सेल्फ आइसोलेशन (self isolation) का मतलब होता है, एकांतवास में रहना यानि कि कुछ समय अकेले रहकर खुद के साथ बिताना। आमतौर पर बच्चों से लेकर बड़े तक सेल्फ आइसोलेशन में तभी जाते हैं, जब वे ज़िंदगी से परेशान हो जाते हैं या कुछ नया करने या सोचने के लिए समय चाहते हैं। भारत के योगी व महापुरुष भी हिमालय की चोटियों या पहाड़ियों में जिस मानसिक शांति के लिए एकांतवास में जाते हैं, उसे अंग्रेजी में सेल्फ आइसोलेशन ही कहा जाएगा। हालांकि, भारत में बहुत से लोगों ने यह टर्म पहली बार मार्च 2020 में सुना है।
वह भी तब, जब दुनिया के कई बड़े देशों के साथ ही कोरोनावायरस ने भारत में भी दस्तक दे दी और इसको फैलने से रोकने के लिए भारत सरकार को एहतियात के तौर पर लॉकडाउन जैसा बड़ा फैसला लेना पड़ा। सेल्फ आइसोलेशन (self isolation) के दौर में ध्यान केंद्रित करना बहुत ज़रूरी है। हालांकि, बुरे से बुरे दौर में भी यह याद रखना ज़रूरी है कि यह सिर्फ एक दौर है (समय है) और यह बहुत जल्द गुज़र जाएगा। हर दौर एक याद और सीख लेकर आता है, जिसे गांठ बांधकर आगे बढ़ते रहने का नाम ही ज़िंदगी है।
सेल्फ आइसोलेशन (self isolation) का मतलब है, अपनी मर्ज़ी से खुद को आइसोलेट कर लेना यानि कि घर में कैद हो जाना और सामाजिक गतिविधियों व लोगों से एक निश्चित दूरी बना लेना। फिलहाल तो पूरा भारत कोरोनावायरस के कहर के चलते लॉकडाउन जैसी स्थिति में है और सरकार व कानून के डर से लोग सेल्फ आइसोलेशन का पालन कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें बेहद आवश्यक काम पड़ने की स्थिति में ही अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति है। हर भारतीय को फिलहाल कुछ दिनों तक सोशल डिस्टेंसिंग को मानना है, जिसका मतलब है कि वे घरों से निकलकर अन्य लोगों से मिल-जुल नहीं सकते हैं।
कोरोनावायरस एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जो संक्रमित व्यक्तियों के छींकने, खांसने या किसी पदार्थ या सतह को छूने मात्र से दूसरों में फैल सकती है। दुनियाभर की बात करें तो संक्रमित व्यक्तियों का आंकड़ा 9 लाख के ऊपर तक पहुंच चुका है और संक्रमित व्यक्तियों का यही आंकड़ा भारत मात्र में 2600 के ऊपर तक जा चुका है। ऐसे में इसके फैलाव को बढ़ने से रोकने के लिए ज़रूरी है कि लोग कुछ समय तक अपने घरों में कैद रहें। ऐसा करने से संक्रमित व्यक्तियों की पहचान कर पाना आसान हो जाता है और चूंकि सब अपने-अपने घरों में कैद हैं तो कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों से किसी का संपर्क होने की स्थिति भी न के बराबर है। किसी भी संक्रामक बीमारी को रोकने के लिए संक्रमित व्यक्ति व उससे जुड़े या उसके आस-पास के लोगों का सेल्फ आइसोलेट हो जाना बेहद महत्वपूर्ण है। डॉक्टर्स का मानना है कि सिर्फ बड़ी संक्रामक बीमारियों में ही नहीं, बल्कि फ्लू व आम खांसी-जुकाम, सर्दी व बुखार की स्थिति में भी लोगों का सेल्फ आइसोलेट होना ज़रूरी है।
