ग्रेजुएशन का पहला साल ही था कि शादी हो गई। अभी इंटर कॉलेज में ही तो खेल की दुनिया में पंख पसारना शुरू किया था! इस पर शादी के कुछ समय बाद ही बैक इंजरी और डॉक्टर्स ने गेम्स हमेशा के लिए छोड़ने को कह दिया। इनकी will power ही थी कि न केवल मेडिकल प्रॉब्लम्स से overcome किया बल्कि नेशनल लेवल की एथलीट बनीं और कॉमन वेल्थ गेम्स में discus throw में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला भी। ये हैं हरियाणा की बेटी, राजस्थान की बहू और इस देश का गौरव कृष्णा पूनिया।
1. चाह थी तो राह बनती गई
कृष्णा को शुरू से ही games में interest था। हाइट अच्छी थी तो थ्रो भी अच्छे जाते थे। 10th के दौरान इन्होंने अपनी इस strength को पहचाना और गेम्स पर फोकस करने लगीं। 12th के दौरान स्टेट लेवल पर परफॉर्म करने का मौका भी मिला। लेकिन कुछ समय बाद सगाई हो गई और फिर शादी। कृष्णा lucky रहीं कि partner के रूप में विजेन्द्र पूनिया मिले जो खुद एथलीट थे।
2. एक से भले दो
शादी के बाद विजेन्द्र बतौर कोच कृष्णा को ट्रेनिंग देनी शुरू की। इंडियन रेलवे में जॉब करते हुए दोनों ने खेलों की दुनिया में देश का मान बढ़ाया। कृष्णा कहती हैं, मेरा games में interest जरूर था लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मैं अपने देश के लिए खेल पाऊंगी। इस उपलब्धि का श्रेय मेरे पति और ससुराल को जाता है। सभी इतने सपोर्टिव हैं कि मुझे घर परिवार को लेकर कुछ नहीं सोचना पड़ता। मेरे बेटे को पहले मेरी सासू मां ने पाला और फिर मेरी देवरानी ने उसे पूरा प्यार दिया।
3. सबसे कठिन पल और वो संघर्ष
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शादी के कुछ समय बाद ही मुझे back injury हो गई। लंबा बेड रेस्ट डॉक्टर्स ने बता दिया। यह वह वक्त था जब मेरे पति मेरे करियर को आगे बढ़ाने की planning कर रहे थे। डॉक्टर्स ने साफतौर पर कह दिया था कि अब आपको games पूरी तरह छोड़ने होंगे। मैं जरूर निराश थी लेकिन विजेन्द्र ने हार नहीं मानी। लगातार मेरा हौसला बढ़ाया और कहा तुम जरूर खेलोगी! सही ट्रीटमेंट और family efforts की बदौलत मैं ठीक हुई और खेलों की प्रेक्टिस भी शुरु की। लेकिन ये शायद जल्दबाज़ी में लिया गया फैंसला था।
4. वो दोबारा फिर वही दर्द सहना
वही back injury फिर उभर आई। इस बार दवाओं और ट्रीटमेंट का duration और लंबा हो गया। अपने पति को देखकर मुझे हौसला मिलता था। जैसे इन्होंने ठान ही लिया था कि मुझे नेशनल लेवल एथलीट बनाकर ही रहेंगे। इन्होंने मुझसे कहा ‘हम वो सब करेंगे जो डॉक्टर्स कहेंगे। पहले तुम्हारे ठीक होने का इंतजार और फिर body के इस लायक हो जाने का कि तुम physical stress सह सको। लेकिन तुम्हें खेलना जरुर है।’ इनकी बातें सुनकर और इनके efforts देखकर मैं भगवान को बार-बार thankyou बोलती कि उन्होंने मुझे ऐसा life partner दिया।
5. स्पोर्टस करियर
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कृष्णा ने 2006 में दोहा एशियन गेम्स में bronze मेडल जीता। International level पर अपनी चमक फैलाने के लिए यह जीत इनके लिए माइल स्टोन साबित हुई। दोहा एशियन गेम्स 2006 के बाद 2008 में बीजिंग में हुए ओलम्पिक्स में इनकी परफॉर्मेंस उम्मीदों के अनुसार नहीं रही लेकिन निराश हुए बिना ये आगे की तैयारियों में जुट गई। हवाई (यूएसए) में नया नेशनल रिकॉर्ड कायम करते हुए 64.76 मीटर का दायरा तय किया।
6. ये इसलिए हैं ‘SHE’ लीडर
कॉमन वेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला हैं कृष्णा पूनिया। 2010 में दिल्ली में हुए कॉमन वेल्थ में 61.5 मीटर्स के discus throw रिकॉर्ड के साथ, ट्रैक और फील्ड इवेंट्स में कॉमन वेल्थ गेम्स में मिल्खा सिंह के बाद गोल्ड मेडल जीतने वाली कृष्णा पहली भारतीय हैं। साथ ही भारतीय खेल रिकॉर्ड में फील्ड और ट्रेक इवेंट में ओलम्पिक के फाइनल राउंड में जाने वाली कृष्णा छठी भारतीय हैं।
7. अब महिलाओं के लिए कुछ करना है
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खेलों की दुनिया में अपनी Sound Image बनाने के बाद society में महिलाओं की स्थिति मजबूत करने के लिए कृष्णा ने रेलवे की जॉब से resign कर politics join की। कृष्णा कहती हैं मेरे पति और ससुराल पक्ष से मुझे अपना करियर बनाने में बहुत मदद मिली है। इसके आगे बहुत कुछ कहने को नहीं रह जाता कि मेरे पति ही मेरे कोच हैं। वो सही मायने में सच्चे हम-सफर हैं।
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