‘जब प्यार दस्तक देता है तो मायूसी के बादल कब छट जाते हैं पता ही नहीं लगता।’ इस बार #MyLoveStory सीरीज में हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही सच्ची लव स्टोरी के बारे में, जिसकी गलती ने उसे प्यार के असली हकदार से मिला दिया। पढ़िए भोपाल की रहने वाली ‘मंजूला’ के पहले प्यार की कहानी, उसी की जुबानी..
हर लड़की की तरह मेरा भी एक ख्वाब था कि जिस लड़के से मैं प्यार करूं वो भी मुझे उतना ही प्यार दें। मुझे राजकुमारी बना कर रखें। मेरी हर छोटी- बड़ी ख्वाहिशों को पूरा करें। मेरे सुख- दुख में बराबर का साथी बनें। पर मैं कुछ ज्यादा ही उम्मीद लगा बैठी थी अपने प्यार से। मैं आगरा की रहने वाली हूं। कभी मुझे भी किसी से प्यार हुआ था। मैंने उसे अपनी जिंदगी मान ली उसके लिए सब कुछ छोड़ दिया। अपने मां- बाप, अपना परिवार, दोस्त या यार सब कुछ। उसके प्यार के लिए घर छोड़ कर आ गई। अपना सब कुछ पीछे छोड़ दिया मैंने… और राजीव से शादी कर ली।
शादी के बाद घर वालों ने हमारा रिश्ता स्वीकार कर लिया और सब कुछ पहले की तरह नॉर्मल हो गया। हमारा फैमिली बिजनेस अब राजीव को सौंप दिया गया। बिजनेस में शामिल होकर वो बहुत खुश था। लेकिन कुछ ही दिनों में मुझे पता चला कि मेरा प्यार… मेरे पति ने मुझे धोखा दिया है। उसका बर्ताव मेरे साथ सही नहीं था। वो आए दिन मेरे ऊपर चिल्लाने लगा, मुझे पीटने लगा और हर बार मैं उसे माफ करती रही। ये सोच कर कि शायद वो उसका स्ट्रेस होगा। और कुछ ही दिनों में मुझे पता भी चल गया कि वो स्ट्रेस क्या था ? जिसकी वजह हमारे रिश्ते में दरार आ रही थी।
पैसा, हां वही था इन सब परेशानियों की जड़। राजीव शादी से पहले भी मुझसे कई बार पैसे मांग चुके थे और मैंने हर बार उनकी जरूरत समझ कर उन्हें दिए। जब मुझे पता चला कि उन्होंने ये शादी भी पैसों के लालच में आकर की है तो ये जानकर मेरे होश ही उड़ गए। जिंदगी में पहली बार किसी से प्यार किया था और उसका अंजाम मुझे इतना बुरा मिलेगा, कभी सोचा नहीं था। मेरा गुनाह सिर्फ ये है कि मैंने सच्चा प्यार किया। राजीव की नफरत मेरे लिए दिनों दिन बढ़ती गई। एक दिन ऐसा भी आया जब वो काम के सिलसिले में लंदन चले गए और वहां पहुंचकर बोले कि मैं दूसरी शादी कर रहां हूं तलाक के कागज मैंने भिजवा दिए हैं।
उस दिन मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ और मैंने भी फैसला कर लिया कि जब वो खुश है तो मैं अपनी जिंदगी उसके गम में क्यूं खराब करूं। मैंने भी तलाक के कागज पर साइन कर दिए और साथ ही उसे हर उस चीज से बेदखल कर दिया जो उसे शादी के बाद मेरे घरवालों ने सौगात में दी थी। उस दिन के बाद मैंने कभी राजीव को याद नहीं किया। अब वो मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ वो आदमी था जिससे हम अपने ऑफिस के पेपर वापस लेने के लिए केस लड़ रहे थे। मैंने इसके लिए शहर के जाने- माने वकील को हायर किया। उनका नाम मोहन (बदला हुआ नाम) था। केस लड़ते- लड़ते कब हमारे दिल के तार आपस में छू गए हमें पता ही नहीं चला। मोहन की उम्र 40 साल थी, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की थी। जब इस बार में मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें कभी ऐसी लड़की मिली ही नहीं जो उनकी दौलत से नहीं उनसे प्यार करती। ये बात सुनकर मुझे अपनी शादी की बातें याद आ गई।
पहले तो मैं मोहन से हफ्ते में 1 या 2 बार ही केस के सिलसिले में मिलती थी लेकिन न जाने क्या जादू कर दिया था उसकी बातों ने मुझ पर जो उसे रोज देखे बिना जी ही नहीं मानता था। न कोई शर्त, न कोई उम्मीद, न कोई वादा, न कोई रिश्ता और न ही कोई सबूत था हमारे प्यार के दरमिया। हम बिना रजामंदी के एक- दूसरे को चाहे जा रहे थे। वो दिन मुझे आज भी याद है जब मोहन मेरे घर आए थे। हाथ में गुलदस्ता लिए, सफेद पैजामे- कुर्ते में दरवाजे पर खड़े मुझे पुकार रहे थे। तभी अचानक पापा आ गए और उन्होंने मोहन को अंदर बुलाया और घर आने का कारण पूछा। लेकिन मोहन ने जवाब न दिया और मुझे बुलाने के लिए पापा से कहा। मुझे थोड़ा अटपटा तो जरूर लगा लेकिन हिम्मत करके मैं मोहन के सामने जा खड़ी हुई और तभी मोहन सबके सामने अपने घुटनों पर बैठ गया और मुझे गुलदस्ता देते हुए बोला कि मैं आज तुमसे कुछ मांगने भी आया हूं और कुछ देने भी। सभी को उसका ये व्यवहार कुछ अजीब सा लग रहा था लेकिन मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मैंने उनसे कहा कि आपको जो भी कहना है साफ- साफ कह दीजिये। इस तरह पहेलियां मत बुझाये। तभी मोहन ने मेरा हाथ पकड़ा और बोला कि आपका केस तो मैं जीत गया हूं लेकिन अपना दिल आप पर हार बैठा हूं। अच्छा रहेगा अगर आप मेरा दिल मुझे लौटा दें। ये सुनते ही मेरी आंखों के सब्र का बांध टूट गया और मैं फफक- फकक कर रो पड़ी। तभी मेरे पापा ने मुझसे कहा जा बेटी जा… जी ले अपनी जिंदगी, यही है तेरा मिस्टर राइट।
वो दिन था और आज का दिन है मैं मोहन के साथ बहुत खुश हूं। हमारी शादी को 5 साल हो गए हैं और हमारा एक प्यारा से बेटा भी है। मैंने जो भी सपने देंखे थे वो सब मोहन ने पूरे कर दिये। रजीव मेरी गलती था लेकिन मोहन मेरा पहला और आखिरी प्यार है।
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