प्यार एक ऐसा अहसास है जो हर किसी को कभी न कभी अपने रंग में रंगता जरूर है, फिर चाहे उसके लिए इसका अनुभव अच्छा हो या बुरा। यह प्रेम उसके जीवन में खुशियां लेकर आया हो या जीवन भर के लिए दुख का पिटारा छोड़ गया है, है तो प्रेम ही। अपने पहले प्रेम की यादें, अच्छी हों या बुरी, जीवन भर साथ रहती हैं। अच्छी यादें हों तो खुशबू के एक महकते झोंके की तरह और बुरी हों तो एक नासूर बनकर हमेशा आपको कुरेदती रहती हैं। कुछ ऐसा ही प्यार हुआ था रैना को… जो उस प्यार में कैसे बहने लगी थी, उसे भी नहीं मालूम पड़ा…। तो इस बार ‘मेरा पहला प्यार’ सिरीज़ में रैना के मासूम से पहले प्यार की कहानी….
रैना ही नाम था उसका जो एक कुलीन ब्राह्मण परिवार से थी। उसके परिवार को जितना अपने ब्राह्मण होने का गर्व था, उतना ही उसे इससे बेफिक्री। सिर्फ अपना धर्म और जाति ही नहीं, उसे हर उस परम्परा से नफरत थी जो उसकी मस्तमौला जिंदगी के बीच आती हो। एक प्रेस यानि कि मीडिया में काम करना उसकी अक्खड़ और दबंग टाइप की पर्सनैलिटी पर काफी फिट बैठता था। हां एक बात और, अपने चेहरे पर उभर रहे सफेद रंग के धब्बों से संबंधित किसी भी ग्रंथि या ग्लानि से दूर था उसका व्यवहार। एक ओर परिवार को उसके चेहरे के साथ – साथ धीरे- धीरे पूरे शरीर पर बढ़ते जा रहे सफेद रंग के चकत्तों को देखते हुए उसकी शादी की चिंता बढ़ रही थी, वहीं दूसरी ओर हर तरह की चिंता से बेखबर रैना अपनी ही दुनिया में मस्त नजर आती थी। दोस्ती बनाने में माहिर, खूब बातूनी और दबंग।
उसका घर ऑफिस से काफी दूर था, जहां ऑफिस की बस से आना- जाना हुआ करता था। बस यही ऑफिस से घर का रास्ता उसकी जिंदगी में आए एक बहुत बड़े तूफान का कारण बन गया। इसी बस में ऑफिस में ही काम करने वाले नदीम का आना- जाना था। रास्ते में होने वाले हंसी मजाक के बीच कब दोनों में नजदीकियां इतनी बढ़ गईं कि दोनों को ही पता नहीं चला। दोस्तों और कुलीग के बीच इनके बीच बढ़ती नजदीकियों के बारे में तमाम बातें होने लगीं। कानाफूसी और इन बातों का कोई असर रैना के चेहरे पर कहीं न दिखता, जैसे उसे दीन- दुनिया की कोई फिक्र न हो। एक ओर कट्टर हिंदू परिवार तो दूसरी ओर नदीम का परिवार भी मौलाना यानि खासा कट्टर था। दोनों कट्टर परिवारों के बीच प्यार.. कैसे यह रिश्ता आगे बढ़ेगा.. इस बात की चिंता सभी संगी- साथियों को हुआ करती थी। जहां आज के जमाने में भी हिंदू- मुसलमान के प्यार को जमाना सही नहीं समझता तो वह वक्त तो और भी ज्यादा कट्टर था, जब कान में उड़ती- उड़ती खबर भी लगे तो कत्ल कर दिये जाएं।
