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#मेरा पहला प्यार: कुछ पल ठहर जाता तो आज वो जिंदगी भर के लिए मेरे साथ होता

Archana Chaturvedi  |  Oct 28, 2018
#मेरा पहला प्यार: कुछ पल ठहर जाता तो आज वो जिंदगी भर के लिए मेरे साथ होता

प्यार में विश्वास और भरोसे से बढ़कर कुछ नहीं होता। लेकिन अगर एक बार गलतफहमी का दाग दामन पर लग जाएं तो उसका रंग बढ़ते वक्त के साथ और भी पक्का होता चला जाता है। इस बार ‘मेरा पहला प्यार’ सीरीज में हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही लव स्टोरी के बारे में, जिसमें प्यार तो था लेकिन भरोसा नहीं था। पढ़िए मुस्कान के पहले प्यार की कहानी, उसी की जुबानी..

ये उन दिनों की बात है जब मैं अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में अपने शहर अलीगढ़ से कुछ सालों के लिए दूर विदेश के लिए जाने की तैयारी कर रही थी। मेरे परिवार के सभी लोग बहुत खुश थे। क्योकि यूनिवर्सिटी से अकेले मेरा ही सलेक्शन हुआ था लंदन जाने के लिए। लेकिन एक अजीब सा डर मेरे मन को खाये जा रहा था। और दिक्कत इस बात की थी कि ये बात मैं किसी से शेयर भी नहीं कर सकती थी। दरअसल, मेरा पहला प्यार यानि कि शुभम भी लंदन में उसी प्रोजेक्ट के लिए एक साल पहले ही चला गया था। अब वो वहां मेरे सीनियर प्रोजेक्ट हेड के तौर पर मुझे अस्टिट करने वाला था। बस यही चिंता खाई जा रही थी कि सालों पहले की एक गलतफहमी की सजा अभी पूरी भी नहीं हुई थी। और जिंदगी एक नया इम्तेहान लेने वाली थी।

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शुभम बहुत अच्छा लड़का था। जैसे हर एक लड़की अपने सपनों के राजकुमार में जो भी खूबियां देखना चाहती है वो सबकुछ शुभम में कूट- कूट कर भरी हुई थीं। मेरी और उसकी दोस्ती एक पेंटिंग क्लास में हुई थी। उसके हाथों में जादू था। वो जो भी ड्रॉ करता था वो सब चीज असली लगती थी। एकदम सजीव। उस समय हर कोई शुभम से दोस्ती करना चाहता था। उसे अपना फ्रेंड बनाना चाहता था और शायद मैं भी। एकदिन की बात है जब मास्टर जी ने पूरी क्लास को जोड़ियों में बांट दिया और एक प्रतियोगिता रखी। जिसमें जो जोड़ी जितेगी उसे स्टेट लेवल पर प्रतियोगिता में हिस्सा लेने को मिलेगा। किस्मत से मेरा और शुभम का नाम एक जोड़ी के तौर पर मास्टर जी ने पुकारा। वो पहली बार था जब मैंने शुभम से बात की थी। शुभम लकीरें ड्रॉ करता गया और मैं उसमें रंग भरती गई। और हम जीत गये। हमारी जोड़ी ने स्टेट लेवल में भी भाग लिया और पहला स्थान हासिल किया। इस तरह हमारी दोस्ती पर धीरे- धीरे प्यार का रंग चढ़ता गया।

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हम क्लास के बाद भी एक- दूसरे से मिलने जाते थे। कहीं पार्क, कहीं मॉल तो कहीं यूं ही हाथों में हाथ डालकर दिन भर घूमा करते। हम दोनों ने एक- दूसरे से वो सार वादे लिए और किये जो हर एक प्रेमी- प्रेमिका करते हैं। देखते- देखते कब 1 साल बीत गया पता ही नहीं चला। शुभम को एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में लंदन जाने के लिए चुना गया। वो बहुत खुश था, लेकिन मैं नहीं। मुझे डर लग रहा था कि कहीं मेरा प्यार चंद दिनों का मेहमान न बनकर रह जाये। वो वहां जाकर मुझे कहीं भूल गया तो क्या होगा। लेकिन इन सब बातों से बेफ्रिक शुभम विदेश जाने के ख्यालों में डूबा हुआ था। मैंने भी फैसला कर लिया था कि मैं हमारे रिश्ते के बारे में अपने और उसके घरवालों को बता दूंगी और सगाई करने के बाद ही उसे विदेश जाने दूंगी। लेकिन शुभम नहीं चाहता था कि हमारे रिश्ते के बारे में उसके घरवालों को पता चले। इसकी वजह से मेरी उससे बहुत लड़ाई हुई। हमने करीब 3 महीने तक एक- दूसरे से बात भी नहीं की।

इसी बीच मेरा एक्सीडेंट हो गया और मेरी दाहिने पैर की हड्डी टूट गई। जिसके लिए मेरा ऑपरेशन भी हुआ। पूरे 1 महीने तक मैं घर पर ही रही। शुभम का कोई अता- पता नहीं था। बस अब मैं यही चाहती थी कि जल्द से जल्द मैं अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं और चलने लगू। इसके लिए पापा ने घर पर ही फिजियोथेरेपिस्ट लगा रखा था। जो मुझे रोज 1 घंटा एक्सरसाइज कराता था। एक दिन मेरी बात शुभम के भाई से हुई। मैंने उसे बताया कि मेरा एक्सीडेंट हो गया था। लेकिन मैंने न तो शुभम के बारे में उससे कुछ पूछा और न ही उसने बताया।

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एक रोज मेरे मम्मी- पापा मेरी बुआ के यहां किसी फंक्शन में गये थे। और मैं घर पर अकेली थी अपनी बहन के साथ। सुबह वो भी ऑफिस जाने के लिए निकल गई। मैं भी नहाने के लिए बाथरूम में चली गई और इस दौरान मैं मेनगेट बंद करना भूल गई थी। तभी वो फिजियोथेरेपिस्ट घर गया और मुझे पुकारने लगा। लेकिन पैर में दर्द की वजह से मैं बाथरूम के फर्श से ऊपर उठ ही नहीं पा रही थी। न चाहते हुए भी उस लड़के को अंदर मुझे उठाने के लिए बुलाना ही पड़ा। मुझे बहुत शर्म आ रही थी पर मैं क्या करती। उसने मुझे गोद में उठाया और बाहर लेकर आया ही था कि तभी शुभम हाथों में गुलदस्ता लिए घर के अंदर खड़ा हुआ था। मुझे इस हालत में एक अंजान लड़के के गोद में देखकर वो आग बबूला हो गया और गुलदस्ता फेंककर वहां से चला गया।

आज भी उस दिन के बारे में सोचती हूं तो अपनी किस्मत को कोसती हूं। काश वो कुछ पल के लिए अगर ठहर गया होता। तो मैं उसे उस दिन के हालात के बारे में उसे समझा पाती। उससे कह पाती कि ये सिर्फ तुम्हारी आंखों का धोखा था शुभम। जो गलती मैंने की ही नहीं थी उसकी सजा मुझे 2 साल तक मिली। लेकिन अब जब किस्मत हमें मिलवा रही है तो लगता है कि अभी सजा और भी बाकी है।  

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