हर इंसान के जीवन में कोई न कोई उसका गुरु जरूर होता है। लेकिन कई बार वो उसे पहचान नहीं पाता। गुरु का हमारे जीवन में होना इस बात सबूत होता है कि हम कभी किसी काम के लिए हार नहीं मानते। वो हर पल हमारे साथ होते हैं। फिर वह घर-परिवार में माता-पिता के रूप में हो या स्कूल-कॉलेज में टीचर के रूप में या फिर हमारे वो आदर्श जिनके दिखाए रास्ते पर हम चलते हैं उनसे कुछ सीखते हैं। शायद यही वजह है कि गुरु को ईश्वर से भी ऊपर दर्जा दिया गया है, क्योंकि गुरु ही होता है जो अंधकार से निकालकर, हमें सही गलत की पहचान कराता है। हमें हमारी असलियत का आइना दिखाता है। गुरु को तलाशने की जरूरत नहीं होती। वह हमें खुद मिल जाते हैं। गुरु कोई व्यक्ति नहीं एक सोच है जो हमें ताकत देती है अपनी परेशानियों से लड़ने की। वो सोच हमें किसी से भी मिल सकती है। गुरु के सम्मान में हर साल गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सभी छात्र छात्राएं अपने गुरुओं के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं और गुरु पूर्णिमा सन्देश शेयर करते हैं।
आषाढ़ महीने की पूर्णिमा विशेष रूप से गुरु पूजन का पर्व है। इस पर्व को ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहते हैं। उन्होंने वेदों का विस्तार किया और कृष्ण द्वैपायन से वेदव्यास कहलाये। इसी कारण इस गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। 16 शास्त्रों एवं 18 पुराणों के रचयिता वेदव्यास जी ने गुरु के सम्मान में विशेष पर्व मनाने के लिये आषाढ़ मास की पूर्णिमा को चुना। कहा जाता है कि इसी दिन गुरु व्यास ने शिष्यों एवं मुनियों को पहले-पहल श्री भागवत् पुराण का ज्ञान दिया था। इसीलिए यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा कहलाया। इस पावन त्योहार के मौके पर यहां हम आपके साथ एक ऐसी प्रेरक कहानी साझा कर रहे हैं जिस पढ़कर आपको ये पता चल जाएगा कि हमारे जीवन में एक गुरु की अहमियत क्या होती है।
कहानी – ‘तीन गुरु’
बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत रहते थे । उन के पास शिक्षा लेने हेतु दूर दूर से शिष्य आते थे। एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, ”स्वामीजी आपके गुरु कौन है ? आपने किस गुरु से शिक्षा प्राप्त की है ?” महंत शिष्य का सवाल सुन मुस्कुराए और बोले, ”मेरे हजारो गुरु हैं ! अगर मैं उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनों लग जाए। लेकिन फिर भी मैं अपने तीन गुरुओं के बारे में तुम्हें जरूर बताना चाहूंगा।
मेरा पहला गुरु था एक चोर
एक बार में रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकानें और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आखिरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैंने उससे पूछा कि यहां कहीं कुछ ठहरने की व्यवस्था है, तो वह बोला, ”आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ आज की रात ठहर सकते हैं। मैं एक चोर हूं और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं हो तो आप मेरे साथ रह सकते हैं।”
वह इतना प्यारा आदमी था कि मैं उसके साथ एक रात की जगह एक महीने तक रह गया ! वह हर रात मुझे कहता कि मैं अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो। जब वह काम से आता तो मैं उससे पूछता कि कुछ मिला तुम्हें? तो वह कहता कि आज तो कुछ नहीं मिला, पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरूर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, और हमेशा मस्त रहता था। कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस अपने घर आ गया। जब मुझे ध्यान करते हुए सालों- साल बीत गए और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे पल आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता। और तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरूर मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता।
मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था
एक समय की बात है कि एक दिन बहुत गर्मी पड़ रही थी और मैं कहीं जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था। पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया। वह भी बहुत प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो कि उसकी अपनी ही परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया। वह परछाई को देखकर भौंकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने की वजह से वह वापस पानी के पास लौट आता। आखिरकार, वो अपने डर के बावजूद नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई गायब हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सीख मिल गई। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का साहस से मुकाबला करता है।
मेरा तीसरा गुरु था एक छोटा बच्चा
मै एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था। वह पास के किसी मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था। मजाक में ही मैंने उससे पूछा कि क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है ? वह बोला, जी मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा, ” अभी तो थोड़ी देर पहले ये मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर ये मोमबत्ती कैसे जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहां से वह ज्योति आई ?”
वह बच्चा हंसा और मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझाते हुए बोला, ”अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा। कहां गई वह ? आप ही मुझे बताइए।” उसकी ये बात सुनकर मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान उसके बच्चे के सामने धरा का धरा रह गया। उस वक्त मुझे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए।
शिष्य होने का मतलब है हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना। कभी किसी की बात का बुरा नहीं मानना चाहिए, किसी भी इंसान कि कही हुई बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए कि उसने कब, क्या, कहां और क्यों कहा है। तब उसकी कही हुई बातों से अपनी गलतियों को समझें और अपनी कमियों को दूर करें। जीवन का हर क्षण, हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातों को सीखते रहना चाहिए। यह जीवन हमें आए दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है , यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं कि नहीं !
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