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92 की उम्र में सीखा पढ़ना-लिखना, कई महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणा, ‘खान चाची’ कहते हैं लोग इनको

Megha Sharma  |  Sep 28, 2023
92 की उम्र में सीखा पढ़ना-लिखना, कई महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणा, ‘खान चाची’ कहते हैं लोग इनको

समीरन, बुलंदशहर, उत्तरप्रदेश की रहने वाली हैं, जो अपने सपने को पूरा करने के लिए कई स्टीरियोटाइप को तोड़ रही हैं। दरअसल, समीरन, 92 वर्षीय महिला हैं, जिनका बचपन से ही पढ़ने का सपना था और वह इस उम्र में अपने सपने को पूरा कर रही हैं। समीरन का जन्म 1931 में हुआ था और 14 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी लेकिन बचपन से ही उनका पढ़ने-लिखने का सपना था। हालांकि, गांव में रहने के कारण और आसपास कोई स्कूल नहीं होने की वजह से उनका यह सपना, सपना ही रह गया था। खैर 6 महीने पहले समीरन ने आखिरकार अपनी पढ़ने-लिखने की जर्नी की शुरुआत की और स्कूल जाने का फैसला किया।

समीरन ने इसा पूरा श्रेस अपने पोते की पत्नी फिरदॉस को दिया, जो उन्हें स्कूल छोड़ने जाती हैं। अपनी पोते की पत्नी की मदद से आज वह चावली प्राइमरी स्कूल में पढ़ रही हैं। अपने डेडिकेशन की मदद से वह अब पढ़, लिख और गिन सकती हैं। एनडीटीवी के मुताबिक,स्कूल की प्रिंसिपल डॉक्टर प्रतिभा शर्मा ने 92 वर्षीय समीरन को काफी मॉटीवेट किया था और साथ ही उन्हें गांव के स्कूल में सेंटर के नव भारत लिट्रेसी मिशन की जानकारी देते हुए इसके जरिए एडमिशन लेने के लिए प्रोत्साहित किया था।

इस उम्र में पढ़ना-लिखना शुरू करने के बाद समीरन ने एक पोर्टल को कहा, ”मैंने मेरे पोतों और उनके बच्चों को स्कूल जाते हुए देखा है और मेरा मन करता है कि मैं भी उनके साथ पढ़ूं। कुछ भी सीखने की कोई उम्र नहीं होती है।”

वहीं चावली प्राइमरी स्कूल की प्रिंसिपल डॉक्टर प्रतिभा शर्मा ने कहा, ”वो कहते हैं कि जब लोग बुजुर्ग हो जाते हैं, तो उन्हें अपने बचपन में जाना अच्छा लगता है। समीरन को भी ऐसा ही लगा। वह मेरे पास पेंशन के बारे में पूछने आई थीं। मैंने बोला कि मैं उनकी मदद करूंगी लेकिन मेरी एक शर्त है। उन्हें स्कूल आना होगा और पढ़ाई करनी होगी। मैंने उन्हें ऐसा इसलिए कहा क्योंकि अगर वह पढ़ी-लिखी नहीं होंगी तो वह पेंशन के फॉर्म पर साइन नहीं कर पाएंगी।”

रिपोर्ट्स के मुताबिक बुलंदशहर के बेसिक एजुकेशन ऑफिसर ने शहर में लिट्रेसी दर को प्रमोट करने का गोल बनाया है। इसके तहत उन्होंने नव भारत लिट्रेसी मिशन के जरिए 21,000 लोगों को पढ़ाने-लिखाने का टार्गेट सेट किया है। अब तक इस मिशन के जरिए समीरन समेत 9,000 लोग लिट्रेसी टेस्ट पास कर चुके हैं।

टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, परिवार की मदद के जरिए ही वह स्कूल जा पाती हैं और फिर वापस घर जाती हैं लेकिन इसे वह छोटी सी परेशानी समझती हैं। उनके लिए अपने साइन करना और नोट्स को गिन पाना किसी उपलब्धि से कम नहीं है। पहले वह अपने पोते-पोती पर इसके लिए निर्भर थीं जो उनके इस काबिल न होने का फायदा भी उठा लेते थे। हालांकि, अब वो दिन जा चुके हैं क्योंकि वह खुद सही तरह से नोट की गिनती कर सकती हैं।

हाल ही में उन्होंने केंद्रिय सरकार द्वारा आयोजित साक्षार भारत अभियान के तहत लिट्रेसी टेस्ट में हिस्सा लिया था, जिसे 15 साल से ऊपर के लोगों के लिए डिजाइन किया गया था। इसमें वो लोग हिस्सा लेते हैं जो पहले अनपढ़ थे। आश्चर्य की बात है कि वह इस परीक्षा में एग्जाम हॉल में सेंटर ऑफ अटेंशन थीं और उनका कहना है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

मुझे तो समीरन की उपलब्धी पर बहुत खुशी है। मैं उम्मीद करती हूं कि उनकी जैसी अन्य महिलाएं भी खुद में इस तरह का कॉन्फिडेंस ला पाएं और अपनी जिंदगी की कमान खुद संभालने की दिशा में कदम उठाएं।

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