सेल्फ आइसोलेशन के दौरान संक्रमित व्यक्ति के साथ ही उससे जुड़े लोग, उसके आस-पास के लोगों व अन्य लोगों को भी सेल्फ आइसोलेट होने की सलाह दी जाती है। भारत की बात करें तो यहां काफी जनसंख्या मार्च से अपने घरों में कैद है, ऐसे में काफी लोग मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। जो लोग अपने परिजनों अथवा दोस्तों के साथ हैं, वे तो फिर भी थोड़े नॉर्मल हैं, मगर इस परिस्थिति में अकेले फंस गए लोग डिप्रेशन व अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं। उस पर से लगातार आ रही नेगेटिव खबरें लोगों को और विचलित कर रही हैं।
अगर आप भी सेल्फ आइसोलेशन के इस दौर में अकेलेपन और घबराहट (ghabrahat hona) से परेशान हो रहे हैं तो मन की शांति (man ki shanti) के इन उपायों (man ki shanti ke upay) को आज़मा सकते हैं।
योग पुरुषों से लेकर डॉक्टर्स और फिटनेस एक्सपर्ट्स तक सभी मन और दिमाग को शांत रखने के लिए मेडिटेशन यानि ध्यान करने की सलाह देते हैं। इसमें ज्यादा कुछ नहीं करना होता है, बस आराम से बैठकर किसी वस्तु (चीज़), जगह,शब्द, रंग आदि पर अपना ध्यान केंद्रित करना होता है। मेडिटेशन के लिए आपको एकांत वाला एक कोना ढूंढना ज़रूरी है, जहां न तो कोई आपको परेशान करे और न ही आपका ध्यान किसी और चीज़ पर फोकस हो।
मेडिटेशन करते समय दिमाग से हर तरह का नेगेटिव ख्याल निकाल दें और सिर्फ पॉज़िटिव बातों के बारे में ही सोचें। मेडिटेशन की क्रिया सिर्फ तभी सफल मानी जाएगी, जब आप कम से कम 10 मिनट तक एकांतवास में सिर्फ एक ही चीज़ पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकें।
मानसिक तनाव को कम करने में व्यायाम यानि कि एक्सरसाइज़ की भी काफी अहम भूमिका मानी जाती है। सेल्फ आइसोलेशन के दौर में आप पार्क या जिम में न जाकर घर पर ही एक्सरसाइज़ कर सकते हैं। दरअसल, एक्सरसाइज़ करने के दौरान एंडोर्फिन (endorphin) नामक हॉर्मोन रिलीज़ होता है, जिसका संबंध व्यक्ति के खुशनुमा मूड से होता है। माना जाता है कि एंडोर्फिन के रिलीज़ होने से व्यक्ति खुश होता है और जब आप खुश होते हैं तो तनाव खुद-ब-खुद दूर हो जाता है।
आप घर में ही आधे घंटे तक वेट लिफ्टिंग, पुश अप्स या भाग-दौड़ वाला कोई खेल खेल सकते हैं। हालांकि, व्यायाम का चुनाव करते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे करने में आपको मज़ा आए, न कि ज़बरदस्ती करना पड़ रहा हो। अगर आप योग के लाभ जानते और समझते हैं तो योग ज़रूर करें।
