ये कहानी है एक लड़की की, जो अपने प्यार को याद करके तड़प रही है… याद कर रही है बीते हुए कॉलेज के वो पल.. जब उसने किसी को टूट कर प्यार किया था…
कितना रोऊंगी आखिर और कब तक…..
आंचल सोच रही थी।
क्यों रोऊं…
कलेजा फटे जा रहा था आंसुओं का सैलाब रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
आखिर क्यों आए तुम मेरी जिंदगी में वापस ..क्यों?
पीड़ा निकल रही थी जो इतने सालों से सीने में दफन करे रखा था वो दर्द आज फिर उठ रहा था।
चलचित्र सा सब याद आ रहा था।
कॉलेज का पहला दिन था…..
वो भी नयी उमंग मे सहेलियों के साथ कॉलेज गई थी लेकिन कुछ सीनियर स्टूडेंट्स ने उन्हें घेर लिया और रैगिंग करने लगे।
वो तो रोने ही लगी थी जब एक लड़का जबरदस्ती उसे फूल देने लगा।
तब तुम आये और उन्हें धमकाया।
उसी दिन से मेरा दिल मेरा ना रहा।
राहुल मैं चाहने लगी थी.. टूटकर प्यार करने लगी थी तुम्हें, हर समय तुम्हें महसूस करने लगी थी और तुम भी तो हमेशा मुझे देखकर मुस्कुराने लगे थे।
तुम्हारी बातें सुनना अच्छा लगता मुझे, तुम्हारा पढ़ाई के लिए डांटना भी अच्छा लगता मुझे, लेकिन तुम ….।
उस दिन जब पहली बार तुमने कहा कि आज बहुत अच्छी लग रही हो इस गुलाबी सूट में।
सच कहती हूं.. अपने को अप्सरा समझने लगी थी।
राहुल लेकिन तुम …..गहरी सिसकियों के साथ वो रो रही थी और याद कर रही थीं बीते दिनों को।
उस दिन जब मैंने तुम्हें कहा कि मुझे बहुत अच्छे लगते हो तब भी बस मुस्कुरा दिये तुम।
तुम्हारी हां मान बैठी मैं…पागल थी मैं।
पढ़ाई नहीं कर पा रही थी मैं और फेल हो गई, तब तुमने मुझे बहुत भला बुरा कहा और दोस्ती तोड़ ली।
मेरा क्या कसूर था ….जो तुम में खो जो गई थी मैं।
संभाल लेते मुझे, क्यों खुद से दूर कर दिया.. क्यों?
देखो अब मुझे, उच्च शिक्षा ले ली मैंने।
कलेक्टर बन गई हूं लेकिन तुम … नहीं निकल पाए मेरे दिल से ….
छूपा रखा था आज भी दर्द दिल में सबसे।
किसी और को नहीं चाह पाई, ना जिंदगी में शामिल कर पाई।
सब कुछ पा लिया मैंने लेकिन तुम ….।
अंधेरे कमरे में आंसू से तकिया भीग रहा था।
अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई…
ठक ठक ठक ..।
फिर खटखटाने की आवाज थोड़ी तेज होने लगी।
उसने चेहरे को हाथों से पोछा और दरवाजा खोल दिया।
“इतना अंधेरा क्यों है आंचल ?”
“राहुल?”
“यहां कैसे?”
“आपसे मिलना चाह रहा था।”
आप ….आप सुन कर आंचल के चेहरे का दर्द गहरा हो गया।
उसने लाइट जलाई।
“आओ“
“कैसी हो आंचल?”
“ठीक हूं और देखो सफल भी हो गई,आप बताएं “
“आंचल कुछ कहना चाहता हूं अगर इजाजत हो “
“आज भी… आपको इजाजत लेने की जरूरत नहीं बोलिए”
“शादी करोगी मुझसे?”
“मतलब”
“क्या अब तुम मुझसे शादी करोगी आंचल?”
“इतने सालों से तुमसे मिलना चाह रहा था, लेकिन डरता था कि कही नफरत ना करती हो मुझसे”
‘पहले दिन जब तुम्हें देखा था उसी दिन मोहब्बत हो गई थी मुझे लेकिन तुम्हारे बचपने से डरता था। तुम्हारे नजदीक आने से डरता था क्योंकि जिंदगी में अपने माता पिता की इच्छाओं को भी पूरा करना चाहता था। इसलिए दूर दूर रहा। लेकिन तुम लगातार मेरे करीब होती जा रही थी और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रही थीं, इसलिए खुद को दूर कर लिया तुम से। “
“चलो अच्छा तो हुआ इस दूरी का… अपनी अपनी जिंदगी में हम दोनों ही सफल हो चुके हैं। लेकिन फिर भी अधूरे हैं…।”
अगर तुम किसी और को चाहती हो तो मुझे कोई परेशानी नहीं होगी और तुम्हें देख कर ही खुश रहूंगा।”
सुन रही थी वो आश्चर्यचकित हो… इतने सालों से गलतफहमी मन में पाले बैठी थी और तड़प रही थी अकेले।
“राहुल, लेकिन मुझसे दूर जाने की क्या जरूरत थी। मुझे इतना क्यों तड़पाया, इतना रोई मैं उस दिन… याद है वो गुलाबी सूट जिसमें तुम्हें मै अच्छी लगी थी?
“हां, याद है मुझे सच में तुम बहुत सुंदर लग रही थीं।”
“आज भी मैंने उसे संभाल कर रखा हुआ है राहुल”
“क्यों चले गए थे मुझे छोड़ कर? अगर मैं सफल नहीं होती तो क्या तब भी तुम मुझे शादी करते ?”
“हां“ झूठ नहीं कहूंगा, मै चाहता था कि तुम पढ़ो और कोई मुकाम हासिल करो। जो सपने हमारे अपने देखते हैं उन्हें पूरा करना भी हमारी जिम्मेदारी है, सिर्फ प्यार के सहारे जिंदगी नहीं कटती।”
“इतने समझदार हो, काश पहले समझ जाती..” कलेक्टर साहब।
कुहासा छंट चुका था।
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