सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद ही संवेदनशील मामले पर अपना एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जो सेक्स वर्कर्स के अधिकारों का भी सम्मान करता है। सुप्रीम कोर्ट की दो महिला जजों की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि सेक्स वर्कर्स को भी ‘ना’ कहने का पूरा- पूरा अधिकार है। अगर उनके साथ कोई उनकी बिना मर्जी के जबरदस्ती करता है तो वो इस पर कार्रवाई की मांग कर सकती हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस श्रीमती आर भानुमति व इंदिरा बनर्जी की साझा पीठ ने 20 साल पुराना दिल्ली रेप केस पर मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट का 2009 का एक फैसला पलटते हुए चार दोषियों की 10-10 साल जेल की सजा सुनाई है। बची हुई सजा पूरी करने के लिए दोषियों को चार सप्ताह में सरेंडर करना होगा।
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क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने –
अगर कोई पेशेवर वेश्या यानि कि सेक्स वर्कर है और अपना शरीर बेचकर जीवन यापन करती है तो भी किसी को उसके साथ उसकी मर्जी के बिना जबरन सेक्स करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। ये एक ऐसा अपराध है जिसके लिए सजा भी मिल सकती है।
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इस रेप केस पर सुनाया गया ये ऐतिहासिक फैसला
साल 1997 में एक महिला के साथ चार लोगों ने देश की राजधानी दिल्ली में गैंगरेप किया था। आरोपियों ने महिला पर झूठे मामले में फंसाने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज करवाया था। उनका दावा था कि महिला का चरित्र खराब है और वह वेश्यावृत्ति में लिप्त है। हाई कोर्ट ने चारों आरोपियों को बेकसूर मानते हुए 2009 में बरी कर दिया था। और साथ में ही उन तीन पुलिस कर्मियों को भी सजा देने का आदेश दिया था, जिन्होंने गैंगरेप में इन चारों के खिलाफ कथित मुकदमा दर्ज कर महिला की तहरीर पर केस बनाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए मुजरिमों की इस दलील को ठुकरा दिया कि उन्हें इसलिए बरी कर दिया जाए कि जिस पीड़ित महिला ने उन पर गैंगरेप का आरोप लगाया था, वह बुरे चरित्र की है और वेश्यावृत्ति में लिप्त है। कोर्ट ने कहा कि अगर मान भी लें कि वह महिला इस तरह की थी, तो भी उसे किसी के साथ संबंध बनाने से इंकार करने का पूरा- पूरा अधिकार है। परिणामस्वरूप इस मामले पर एक्शन लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का वह आदेश भी खारिज कर दिया, जिसमें चारों आरोपियों को झूठे मामले में फंसाने पर तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने को कहा गया था।
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‘पिंक’ मूवी ने भी दिया था ये संदेश
कहते हैं कि फिल्में समाज का आईना होती है। हमारी सोच बदलने की ताकत रखती है। ‘पिंक’ मूवी भी उन सवालों को उठाती है जिनके आधार पर लड़कियों के चरित्र के बारे में बात की जाती है। लड़कियों के चरित्र घड़ी की सुइयों के आधार पर तय किए जाते हैं। कोई लड़की किसी से हंस- बोल ली या किसी लड़के के साथ कमरे में चली गई या फिर उसने शराब पी ली तो लड़का यह मान लेता है कि लड़की ‘चालू’ है और उसे सेक्स के लिए आमंत्रित कर रही है। फिल्म ने ये भी संदेश दिया था कि नहीं का मतलब ‘हां’ या ‘शायद’ न होकर केवल ‘नहीं’ होता है, चाहे वो अनजान औरत हो, सेक्स वर्कर हो या आपकी पत्नी हो। आप बिना उसकी मर्जी के उसके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस संवेदनशील मुद्दे पर फैसला सुनाकर महिलाओं को सही मायने में ना बोलने का अधिकार दिया है।
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