मेडिटेशन की तरह ही एक और एक्सरसाइज़ है, जिसे रोज़ाना एक बार करन से आप अवसाद और मानसिक तनाव से मुक्ति पा सकते हैं। करने में यह आपको मेडिटेशन जैसी लग सकती है, मगर दोनों एक्सरसाइज़ में अंतर है। मेडिटेशन में आपको किसी चीज़ या व्यक्ति की तरफ देखते हुए ध्यान लगाना होता है, जबकि इसमें आपको किसी ऐसे व्यक्ति या दृश्य पर ध्यान केंद्रित करना है, जो अभी आपके सामने नहीं है। इसमें आपको किसी भी खुशनुमा पल या व्यक्ति को याद करते हुए उसके बारे में सोचकर खुश होना है। हालांकि, ध्यान रखें कि आप जिस भी व्यक्ति, जगह, पल या दृश्य पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, उससे आपकी सकारात्मक और खुशनुमा यादें ही जुड़ी होनी चाहिए। इसमें आप किसी फिल्म या पार्टी के बारे में भी सोच सकते हैं, जहां आप बेहद खुश हुए हों।
मन में तनाव होता है तो उसका असर दिमाग तक पहुंचना बेहद स्वाभाविक है। तनाव चाहे प्रोफेशनल लेवल का हो या पर्सनल, वह व्यक्ति की मानसिक स्थिति को इतना आघात पहुंचा सकता है कि उससे उबरने में उसे कुछ महीनों से लेकर सालों तक का समय लग सकता है। ऐसे में न तो किसी से बात करने का दिल करता है और न ही किसी काम में एकाग्रता बन पाती है। ज़िंदगी के हर पड़ाव पर ऐसी स्थिति से बचना बहुत ज़रूरी है। सेल्फ आइसोलेशन के गंभीर दौर में अगर आप विचलित हो रहे हैं और दिमाग को शांत रखना चाह रहे हैं तो इन उपायों की ओर ध्यान दें।
शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ रहने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप प्रकृति के साथ अपना मेल-जोल बढ़ा दें। तनाव की स्थिति में आस-पास हरी-भरी चीज़ें व खुशनुमा वातावरण देखने से सकारात्मक ऊर्जा और शांति का संचार होता है। दिमाग को शांत करने के लिए सुबह जल्दी उठें और प्रकृति के नज़ारों को देखकर उनके प्रति कृतज्ञता महसूस करें। यकीन मानिए, गमलों में खिले खूबसूरत, रंग-बिरंगे फूल देखकर आपका पूरा दिन बेहद खुशनुमा बीतेगा। आप अपने घर में भी कई तरह के फूल व पौधे लगा सकते हैं।
अगर अपने मन को काबू में रखना चाहते हैं तो नहाना एक बहुत ही अच्छी एक्सरसाइज़ साबित हो सकता है। अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं (शारीरिक अथवा मानसिक) तो हल्के गुनगुने पानी से नहाएं, जिससे शरीर की मांसपेशियों और नसों तक को राहत महसूस हो सके। अपने मूड को ठीक करने के लिए आप नहाते समय अपना पसंदीदा म्यूज़िक भी चला सकते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, दिमाग की शांति के लिए नहाने के पानी में रोज़ या लैवेंडर ऑयल जैसा कोई एसेंशियल ऑयल मिलाकर देखें, नहाने का मज़ा दोगुना हो जाएगा और दिमाग भी एकदम कूल हो जाएगा।
मन को ऊबने से बचाने के लिए ज़रूरी है कि हमारा ध्यान किसी ऐसी चीज़ की तरफ केंद्रित हो, जिसे करने से हमें खुशी महसूस हो। आप अपने काम, परिवार व दोस्तों के प्रति कितने भी समर्पित क्यों न हों, आपके पास अपना कुछ समय ज़रूर होना चाहिए। अपने इस मी टाइम में सिर्फ अपनी रुचि से जुड़ा कोई कार्य करें। अगर आपको खेलना पसंद हो, चित्रकारी करना पसंद हो या खाना बनाना तो वही करें।
अगर आपको डांस या म्यूज़िक सुनने से खुशी मिलती हो तो दिन का कुछ समय उसके लिए नियत कर दें। बस यह ध्यान रखें कि यह ज़िंदगी आपकी है और इसलिए आपको भी खुश रहने का उतना ही हक है, जितना आप दूसरों को रखते हैं।
