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#मेरा पहला प्यार : सरहदों के फासले मिटा देने वाली मासूम मोहब्बत की कहानी

Spardha Mann  |  Mar 22, 2018
#मेरा पहला प्यार : सरहदों के फासले मिटा देने वाली मासूम मोहब्बत की कहानी

प्यार के कई नाम हैं, कुछ इसे इश्क के नाम से जानते हैं तो कुछ मोहब्बत। प्यार में आई विभिन्न परिस्थितियां आैर मनोभाव व्यक्ति के मन को कभी प्रेम से लबालब कर जाते हैं तो कभी यह प्यार अधूरा ही रह जाता है। आज की मेरा पहला प्यार – सीरीज में यह चिट्ठी हमें चेक देश के इलेमनिस्ते शहर से काव्या कूसेरवा ने भेजी है। काव्या मूलत: चेक देश की रहने वाली हैं लेकिन हाल ही में भारत की सैर पर आई थीं। काव्या को एक भारतीय लड़के से प्यार हुआ आैर यह प्यार काव्या को भारत खींचकर ले आया। दो देशों की दूरी के बीच हुए इस मासूम से प्यार की कहानी पढ़ें काव्या की ही जुबानी।

मेरा असली नाम क्लारा कूसेरवा है लेकिन भारत से मुझे इतना प्यार है कि मैंने अपना नाम बदलकर काव्या कर लिया। मेरे सारे डॉक्यूमेंट्स पर यही नाम है, पासपोर्ट पर भी। इलेमनिस्ते में भी सभी लोग मुझे काव्या नाम से ही पुकारते हैं। हां, तो मुझे प्यार का अहसास पहले भी एक- दो बार हो चुका है लेकिन यह प्यार जो मुझे भारत खींच ले आया, यह उन सबसे अलग है। आठ साल पहले मैंने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अपना अकाउंट खोला।

फ्रेंड रिक्वेस्ट हुई एक्सेप्ट

जाहिर सी बात है दोस्त तो बनाने ही थे। चूंकि भारत से मेरा विशेष लगाव रहा है तो न जाने कैसे मुझे नितिन का प्रोफाइल दिखा आैर जिज्ञासावश मैंने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी और कुछ ही दिनों में मेरे फ्रेंड रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया गया। नितिन से मेरी बातें होती रहती थी, लिहाजा मैं भारत के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने लगी। अब तक मुझे जो भी पता था, वह सिर्फ टीवी आैर इंटरनेट के जरिए था। लेकिन अब मैंने जमीनी तौर पर भारत के बारे में जानना शुरू कर दिया था। वैसे तो मुझे 16 साल की उम्र से ही हिंदुस्तान से प्यार था लेकिन किसी हिंदुस्तानी से मुझे प्यार हो जाएगा, इस बारे में तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। नितिन से देर रात तक बातें होती आैर न जाने मैं कैसे उसकी ओर आकर्षित होने लगी। मैंने कुछ हिंदी फिल्में भी देखी हैं। अब मुझे हिंदी फिल्मों की हीरोइनों की तरह ठण्डी हवाएं अच्छी लगने लगीं, रात को देर तक जागकर मैं भी तारों में उसका चेहरा ढूंढने लगी, जिसे मैंने आज तक सिर्फ तस्वीरों में देखा था। कभी गहराई से सोचती तो हंस पड़ती। सोचती कि मेरे अपनों को पता चलेगा तो वे मेरा मजाक ही उड़ाएंगे।

हमारा खुला समाज

हमारे यहां विवाह- बंधनों को अहमियत नहीं दी जाती। हमारा समाज खुला है। जिसे जिसके साथ रहना है, रह सकता है। नहीं रहना है तो उस रिश्ते से आसानी से निकल भी सकता है। मेरा भी एक रिश्ता था, जिसकी वजह से मैं एक 14 साल के बेटे की मां भी हूं। मेरे बेटे के पिता ने कभी पलटकर हमें देखा तक नहीं। मैंने भी अपनी जिंदगी बेटे के साथ ही बिताने का निश्चय किया था। लेकिन मुझे कहां पता था कि मुझे भी एक दिन प्यार होगा, वह भी ऐसे व्यक्ति के साथ, जिसके मैं सिर्फ सपने ही देख सकती हूं। वाराणसी में रहने वाले नितिन ने यूं ही मुझे एक दिन नाम बदलने का सुझाव दिया। बस मैंने ठान ली कि मुझे अब अपना यही नाम रखना है। कुछ ही दिनों में मैंने अपना नाम बदलकर काव्या कर लिया।

