दिल वालों की दिल्ली में लोगों का आना-जाना लगा ही रहता है। लोग नए सपनों के साथ धड़कती हुई दिल्ली को महसूस करने आते हैं और कई बार यहीं के होकर रह जाते हैं। देश के हर कोने से दिल्ली आई लड़कियां कैसे जीती और महसूस करती हैं दिल्ली को, और दिलवालों की दिल्ली उन्हें कितना अपनाती है.. ये हम बताएंगे आपको हर बार “DilSeDilli” में।
इस बार #DilSeDilli में हम बात कर रहे हैं ग्वालियर (मध्य प्रदेश) से दिल्ली आयी श्रुति से। श्रुति ने C.S. में बी. टेक. किया है। उन्हें नेल आर्ट और पेंटिंग का शौक है, वो कहती हैं कि अगर उन्होंने बी. टेक. नहीं किया होता तो फैशन डिज़ाइनिंग करतीं।
1. आप दिल्ली कब और क्यों आईं?
मुझे दिल्ली आए एक साल से ज्यादा हो गया, B. Tech. करने के बाद मेरी लाइफ़ में कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा था। पापा ने लोन लेकर B. Tech. कराया और उसके बाद recession ने सब बेकार कर दिया। बाद में मैं फैशन डिज़ाइनिंग करना चाहती थी पर already इतने पैसे waste हो चुके थे इसलिए अब ये सब कहने का कोई फायदा नहीं था। कोई जॉब नहीं मिली, मैं घर पर बैठी थी तो पैरेंट्स मेरी शादी को लेकर परेशान होने लगे। 1-2 लड़कों से भी मिलवाया, मुझे लगा ये क्या हो रहा है? जब दूसरे लड़के से मिलवाया गया तो मैंने सोच लिया कि अगर इस बार रिश्ता फिक्स नहीं हुआ तो मैं अपने लिए कुछ करूंगी, मैं पैरेंट्स पर बोझ नहीं बनूंगी.. और ऐसा ही हुआ, वो रिश्ता फाइनल नहीं हुआ और मैं यहां आ गई।
2. दिल्ली में कदम रखने के बाद आपका पहला reaction क्या था?
दिल्ली मेरे ग्वालियर से बहुत अलग है पर मैं घर से बहुत उब कर और परेशान होकर यहां आई थी, मुझे लग रहा था कि यही शहर अब मेरी लाइफ़ बचा सकती है। लेकिन यहां सबकुछ काफ़ी महंगा है, ट्रैवेल से लेकर रूम तक सबकुछ। मैं सोचने लगी थी कि इतने महंगे शहर में लोग सरवाइव कैसे करते हैं!!!
3. घरवालों ने यहां आने को लेकर कितना सपोर्ट किया?
बड़ा भाई जॉबलेस बैठा था और उसके बाद मैं भी। घर का माहौल कुछ ठीक नहीं था इसलिए मम्मी ने सपोर्ट किया। उन्हें लगा कि मैं बाहर चली जाऊंगी तो बेहतर महसूस करूंगी और घर में सबकुछ ठीक होने लगेगा।
4. क्या हमेशा से दिल्ली आने का मन था?
मैंने ऐसा कुछ भी नहीं सोचा था, पर मेरा बॉयफ्रेंड जो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ता था, दिल्ली आ गया तो मुझे भी लगा कि घर से बाहर कहीं और जाने से बेहतर है कि दिल्ली ही चली जाऊं। पैरेंट्स से मैंने उसके बारे में बताया था, उस ने भी मिल कर बात की थी पर बात नहीं बनी और मेरे लिए लड़के ढूंढे जाने लगे। जब दूसरे लड़के से रिश्ते के लिए मिलवाया गया तो मैंने सोच लिया कि इस बार शादी तय नहीं हुई तो मैं साहिल का साथ नहीं छोड़ूंगी.. हम खूब मेहनत करेंगे और पैरेंट्स को कैसे भी मनाएंगे। पहले जब फैशन डिज़ाइनिंग का शौक चढ़ा था तब लगा कि अगर दिल्ली में होती तो कुछ तो कर ही लेती पर एक कोर्स कराने के बाद पैरेंट्स दूसरे कोर्स के लिए ग्वालियर से दिल्ली नहीं भेजेंगे.. उस वक्त दिल्ली का ख्याल आते ही लगता था..काश!!
5. जो सपने देखे थे उसे दिल्ली ने कैसे और किस हद तक पूरा किया?
मेरे लिए दिल्ली आने की एक ही वजह थी, और वो ये कि मेरी शादी न हो और मैं खुद के लिए जी सकूं.. और उस सपने को दिल्ली ने ही पूरा किया है। अगर मैं घर पर होती तो पैरेंट्स को टेंशन होती और आज तक मेरा शादी कर दी गई होती। और मैं यहां पैरेंट्स के expenditure पर नहीं रह रही हूं, यहां मैंने self-reliable होना सीख लिया है। शुरुआत में सबकुछ बहुत मुश्किल लग रहा था पर अब पैरेंट्स भी खुश हैं और मैं भी। 🙂
6. यहां आने के बाद अपने struggle के बारे में बताएं?
मुझे घर से कोई फाइनेंशियल हेल्प नहीं लेनी थी इसलिए जॉब मेरी पहली ज़रूरत थी। मैंने कई कम्पनियों में ट्राय किया पर बतौर इंजीनियर मुझे कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी, यहां तक कि जब मैंने दूसरे पोस्ट के लिए एप्लाई किया तब सबकुछ फाइनल हो जाने के बाद भी वो मेरी qualification देखने के बाद मुझे मना कर देते थे। मतलब मैंने B. Tech. किया था इसलिए मुझे दूसरे कई पोस्ट से भी किनारा करना पड़ा और ऐसा एक जगह नहीं, करीब 10-11 कम्पनियों में हुआ.. बाद में मुझे BPO में काम करना पड़ा।
मैं अब भी एक BPO में ही काम कर रही हूं पर अब इसके लिए कुछ भी बुरा नहीं फील करती। मैं खुश हूं कि पैरेंट्स को मेरे लिए और परेशान नहीं होना पड़ रहा है।
7. दिल्ली ने खुशी दी या निराश किया?
बहुत खुशी तो नहीं दी पर दिल्ली ने निराश भी नहीं होने दिया। अगर मुझे हार कर वापस घर जाना पड़ता तो मुझे दिल्ली से शिकायत होती पर दिल्ली ने मुझे पनाह दी। दिल्ली में आकर ये लगता है कि यहां स्किल की कद्र भले न हो पर आप यहां भूखे नहीं मर सकते।
8. दिल्ली क्यों सबसे अलग है?
दिल्ली कुछ ज्यादा ही मॉडर्न है। हम जैसे छोटे शहर से आए लोग अगर यहां का कल्चर देखते हैं तो पहले तो मुंह खुला रह जाता है। मैंने जब पैरेंट्स को साहिल के बारे में बताया था तो उन्होंने बहुत गुस्सा किया और यहां के लोग तो बिल्कुल बेपरवाह हैं। आते-जाते आपको हाथ में हाथ डाले कपल्स दिख जाते हैं। दिल्ली बहुत open है।
9. दिल्ली को अगर तीन शब्दों में बयां करना हो तो..
दिल्ली बिंदास है, बेपरवाह है और खुशनुमा भी.. अगर ग्वालियर ऐसा होता तो शायद मेरे लिए कई चीज़ें और भी आसान होतीं। 🙂
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