। दरअसल, ये स्कूल असम के गुवाहाटी के एक छोटे से गांव पमोही में स्थित है जिसके को-फाउंडर परमीता शर्मा और मजीन मुख्तर हैं। 

परमीता और मजीन ने 2016 में अक्षर फॉरम की शुरुआत की थी। इस स्कूल को शुरू करने का उद्धेय उन बच्चों को शिक्षित करना है जो सामान्य स्कूल नहीं जा सकते हैं क्योंकि उनके पास स्कूल जाने के पैसे नहीं हैं। अक्षर फॉरम का उद्धेय बच्चों को अपनी जिंदगी के लिए कमाना सिखाना है और वो भी सरकार के प्रति जिम्मेदार बनाते हुए। यहां किसी सामान्य तरीके से पढ़ाई नहीं होती है – बल्कि इस स्कूल में बच्चें खुद ही अपनी क्रिएटिविटी को एक्सप्लोर करते हैं और खुद ही अपनी लिमिट को सेट करते हैं। 

क्यों बाकि स्कूल से अलग है अक्षर फॉरम

अक्षर फॉरम में पढ़ाने के तरीके से लेकर सभी क्लास में अलग-अलग बच्चों से लेकर यहां का फीस तक का तरीका भी बाकि स्कूलों से काफी अलग है। हम कह सकते हैं कि यह स्कूल आउट ऑफ द बॉक्स सोचता है और इस वजह से इस स्कूल में बच्चों से फीस के तौर पर ब्लास्टिक वेस्ट लिया जाता है। इस बारे में Homegrown से बात करते हुए अक्षर के वाइस प्रेसीडेंट ने कहा कि ”यह आइडिया हमें अक्षर फॉरम के रिसाइक्लिंग प्रोग्राम से आया”।

पिछले काफी वक्त से यह स्कूल ड्राय प्लास्टिक वेस्ट इकट्ठा करते आ रहा है और फिर स्कूल ने ये काम बच्चों को सौपने का सोचा। वाइस प्रेसीडेंट बोरठाकुर ने कहा, इस आइडिया का मकसद बच्चों को यह सिखाना है कि इको फ्रेंडली तरह से कैसे जीया जा सकता है। यहां का पूरा रिसाइक्लिंग प्रोग्राम बच्चे हैंडल करते हैं। वो भी शुरुआत से लेकर अंत तक। वो दूसरों के घर जाते हैं और वहां से प्लास्टिक वेस्ट इकट्ठा करते हैं, इसे स्कूल लाते हैं और अलग-अलग तरह से इसे रिसाइकिल करते हैं। इसके बाद स्कूल ने तय किया कि बच्चों से फीस के तौर पर केवल ड्राय प्लास्टिक वेस्ट ही लेगा। इस बारे में परमीता ने बेटर इंडिया से बात करते हुए कहा, ”यहां प्लास्टिक वेस्ट इसलिए जलाया जाता था ताकि यहां लोग खुद को गर्म रख सकें। इसे बदलने के लिए हमने बच्चों को प्लास्टिक वेस्ट स्कूल फीस के तौर पर लाने के लिए प्रेरित किया।”

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पमोही गांव में कई लोग अफने बच्चों को स्कूल की बजाए पत्थर की खदानों में भेजते हैं ताकि वो कुछ पैसे कमा सकें। इस चीज को अक्षर फॉरम अपने स्कूल से बदलने में लगा हुआ है। वो यहां के लोगों को प्लास्टिक वेस्ट फीस के रूप में देने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है ताकि अधिक से अधिक बच्चे स्कूल आ सकें और उनके परिवारों पर फीस देने का प्रेशर भी न आए। साथ ही यह इस छोटे से गांव के पर्यावरण की परेशानी को भी दूर करने की दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए वो घर की प्लास्टिक को रिसाइकिल कर रहे हैं लोगों कौ पर्यावरण के प्रति प्रोत्साहित कर रहे हैं। 

अक्षर फॉरम हमेशा से ही अलग रहा है। बाकि स्कूलों की तरह ये बच्चों को रोकने में विश्वास नहीं करता है और उन्हें किसी एक करिकुलम को फॉलो करने के लिए नहीं कहता है। इसकी जगह ये स्कूल ध्यान रखता है कि बच्चे अपनी कैपेसिटी के मुताबिक अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें। यहां बच्चे ही एक दूसरे को पढ़ाते हैं और यहां पढ़ाई उनके लिए किसी फन टाइम से कम नहीं है। इसके साथ अब प्लास्टिक वेस्ट को कलेक्ट करने से ये स्कूल बच्चों के लिए पढ़ाई कर पाना और आसान बना रहा है। असम के इस छोटे से गांव में आखिकार चीजें बदल रही हैं और ये स्कूल सही में किसी मिसाल से कम नहीं है। 

17 Oct 2023

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