उसने दिया नया नाम

यह नाम उसने ही दिया है मुझे। सोशल नेटवर्किंग पर बातचीत करते -करते मेरे मन में उससे मिलने के अरमान जागने लगे। उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह मुझसे मिलने मेरे देश आ सके, पर मेरे पास तो पैसे थे। आठ साल के लंबे इंतजार के बाद मैंने एक दिन ठान ही लिया कि मैं वाराणसी जाऊंगी। बस फिर क्या था, मैंने उसे मैसेज किया आैर उधर से रजामन्दी मिलने के बाद तुरंत वीजा के लिए अप्लाई कर दिया। फ्लाइट की टिकट बुक कर ली। नितिन से मिलने की खुशी थी लेकिन अपने बेटे डेनिस से पहली बार अलग रहने का दुख भी था। ऐसे में डेनिस ने बहुत समझदारी दिखाई और बड़ी आसानी से मुझे भारत जाने की इजाजत दे दी।

इस तरह पहुंची भारत

और एक दिन मैं मुंबई जाने वाली फ्लाइट में थी। एयरपोर्ट पर मुझे लेने मेरी एक फ्रेंड आई थी, जिसके साथ भी मेरी दोस्ती ऐसी ही सोशल नेटवर्किंग साइट पर हुई थी। मुंबई में कुछ दिन बिताने के बाद जब मैंने वाराणसी में कदम रखा आैर पहली बार नितिन को देखा तो खुशी से मेरी आंखों से आंसू छलक पड़े। उसके घर पर उसके आैर उसकी बहन के साथ रुकी। गंगाजी की भव्य आरती देखी तो फिर से आंसू छलक पड़े थे। तब नितिन ने मुझे गले लगाया आैर आंसू बहने का कारण पूछा।

मेरी उमड़ती भावनाएं

मैं बड़ी मुश्किल से उसे बता पाई कि वह मेरे लिए कितना खास है। नितिन ने मेरी भावनाओं को समझा आैर उसने भी इजहार किया। लगभग 17 दिन वाराणसी में उसके साथ उसके घर पर बिताने के बाद मैं वापस लौट रही थी। मन में भावनाओं का ज्वार था। सोचती रह गई कि नितिन ने मुझे रोका क्यों नहीं? क्यों नहीं कहा कि काव्या मेरे पास, मेरे साथ रुक जाओ। क्या इसलिए कि मैं उससे पांच साल बड़ी हूं? सुना है मैंने कि भारत में पत्नी का पति से उम्र में छोटी होना जरूरी है। यदि ऐसा है तो नितिन ने मेरे मन में अरमान क्यों जगाए? फिर यह भी सोचती हूं कि उसके पास पैसों की कमी है। वह मेरे यहां के लड़कों की तरह नहीं है। वह संकोच करता है, शर्माता है।

इस रिश्ते की मंजिल

उसके लिए अपनी पत्नी के तौर पर एक विदेशी लड़की को अपनाना शायद काफी मुश्किल है। अपने दिल को समझाने की पहले भी कई कोशिशें करती आई हूं आैर उससे मिलने के बाद भी कर रही हूं। सोच लिया है मैंने कि इस साल दीवाली पर फिर से भारत आऊंगी लेकिन इस बार खुद को आैर मजबूत बनाकर आऊंगी ताकि हमारे रिश्ते की मंजिल क्या है, इस बारे में उससे पूछ पाऊं। तब तक रंग- बिरंगे, खूबसूरत आैर दोस्ताना भारत को मेरा दिल से नमस्ते।

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