लाइफस्टाइल
अगर आपको भी लगता है ‘रोना’ कमजोरी की निशानी है! तो इन कारणों से जानें क्यों है ये आपकी ‘ताकत’
रोना, इंसान के शरीर का एक नैचुरल कॉपिंग मैकेनिजम होता है। इसकी मदद से हमारा इमोशनल स्ट्रेस कम होता है और साथ ही यह हमारी सेहत और स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ही अच्छा होता है। जब लोग अपने इमोशन को deny कर देते हैं तो उन्हें लगता है कि वो गायब हो गए हैं क्योंकि वो उन्हें महसूस नहीं कर पाते हैं, या फिर फील नहीं कर पाते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं होता है। जब लोग अपनी भावनाओं को सरप्रेस कर लेते हैं और रोने से मना कर देते हैं तो ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि ये कमजोर लोग करते हैं और इस वजह से वो अपने नकारात्मक खयाल अंदर दबा लेते हैं और इसकी वजह से उन्हें अधिक शारीरिक और मानसिक तकलीफें होती हैं।
वहीं रोने से नेगेटिव इमोशन कम होते हैं और साथ ही दर्द भी कम होता है और बाद में आप उस चीज को भूल जाते हैं। इस वजह से हम यहां आपको ऐसे कारण बताने वाले हैं, जो बताते हैं कि रोना, कमोजरी नहीं बताता है।
नुकसान और दुख को जताने के लिए
जब हम किसी करीबी को खो देते हैं या फिर हमारी कोई कीमती चीज खो जाती है तो हमें दुख होता है। यह ऐसी भावना होती है, जो हमें कुछ भी नहीं करने देती है और हम परेशान हो जाते हैं। ऐसे में अपने आसपास की चीजों को आसान बनाने के लिए हम अपनी भावनाओं को दबा लेते हैं और यह कोई अच्छी च्वॉइस नहीं होती है। इस वजह से अगर आप रोते हैं तो आपका दर्द कम हो जाता है और साथ ही आपको ताकत भी मिलती है।
स्ट्रेस कम करने में
रोना एक प्रकार से थेरेपी जैसा होता है और रोने से स्ट्रेस कम होता है क्योंकि इससे बॉडी में मौजूद टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं। जब आप रोते हैं तो parasympathetic nervous system एक्टिव हो जाता है और रेस्ट और डाइजेशन को एक्टिव करता है। एक इंसान की बॉडी और माइंड दोनों को ही रोने से फायदा पहुंचता है।
माइंड को क्लीयर करने में
हम अपने आंसुओं का इंटर्नल डिटर्जेंट के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ये हमारे अंदर की अशुद्धियों को दूर करने में मदद करता है। जो लोग अपने इमोशन्स को बाहर आने देते हैं उनके पास एक एडवांटेज होती है और जो अपनी फीलिंग्स को दबा कर रखते हैं, उनके लिए यह डिसएवांटेज होती है। अपने अंदर जमा इमोशन को बाहर निकालने सेस हम अपने इमोशनल डिस्ट्रेस को मैनेज कर सकते हैं।
खुद को स्ट्रॉन्ग बनाने में
हो सकता है कि हम समय-समय पर अपने इमोशन को दबा लें लेकिन जब हम रोते हैं तो हम उन्हें स्वस्थ तरीके से बाहर आने देते हैं। इसका मतलब है कि हमें चीजों से डील करना आता है और हम उन्हें इग्नोर नहीं करते हैं। अगर हम अपनी फीलिंग्स को इग्नोर करते हैं तो वो हमारे दिमाग में रहती हैं और बाद में हमें समस्या देती हैं। हालांकि, अगर हम अपने डर और इमोशन को फेस करते हैं तो इससे हम स्ट्रॉन्ग बनते हैं।
खुद को स्ट्रॉन्ग बनाने में
NCBI द्वारा पब्लिश की गई एक स्टडी में पाया गया है कि अधिकतर पुरुष और औरतों को रोने के बाद अच्छा और हल्का महसूस हुआ है। रोने से दिमार और शरीर पर सूदींग इफेक्ट होता है। ये दर्द को कम करता है और मूड को बेहतर बनाता है और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करा है। इस वजह से इन बातों को याद रखें और जब अगली बार आपको लगे कि आपको रोना है तो खुद को रोने दें।
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