हर साल दिवाली के अगले दिन लोग अपने घरों में गोवर्धन पूजा करते हैं। कई लोगों के लिए इस पूजा का विशेष महत्व है। इसके अलावा मथुरा के नजदीक स्थित गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat) की हर साल लाखों लोग परिक्रमा के लिए जाते हैं। गोवर्धन पर्वत का पौराणिक कथाओं में काफी महत्व है और इससे जुड़ी कुछ कथाएं काफी प्रचलित हैं। इनमें से एक कथा हनुमान से जुड़ी हुई है। वहीं एक अन्य कथा भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी हुई है। हालांकि, यदि आप नहीं जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत को एक ऋषि द्वारा श्राप दिया गया था तो चलिए आपको बताते हैं कि इसके पीछे कौन सी पौराणिक कथा है। उससे पहले आपको बता दें कि 2020 में गोवर्धन पूजा 15 नवंबर को है।
पुलस्त्य ऋषि ने दिया था गोवर्धन पर्वत को श्राप- Why Rishi Pulastya Cursed Govardhan Parvat in Hindi
गोवर्धन पर्वत और हनुमान जी को लेकर भी है एक मान्यता
एक अन्य मान्यता ये है कि जब राम सेतु बांध का कार्य चल रहा था तो हनुमान जी इस पर्वत को उत्तराखंड से ला रहे थे, लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतु बांध का कार्य पूरा हो गया है। यह सुनकर हनुमान जी ने इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दिया और वापस दक्षिण की ओर लौट गए।
भगवान श्रीकृष्ण ने उठा लिया था गोवर्धन पर्वत
माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। उन्होंने मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को अति जलवृष्टि से बचाने के लिए इस पर्वत को उठाया था और सभी लोगों को पर्वत के नीचे शरण दी थी। सभी हिंदुओं के बीच इस पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के लिए देश और विश्व से कृष्ण भक्त, वैष्णव जन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। गोवर्धन की परिक्रमा 7 कोस यानी कि लगभग 21 किलोमीटर की है।
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