खैर, पता ही नहीं लगा कि दोस्ती का चोला पहने यह रिश्ता कब इतना बढ़ गया कि रैना के परिवार में भी हो रहे हर काम में नदीम से पूछा जाने लगा। मुझे यह बात कभी समझ नहीं आई कि रैना के परिवार वाले नदीम को अपने दामाद के रूप में देखने लगे थे या फिर घर में बड़े बेटे के अभाव में घरेलू निर्णयों के बारे में नदीम से यूं ही पूछताछ कर लिया करते थे। उन्होंने नदीम को रैना के सफेद दागों की वजह से स्वीकार कर लिया था या फिर नदीम को वे रैना के अच्छे दोस्त के रूप में ही देखते थे। हालांकि रैना ने हमेशा मुझसे यही कहा था कि उसके घरवाले उसकी शादी नदीम के साथ कभी नहीं करेंगे, और इसीलिए उसे शादी वहीं करनी पड़ेगी, जहां उसका परिवार चाहेगा।
रैना के घरवाले उसके लिए लड़का तलाश रहे थे, लेकिन आए दिन वह मुझे बताती कि उसके लिए कैसे- कैसे रिश्ते आते थे। कोई सब्जी का ठेला लगाता था तो कोई उससे दोगुनी उम्र का आदमी होता। एक ओर रैना इन बेमेल रिश्तों से परेशान थी तो दूसरी ओर….। एक दिन अचानक रैना ने मुझे बताया कि नदीम की शादी हो चुकी है। रैना उस दिन बहुत उदास थी, लेकिन मेरे बहुत समझाने पर भी वह नदीम से खुद को अलग करके नहीं देख पाती थी। नदीम ने उसे समझा दिया था कि वह मजबूरी में परिवार के दबाव में यह शादी कर रहा है, कुछ ही दिनों में रैना के पास वापस आ जाएगा। प्यार ऐसी चीज है, जो हर मजबूरी को समझता है। रैना ने भी हामी भर दी थी। उस दिन बहुत रोई थी रैना, लेकिन एक आस…एक इंतजार तब भी था उसे और तब तक रहा जब तक कि नदीम के एक बच्चे के बाद दूसरा बच्चा होने वाला था। नदीम की कोशिश रहती कि रैना का साथ भी लगातार बना रहे।
नदीम के होने वाले दूसरे बच्चे के बारे में सुनकर रैना टूट चुकी थी। मेरे काफी समझाने के बाद काफी हिम्मत जुटा कर आखिर उसने नदीम से दूर होने का फैसला कर ही लिया। दिल में प्यार होने के बावजूद उसने खुद पर भी पूरी सख्ती कर ली। नदीम रात- रात में उसे फोन करता तो वह फोन काट देती या फिर बंद कर देती। ऑफिस में मिलता तो बेरुखी दिखा देती। इससे खुद को हो रही तकलीफ को वह लगातार झेलती रहती। कुछ दिनों नदीम ने उसका पीछा करना जारी रखा, फिर शायद वह समझ गया कि अब यह चिड़िया हाथ नहीं आनेवाली। रैना की जिंदगी वीरान हो चुकी थी, लेकिन उसे फुर्सत कहां थी।
उसके छोटे भाई की शादी हो चुकी थी और उसकी भाभी ने कोर्ट में मुकदमा चलाकर रैना और उसके माता- पिता को कटघरे में खड़ा कर दिया था। कोर्ट के ऐसे मामलों में कैसे भागदौड़ करके रैना ने अपने मां-बाप को बाहर निकाला। इसके बाद भी भाभी कभी घर आ जाती तो कभी कहीं गायब हो जाती। भाई के दो बच्चों को रैना ने ही संभाला। इसका भी एक फायदा हुआ रैना को। उसकी जिंदगी को उसके भाई के बच्चों ने एक अलग रंग एक अलग अर्थ दिया। अब उसके जीवन का लक्ष्य अपने लिए नहीं, बल्कि इन दोनों बच्चों के लिए जीना और उनको कुछ बनाना बन गया है। अपना पहला प्यार रैना को अब तकलीफ नहीं, बहुत शक्ति देता है। जीवन के इस दौर में रैना अब अपनी मां के साथ- साथ अपने पिता को भी खो चुकी है, लेकिन शादी न करने के बावजूद उसके चेहरे पर अब भी खुशी दिखती है, जिसका सार हैं उसके भतीजे, या कहें कि उसके ही बच्चे।
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