जमाना तेजी से बदल रहा है। टेलीफोन की जगह स्मार्टफोन ने ले ली है। देश तरक्की की राह पर है। पुराने जमाने में लोगों को जो काम करना मुश्किल लगते थे आज टेक्नोलॉजी के आ जाने से वो आसान हो गये है। अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है महिलाओं के प्रति समाज के लोगों की सोच। अगर ये मान भी लें कि समाज का नजरिया बदला है लेकिन फिर भी वो आदत नहीं बन पाया। समाज पूरी तरह से इस बात को स्वीकार नहीं कर पाया है कि महिलाएं भी पुरुषों को बराबरी में टक्कर दे रही हैं। आज भी कहीं न कहीं उन्हें समझौता करना ही पड़ता है। महिलाओं को घर से बाहर जाने की छूट तो मिली लेकिन एक सवाल के साथ… 'वहां क्या कर रही थी तुम ?' उन्हें सपनों को पूरा करने की हामी तो मिली लेकिन एक सीमा तय कर दी गई... 'बिटिया पहले शादी कर लो बाद में पढ़ लेना'। वजह कुछ भी हो लेकिन महिलाओं को हमेशा सवालों के घेरे में ही रहना पड़ता है। उसकी मानसिक पीड़ा को शायद उससे बेहतर कोई नहीं समझ पाता। चाहे कॉलेज गोइंग गर्ल हो, वर्किंग वूमन हो या फिर हाउस वाइफ, आज भी कहीं न कहीं महिलाओं को समाज के भद्दे तानें सुनने ही पड़ते हैं -
आजकल लोगों ने मॉर्डन चीजों को तो अपना लिया है लेकिन सिर्फ और सिर्फ लड़कियों के मॉर्डन कपड़ों को नहीं। उन्हें लगता है कि स्त्री पूरे और ढके कपड़ों में ही अच्छी लगती है। अमूमन लड़कियों को छोटे कपड़े पहने पर समाज के भद्दे कमेंट सुनने पड़ते हैं। यही नहीं देश के कई बुद्धिजीवियों ने तो ये तक कह दिया लड़कियों के छोटे कपड़े पहनने की वजह से ही रेप जैसी घटनाएं होती हैं।
जहां एक ओर महिलाएं देश का नाम रौशन कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ आज भी उन्हें बोझ समझा जाता है। 'लड़की हुई है' ये शब्द सुनने के बाद से ही घरवाले उसकी शादी के लिए पूंजी इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। इसकी कटौती वो उसकी पढ़ाई से करने लगते हैं। आज भी पिछड़े जगहों में उन्हें ज्यादा नहीं पढ़ने दिया जाता है क्योंकि उनसे ज्यादा पढ़ा-लिखा लड़का ढूंढने में घरवालों को मुश्किल होती है।
हमारे ही समाज में बहुत से लोगों को लगता है कि लड़की अगर अकेले बाहर जाएगी तो कोई उसका गलत फायदा उठा सकता है। शुरू से ही लड़कियों को कमजोर समझा जाता है और लड़कों को ताकतवर। अधिकांश घरों में पहले और आज भी बहनों की रक्षा के लिए उनके छोटे भाईयों के साथ उन्हें घर से बाहर भेजा जाता है।
मैदान में बल्ला उठाने से लेकर आसमान में जहाज उड़ाने तक महिलाएं हर काम कर रही हैं। लेकिन उन्हें आज भी घर का काम जैसे - खाना बनाना, साफ-सफाई करना, बच्चों का पालन-पोषण करना जैसे कामों से ही आंका जाता है। ऑफिस का काम करने के साथ-साथ मजबूरन महिलाओं को घर के काम भी करने पड़ते हैं। उसके बावजूद भी उन्हें समाज की ओर से ऐसे तानें मिलना बंद नहीं होते।
शादी होने के कुछ महीनों बाद से महिलाओं पर बच्चा पैदा करने का दबाव डालना शुरू हो जाता है। अगर वो प्रेगनेंट हो जाएं तो दिन-रात उसे यही समझाया जाता है कि बच्चा लड़का ही होना चाहिए। यही नहीं अगर लड़की हो जाती है तो उसका भी दोष महिला को ही दिया जाता है।
महिलाओं की सेक्स इच्छा को लेकर बात करना हमारे समाज में अपराध करने से कम नहीं समझा जाता है। पुरुष उन्हें बस अपनी हवस मिटाने का एक साधन समझते हैं। आज भी कई मामलों में ये पाया गया है कि ज्यादातर पुरुष सेक्स के दौरान कंडोम यूज करना चाहते हैं बल्कि महिलाओं को पिल्स लेने पर मजबूर करते हैं।
महिलाओं का इस तरह बराबरी के साथ काम करना पुरुष प्रधान समाज को रास नहीं आता है। उन्हें ये नहीं दिखता है कि इससे उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी, समाज प्रगति करेगा। बल्कि ये लगता है कि एक लड़की तब ही काम करती है जब उसके घर की हालत ठीक नहीं होती है। वरना 'अच्छे घर के लोग अपनी बहू-बेटियों से पैसे थोड़ी कमवाते हैं।'
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