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#मेरा पहला प्यार: राधा- कृष्ण की ही तरह था कभी न भूलने वाला वो मासूम सा प्यार

Richa Kulshrestha  |  Aug 31, 2018
#मेरा पहला प्यार: राधा- कृष्ण की ही तरह था कभी न भूलने वाला वो मासूम सा प्यार

हर असफल प्रेम कहानी एक अलग ही दर्द समेटे होती है। वो पहली बार नजरों का मिला, वो पहला स्पर्श, वो प्यार का पहला अहसास, सब बहुत खास होता है। यहां हम आपको #मेरापहलाप्यार सीरीज़ में एक ऐसी प्रेम कहानी के बारे में बता रहे हैं जिसमें कम उम्र का प्यार भी कितनी गहराई लिये हुए और इतना समझदार था कि दुनिया का दस्तूर देखकर उसने खुद को ही खुद से जुदा कर दिया। ऐसे प्यार की कहानी, जिसके भरोसे आैर दोस्ताने ने अपनी कहानी को हमेशा के लिए एक नया रूप, एक नया रंग दे दिया। अथाह प्यार और विश्वास वाली कुहू सिन्हा की प्रेम कहानी पढ़िये उनके ही शब्दों में…

आसान नहीं है प्यार करना

प्यार एक अहसास का नाम है। सुना था कि प्यार कोई करता नहीं, यह तो बस हो ही जाता है, लेकिन सही में तो अब समझ आया कि प्यार होता क्या है। मुझे लगता था कि मैं तो बहुत सीदी- सादी सी हूं, मुझे कौन प्यार करेगा, लेकिन पता नहीं कैसे मुझे भी प्यार हो गया उससे, जो मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार था। मुझे पहली बार एहसास हुआ कि ईश्वर ने मेरे लिये भी दुनिया में किसी को बनाया है। वो जो मेरे लिए जीता है और मेरे लिए ही मरता है। लेकिन साथ ही एक बात और समझ में आई कि प्यार करना आसान काम नहीं है। अब तक जो कुछ फिल्मों में देखा था, कि प्यार के दुश्मन हजार होते हैं, वो सच में अब दिखने लगा है।

वो मुझे देखे ही जा रहा था

मैं उस वक्त क्लास 9 में थी, जब वो मुझे मिला। उसके काफी फ्लर्ट और लड़कियों के बीच काफी पॉपुलर होने की वजह से इससे पहले मुझे लगता था कि वो मुझे देखता भी नहीं होगा। कभी- कभार क्लास में उससे बात होती थी, वो भी काम की वजह से। फिर यूं ही दोस्तों के बीच हंसी मजाक होने लगा। इसी तरह एक दिन अचानक लगा कि वो मुझे ही देख रहा है। देखता ही जा रहा है। उसकी नजरों में ऐसा कुछ था जिससे मैं असहज होती जा रही थी। उस दिन घर में भी मेरा मन नहीं लगा।

कहा था कि कर दूंगी मना

पहले मैं अपनी मां को स्कूल में होने वाली सारी बातें बता देती थी तो इसी तरह से मैंने यह बात भी मां को बताई। बताया कि कैसे क्लास का सबसे फ्लर्ट लड़का मुझे भी फ्लर्ट करना चाहता है और मैं उसकी यह मंशा कभी पूरी नहीं होने दूंगी। शायद मैं मन ही मन चाहती थी कि यह सच न हो। उस दिन मेरे दांतों में दर्द होने लगा और अगले दिन सुबह मैं स्कूल नहीं जा पाई। लेकिन पूरे दिन मैं उसी के बारे में सोचती रही। शाम को मेरी सहेली का फोन आया तो उसने मुझे बताया कि वो मेरे बारे में पूछ रहा था। मैंने अपनी मां को यह बताया और कहा कि मैं उससे बिलकुल मना कर दूंगी। मां मेरी यह बात सुनकर सिर्फ हंस दीं। शायद उन्हें अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था।

और उसने मुझे प्रपोज़ कर दिया

अगले दिन मैं स्कूल गई तो वह पूरे दिन बहुत सीरियस रहा। किसी से कोई बात नहीं की और जब मैंने उससे बात करने की कोशिश की तो वह मुझे क्लास के बाहर ले गया और बोला कि वह मुझसे कुछ बात करना चाहता है। मुझे महसूस हो रहा था कि वह कुछ ऐसा ही बोलेगा, और शायद मैं मन ही मन यही चाहती भी थी। मैं चाहती थी कि क्लास का सबसे स्मार्ट और पढ़ने वाला लड़का मुझे पसंद करे, लेकिन मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि मैं भी ऐसा कर सकती हूं। मुझे तो अब तक यही लगता था कि मुझे कौन पसंद करेगा। मैं एकदम स्ट्रेट फॉरवर्ड लड़की थी जिसे ज्यादा लोग अब तक पसंद भी नहीं करते थे। लेकिन उस दिन जब उसने अपने घुटनों पर बैठकर मुझे प्रपोज़ किया तो मैं चाहते हुए भी ना नहीं कह पाई। मैं उस दिन अपनी मां से कही हुई बात भी भूल गई। मैं भूल गई कि यह जो दुनिया है उसमें दो अलग- अलग मजहब के बीच किसी तरह का भी रिश्ता किसी को मंजूर नहीं होता। मैं बिलकुल भूल गई कि दुनिया प्यार की भाषा नहीं समझती। मैं भूल गई कि वह उम्र प्यार की नहीं, बल्कि पढ़ाई करने की थी।

भूल गए दुनिया का दस्तूर

आखिरकार हम दोनों एकदूसरे में इतने ज्यादा खो गए कि दुनिया के हर दस्तूर को भूल गए। लेकिन साथ ही उसके साथ से मुझे यह समझ आ गया था कि वह अपने मजहब को लेकर काफी कट्टर है। मैं जानती थी कि मैं उसकी इस कट्टरता के साथ नहीं निभा सकती, लेकिन फिर भी पता नहीं क्या हमें एकसाथ बांधे हुए था। नवीं क्लास से लेकर 12वीं तक हम एकदूसरे के साथ जिस तरह रहे, वो यादें कभी भुलाई नहीं जा सकतीं। इस बीच मेरे घरवालों और उसके घरवालों ने क्या नहीं किया हमें अलग करने के लिए, लेकिन हमने भी कसम खाई थी साथ निभाने की, तो हम कितने भी मतभेद होने पर भी साथ बने रहे। न उसने मेरे साथ कभी कोई दगा किया और न मैंने उसका साथ छोड़ा, लेकिन समय एक ऐसी चीज़ है जो सब सिखा देता है।

संभव नहीं था पूरी उम्र निभाना 

हम दोनों ही जानते थे कि एकदूसरे के साथ पूरी उम्र निभाना संभव नहीं है, इसलिए हमने पूरी खुशी के साथ अलग होना ही बेहतर समझा। मैंने भी शादी नहीं की और न ही उसने…. मालूम नहीं कि ये दुनिया के दस्तूर की वजह से हुआ या फिर अपने मन की वजह से लेकिन यही सच है। इस जीवन की ठेठ सचाई।

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