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Navratri special: यहां स्त्री के रूप में होती है शिवलिंग की पूजा, देवी माता के दर्शन मात्र से ही भर जाती है सूनी गोद
मान्यताएं, विश्वास और आस्था भारत के कोने-कोने में बसी हैं और इसी का जीता-जागता उदाहरण है देवी माता का एक ऐसा अनोखा मंदिर, जिसके दरवाजे साल में सिर्फ एक ही बार दर्शन के लिए खुलते हैं। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में स्थित झाटीबन लिंगेश्वरी माता का मंदिर देशभर में अपनी मान्यता को लेकर मशहूर है। इसे आलोर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ये भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर है, जहां शिवलिंग की पूजा स्त्री रूप में की जाती है।
छत्तीसगढ़ का लिंगेश्वरी माता मंदिर की मान्यता | Interesting Facts about Lingeshwari Mata Mandir in Hindi
हर साल भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की नवमी के बाद आने वाले बुधवार को इस मंदिर के पट भक्तों के लिए खोल दिये जाते हैं। श्रद्धालु दिन भर देवी माता की पूजा- अर्चना और दर्शन करते हैं। इसके बाद शाम होते ही मंदिर के पट पत्थर की चट्टान को टिकाकर एक साल तक के लिए फिर बंद कर दिये जाते हैं। इस मंदिर की अनोखी बात ये भी है कि दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को यहां तक रेंगकर आना होता है।
कुछ ऐसी है यहां की मान्यता
इस मंदिर के बारे में कई आश्चर्यजनक मान्यताएं प्रचलित हैं। यहां के जानकार बताते हैं कि इस मंदिर में आने वाले ज्यादातर श्रद्धालु संतान प्राप्ति की मन्नत मांगते हैं। यहां की प्रथा के अनुसार, संतान प्राप्ति के लिए आए हुए दंपतियों को यहां देवी माता को खीरा चढ़ाना होता है। प्रसाद में वापस खीरा मिलने के बाद दंपति को उसी जगह खीरे को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ों में तोड़ना होता है और फिर सामने ही दोनों को प्रसाद ग्रहण करना होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से उस दंपति की सूनी गोद साल भर में ही भर जाती है।
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भविष्यवाणी करते हैं यहां मिले चिन्ह
एक अन्य मान्यता ये भी है कि साल भर बाद जब इस मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं तो यहां कुछ चिन्ह उभरे हुए मिलते हैं, जिन्हें देखकर पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते हैं। अगर हाथी के पांव का निशान बनता है तो उन्नति, घोड़े के खुर तो युद्ध की स्थिति, कमल का चिन्ह तो धन संपदा में बढ़ोत्तरी, बिल्ली का पंजा तो भय- विनाश, मुर्गी के पैर के निशान होने पर अकाल पड़ने का संकेत माना जाता है।
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कैसे पहुंचें
रायपुर रेलवे स्टेशन से 242 किलोमीटर और दिलमिली रेलवे स्टेशन से 67 किलोमीटर की दूरी तय कर कोंडागांव पहुंचें, वहां से मंदिर जाने तक का साधन मिल जाएगा।
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