कुछ ऐसे फूड आइटम्स होते हैं, जिन्हें खाने से स्ट्रेस बढ़ाने वाले हॉर्मोंस खत्म हो जाते हैं। अगर आप हॉर्मोनल इम्बैलेंस (हॉर्मोनल असंतुलन) से जूझ रहे हैं तो आपको अपनी डाइट का खास ख्याल रखना चाहिए। अपने खान-पान में ऐसे फूड आइटम्स को प्राथमिकता दें, जो आपके स्ट्रेस लेवल को कंट्रोल में रखें और हॉर्मोन्स के उतार-चढ़ाव को रोक सकें।
डाइटीशियंस का मानना है कि डार्क चॉकलेट, ड्राई फ्रूट्स, पालक और सेब आदि खाने से दिमाग और मन शांत रहता है। ध्यान रखिए, अगर आपका दिमाग और मन एकदम शांत रहेगा तो आपके हॉर्मोंस भी सामान्य रहेंगे।
सेल्फ आइसोलेशन के दौर में हर किसी का नज़रिया अलग हो सकता है। कोई इस दौरान काफी पॉज़िटिव रवैया अपनाता है तो कुछ लोग बेहद नकारात्मक ख्यालों की वजह से अकेलेपन और घबराहट के शिकार भी हो सकते हैं। ऐसे समय में मोटिवेशनल बातें भी बहुत समय तक काम नहीं आ पाती हैं। ऐसे में यह सिर्फ हम पर ही निर्भर करता है कि हम किस परिस्थिति का सामना किस तरीके से कर रहे हैं और उससे क्या सीख रहे हैं। ऊपर बताए गए तरीकों के अलावा भी कई ऐसे तरीके हैं, जिनकी मदद से अपने मन को शांत रखा जा सकता है। जानिए उनके बारे में।
तनाव महसूस होने पर ज़ोर-ज़ोर से हंसने की प्रक्रिया को लाफिंग एक्सरसाइज़ कहा जाता है। आपने कई बार सुना होगा कि पार्क्स या रीक्रिएशनल सेंटर्स पर लाफ्टर कैंप्स का आयोजन किया जाता है। इन कैंप्स में लोग समूहों में इकट्ठा होकर यूं ही काफी देर तक दिल खोल कर हंसते रहते हैं। हंसने से शरीर में रक्त परिसंचरण बढ़ता है, जिससे दिमाग और मन बेहद शांत होता है। खुद को खुश रखने की इस गतिविधि में उन खुशनुमा पलों, शैतानियों या मज़ाक को याद करें, जिनसे आप पहले भी काफी हंस चुके हों। आप चाहें तो कॉमेडी मूवी देख सकते हैं या किसी ऐसे दोस्त से भी बात कर सकते हैं, जिसकी बातें सुनकर आपको हंसी आती हो।
योग में ज्यादा मेहनत करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और शरीर की स्ट्रेचिंग भी हो जाती है। योग करने से मांसपेशियों को आराम पहुंचता है और दिल व दिमाग भी शांत रहता है। योगा गुरुओं की मानें तो योग करने से दिमाग बिलकुल शांत हो जाता है और तनाव खत्म हो जाता है। अगर आप किसी बीमारी से ग्रस्त हैं या कोई खास योगासन सीखना चाहते हैं तो प्रशिक्षित योग ट्रेनर की मदद ज़रूर लें। जहां कई बीमारियों के लिए योग की खास क्रिया होती है तो वहीं स्लिप डिस्क या ऑस्टियोपोरोसिस होने की स्थिति में योग करने से बचना चाहिए। आपको योग के फायदे ज़रूर जानने चाहिए।
