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#मेरा पहला प्यार : ऋषिकेश के कैंप की उस रात ने लिखी थी प्यार की नई कहानी

Deepali Porwal  |  Jun 3, 2018
#मेरा पहला प्यार : ऋषिकेश के कैंप की उस रात ने लिखी थी प्यार की नई कहानी

कुछ रिश्ते दुनिया के हर रिश्ते से बढ़कर हो जाते हैं। उनकी गर्माहट, सौम्यता, ममत्व और आकर्षण  हमें कुछ पलों के लिए दूसरी ही दुनिया की सैर करवा देता है। इन रिश्तों की खास बात होती है कि ये आपको अचानक मिल जाते हैं और आपके दिल में बस जाते हैं। जी हां, ये दिल के रिश्ते होते हैं, इनमें भावनाओं के अलावा दूसरी चीज़ों को खास महत्व नहीं दिया जाता है क्योंकि इनमें सिर्फ प्यार और सम्मान होता है। आज ‘मेरा पहला प्यार’ सीरीज़ में पढ़िए शालिनी और देवेश की खूबसूरत प्रेम कहानी।

‘यह 2009 की बात है। मैं अपने कॉलेज फ्रेंड्स के साथ ट्रिप पर गई थी। 12 फ्रेंड्स के उस ग्रुप में दरअसल कुछ ऐसे भी थे, जिनकी आपस में खास बात नहीं होती थी। दिल्ली से हरिद्वार और फिर वहां से ऋषिकेश जाने का प्लान था, हरिद्वार में सुबह गंगा आरती देखने के बाद हम लोग कैब से ऋषिकेश गए थे। यह पूरी तरह से एक अनप्लांड ट्रिप थी, कोई बुकिंग नहीं करवाई गई थी, न ही यह पता था कि अगले पल करना क्या है, फिर भी हम सब बहुत उत्साहित थे। ऋषिकेश पहुंच कर हम लोग फ्रेश होने के लिए होटल देख ही रहे थे कि किसी ने कैंपिंग का सुझाव दिया। इन दोस्तों में से कुछ पहले कैंप में रह चुके थे, जबकि कुछ के लिए यह नया एक्सपीरियंस था। मैं पहली बार कैंप में जा रही थी, खुश तो बहुत थी पर मन में अजीबोगरीब ख्याल भी आ रहे थे।

खैर, ऋषिकेश से थोड़ी दूरी पर स्थित कनातल के एक कैंप में पहुंच कर हमने राहत की सांस ली। गर्मी और भूख के मारे सबका बुरा हाल हो रहा था। कैंप के मैनेजर ने हमें 4 टेंट अलॉट किए और हम उनमें बंट गए। फटाफट फ्रेश होकर खाना खाया और आगे की प्लानिंग करने लगे। तभी मेरी फ्रेंड श्वेता ने मुझे इशारे से किनारे बुलाया। मैं वहां गई तो वह हमारे ग्रुप में ही शामिल एक लड़के देवेश के बारे में कुछ बताने लगी। उसका कहना था कि पूरे रास्ते देवेश मुझे घूरते हुए आया था और यह बाकी दोस्तों ने भी नोटिस किया था। मैंने उसकी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे ऐसा कुछ महसूस नहीं हुआ था। देवेश हमारे क्लासमेट विवेक का बेस्ट फ्रेंड था, बाकी दोस्त भी उससे खासे परिचित थे इसलिए वह भी हमारे साथ आ गया था।

रिवर राफ्टिंग करने के बाद जब हम कैंप में वापिस आए तो थक कर चूर हो चुके थे। ज्यादातर लोग कैंप में सो रहे थे पर मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं एक्सप्लोर करने के लिए टेंट से बाहर गई। वहां मैंने कुछ सीढ़ियां देखीं, जहां से नीचे उतर कर एक नदी के किनारे पर पहुंचा जा सकता था। मैं पानी से बहुत डरती हूं पर उस समय तो बस मुझे वही सीन अच्छा लग रहा था। जब मैं वहां पहुंची तो ठंडी हवा के झोंके के साथ ही किसी के गुनगुनाने का स्वर कानों में पड़ा। मैं उसी आवाज़ का पीछा करते-करते आगे बढ़ी तो देवेश गिटार के साथ नज़र आया। उस एक पल में मुझे उससे प्यार सा हो गया था। सारी दुनिया से दूर कोने में पत्थर पर बैठा वह बड़ा मासूम सा लग रहा था। मैं उसके पास जाकर बैठ गई और वही गीत गुनगुनाने लगी।

चौंकने या डिस्टर्ब होने के बजाय वह मुझे वहां देखकर काफी खुश था। देर शाम वहां बारिश होने लगी और हम पानी की बौछारों से बचते-बचाते वापिस कैंप में आ गए। हमें साथ आया देख कुछ लोग सरप्राइज़ हो गए थे तो कुछ मुस्कुरा रहे थे। उस कैंप में नेटवर्क नहीं आते थे इसलिए सब बहुत जल्दी आपस में घुलमिल गए। शाम के स्नैक्स के बाद रात को बोनफायर का आयोजन था। सबकी रिक्वेस्ट पर देवेश ने कई रोमांटिक गीतों से शाम का समां बांध दिया। और मैं… मैं तो उस पर फिदा हुई जा रही थी। मैं कुछ सोच ही रही थी कि मैंने देवेश को घुटनों के बल बैठे देखा। वह हाथ में कुछ पत्तियां लिए मुझे प्रपोज़ कर रहा था (वहां फूल नहीं था इसलिए वह पत्तियां तोड़ लाया था)। साथ में सभी दोस्त हूटिंग करने लगे तो मैं शर्मा कर अपने टेंट के अंदर आ गई। उस दिन तो फिर हमारे बीच कोई बात नहीं हुई पर दिल्ली लौटकर वह मेरे घर आया।

देवेश का फैमिली बिज़नेस था और वह उसी में हाथ बंटाता था। उसने सीधे मेरे पापा से बात की और मेरा हाथ मांग लिया। पापा-मम्मी की खुशी का ठिकाना नहीं था और मुझे भी विश्वास नहीं हो रहा था कि देवेश मुझे लेकर इतना सीरियस था। बाद में उसने मुझे बताया कि वह कुछ कॉमन फ्रेंड्स के ज़रिये मुझे स्कूल टाइम से जानता है। बस कभी प्रपोज़ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था और यह ट्रिप सबने सिर्फ इसीलिए प्लान की थी। फरवरी 2010 में हमारी शादी हो गई थी और हमारा प्यार आज भी बिल्कुल वैसा ही है, जैसा ऋषिकेश के उस कैंप में था, खूबसूरत और निश्छल। मैंने उन पत्तियों को फ्रेम करवाकर हमारे बेडरूम में लगवा लिया है।’

तो यह थी शालिनी के पहले प्यार की दास्तां…। अब आप सुनाइए अपनी प्रेम कहानी और हां, याद रखिएगा कि प्यार हमेशा वही नहीं होता है, जो मुकम्मल हो सके, कई बार प्यार अपने अधूरेपन में भी संपूर्ण होता है।

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