मसाज करने से मन और दिमाग शांत रहता है, ब्लड सर्कुलेशन ठीक होता है और तनाव से छुटकारा मिलता है। सेल्फ आइसोलेशन के दौरान आप अपने हाथों, पैरों, कंधे व सिर की मसाज स्वयं कर सकते हैं। इसके लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं करना है। अगर आप थकान या तनाव महसूस कर रहे हैं तो एक कटोरी में थोड़ा सा तेल लें (सरसों का तेल, नारियल तेल या कोई एसेंशियल ऑयल), उससे हाथों, पैरों, कंधों या सिर पर हल्के हाथों से मसाज करना शुरू कर दें। अगर तेल न हो तो आप लोशन से भी इसी प्रक्रिया को आज़मा सकते हैं।
कई बार दिमाग और मन इसलिए भी तनाव का शिकार हो जाता है क्योंकि हम अपनी ज़िंदगी से बहुत ज्यादा बोर हो चुके होते हैं। दरअसल, हमारी लाइफस्टाइल इस हद तक बदल चुकी है कि हमें काम के अलावा किसी चीज़ के लिए फुर्सत ही नहीं मिलती है। लोग ऑफिस के कामों को घर तक ले आते हैं या अगर नहीं भी लाते हैं तो भी उन्हीं की चिंता में बने रहते हैं। ऐसे में वे कुछ नया नहीं कर पाते हैं और धीरे-धीरे अवसाद का शिकार होने लगते हैं। अगर आप मानसिक तनाव से बचना चाहते हैं तो अपनी दिनचर्या में थोड़ा बदलाव कर कुछ अच्छी आदतों को ज़रूर अपनाएं।
घर और ऑफिस की भागदौड़ के बीच अपने लिए समय निकालना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में ज़िंदगी के प्रति इंट्रोस्पेक्ट करना बहुत ज़रूरी है। इंट्रोस्पेक्शन का मतलब है अपनी ही ज़िंदगी को रिव्यू करना। इसके लिए आप हर दिन कुछ समय अकेले बैठकर खुद से ज़िंदगी से जुड़े कुछ सवाल पूछें। क्या अपनी ज़िंदगी की रफ्तार से खुश हैं, क्या आपने वह सब पा लिया जिसके आप हक़दार हैं, क्या आप खुश हैं? आस-पास हज़ार लोगों की भीड़ में भी कुछ समय खुद के साथ बिताना और खुद को व अपनी ज़रूरतों को समझने से आपका तनाव काफी हद तक कम हो सकता है। इसके लिए आप चाहें तो अपनी डायरी में भी रोज़ाना का हिसाब-किताब लिख सकते हैं।
अपने मन में उमड़-घुमड़ रहे सवालों को शांत करें और खुद से प्यार करने की वजह ढूंढें। अपने साथ समय बिताएं, वर्चुअल दुनिया से बाहर आएं और अच्छा म्यूज़िक सुनें। कुछ बढ़िया खाएं-पिएं, घर में डांस करें और खुद से बेइंतेहा मोहब्बत करें। सेल्फ आइसोलेशन के दौरान अगर आप सेल्फ लव की भूमिका को नहीं समझेंगे तो दिमाग शांत होने के बजाय अस्थिर हो जाएगा। यह समय खुद को समझने, सुधारने और मोहब्बत करने के लिए सबसे बेहतरीन है। इस समय का सदुपयोग करें क्योंकि इसके बाद ज़िंदगी फिर से रोबोट जैसी हो जाएगी, जहां आप एक बार फिर ऑफिस और घर के बीच जूझते रह जाएंगे।
मन को शांत रखने और एनर्जेटिक महसूस करने के लिए अच्छी नींद लेना बहुत ज़रूरी है। सोने से कुछ घंटे पहले ही सोशल मीडिया से दूरी बना लें और अपना फोन भी दूर कर दें। सोते समय आस-पास कोई भी ऐसा सामान नहीं होना चाहिए, जिससे आपका मन भटके या नींद खराब हो। नींद जितनी अच्छी होगी, सुबह भी उतनी ही बेहतर होगी और दिन अच्छा बीतेगा। उसी तरह से दिन भर में पानी पीने की मात्रा को बढ़ा देने से भी मन शांत रहता है। पानी शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और शरीर से सभी तरह के विषाक्त पदार्थ और अशुद्धियां भी बाहर निकल जाती हैं।