त्योहारों के देश के तौर पर मशहूर भारत में अलग-अलग महीनों में काफी जोर-शोर से कई त्योहार मनाए जाते हैं। सिर्फ हिन्दू पर्व ही नहीं, बल्कि अन्य धर्मों के पर्वों को भी यहां बेहद खुशी और तैयारियों के साथ मनाया जाता है। कुछ त्योहार नए मौसम का प्रतीक होते हैं तो कुछ नई फसल के, कुछ सादगी के साथ घर-परिवार के बीच मनाए जाते हैं तो वहीं कुछ समुदायों के साथ। कुछ त्योहार किसी राज्य विशेष में मनाए जाते हैं तो कुछ देशभर में मनाए जाते हैं। होली, दीवाली, नवरात्रि के साथ ही मुख्य तौर पर सिखों का त्योहार माने जाने वाले बैसाखी (baisakhi) को भी देश भर में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
बैसाखी कब है - When is Baisakhi
बैसाखी को किसानों का पर्व (Baisakhi Festival) कहा जाता है। पूरे देश में मनाया जाने वाला यह त्योहार पंजाब और हरियाणा के लोगों के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण है। इस विशेष त्योहार पर अनाज की पूजा कर प्रकृति को धन्यवाद दिया जाता है। अब बात करते हैं कि हर साल इतने जोश और खुशियों के साथ मनाई जाने वाली बैसाखी कब है (baisakhi kab hai)। हर साल बैसाखी का त्यौहार 13 या 14 अप्रैल को ही मनाया जाता है। दरअसल, इसके पीछे भी एक मान्यता है।
इन मेकअप टिप्स से हर त्योहार पर दिखें खास
सूर्य जिस दिन मेष राशि में प्रवेश करता है, उसी दिन बैसाखी का त्यौहार (baisakhi festival) मनाया जाता है। ऐसा अमूमन हर साल 13 या 14 अप्रैल को ही होता है, जिसकी वजह से हर साल इन्हीं दो तारीखों में से किसी एक दिन बैसाखी (vaisakhi) की तिथि पड़ जाती है। 2020 में भी 13 अप्रैल को बैसाखी का त्यौहार (baisakhi festival) मनाया जाएगा।
बैसाखी की शुभकामनाएं - Baisakhi Wishes in Hindi
इस डिजिटल युग में एक-दूसरे से मिलना-मिलाना भले ही ज्यादा मुमकिन न हो पर त्योहारों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ती है। हर विशेष दिन और त्योहार की ही तरह बैसाखी के मौके पर भी लोग एक-दूसरे को बधाई संदेश भेजते हैं। आप भी अपने दोस्तों और परिजनों को बैसाखी की शुभकामनाएं (Baisakhi wishes in Hindi) दे सकते हैं। जानिए, कुछ खास बधाई संदेश, जिनके द्वारा बैसाखी की शुभकामनाएं दी जा सकती हैं।
इन कोट्स के ज़रिए कहें बॉस को अलविदा
1. बैसाखी आई, साथ में ढेर सारी खुशियां लाई
तो भंगड़ा पाओ, खुशी मनाओ
मिलकर सब बंधु-भाई
बैसाखी की शुभकामनाएं
2. सुबह से शाम तक वाहेगुरु की कृपा
ऐसे ही गुज़रे हर एक दिन,
न कभी हो किसी से गिला-शिकवा
खालसे के साजना दिवस की आप सबको बधाई
3. अन्नदाता की खुशहाली
और समृद्धि के पर्व
बैसाखी पर आप सभी को
ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई
4. नए दौर, नए युग की शुरुआत
सत्यता, कर्तव्यता हो सदा साथ
बैसाखी का यह सुंदर पर्व
सदैव याद दिलाता है मानवता का पाठ
बैसाखी की शुभकामनाएं
5. नचले गाल हमारे साथ
आई है बैसाखी खुशियों के साथ
मस्ती में झूम और खीर-पूड़ी खा
और न कर तू दुनिया की परवाह
बैसाखी मुबारक हो
6. बैसाखी का खुशहाल मौका है
ठंडी हवा का झोंका है
पर तेरे बिन अधूरा है सब
लौट आओ हमने खुशियों को रोका है
बैसाखी की शुभकामनाएं
7. खालसा मेरो रूप है खास
खालसे में करूं निवास
खालसा मेरा मुख है अंगा
खालसे के साजना दिवस की आप सभी को बधाई
8. तुस्सी हंसदे ओ सानूं हंसाने वास्ते
तुस्सी रोन्ने ओ सानूं रुआण वास्ते
इक बार रुस के ते विखाओ सोणेयो
मर जावांगे तुहाणूं मनााम वास्ते
बैसाखी दा दिण है खुशियां मणान वास्ते
9. सुनहरी धूप बरसात के बाद
थोड़ी सी खुशी हर बात के बाद
उसी तरह हो मुबारक आपको यह नई सुबह
कल रात के बाद
बैसाखी की शुभकामनाएं
10. खुशियां हों ओवरफ्लो
मस्ती कभी न हो लो
अपना सुरूर छाया रहे
दिल में भरा प्यार रहे
शोहरत की हो बौछार
ऐसा आए आपके लिए Baisakhi का त्योहार
बैसाखी क्यों मनाई जाती है?
बैसाखी का त्यौहार (Vaisakhi) मनाए जाने के पीछे कई रिवाज और कहानियां प्रचलित हैं। उल्लास और मिलन के इस त्योहार को फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसे कृषि पर्व भी कहते हैं। दरअसल, अप्रैल में इस समय तक रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है। लहलहाती रबी की फसलों और अपनी मेहनत को देखकर किसान खुश हो जाते हैं। मान्यता है कि वे अपनी खुशी का इज़हार बैसाखी का त्यौहार (Baisakhi festival) मनाकर ही करते हैं।
वे अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद भी कहते हैं और इससे बैसाखी का महत्व सिद्ध हो जाता है। इसके अलावा बैसाखी का एक ऐतिहासिक महत्व भी है। सन 1699 में 13 अप्रैल को ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को खालसा के तौर पर संगठित किया था। उन्होंने आनंदपुर साहिब में खालसा पंत की नींव रखी थी। उस समय खालसा पंथ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करवाना ही था।
बैसाखी का नाम कैसे पड़ा
किसी भी त्योहार का नाम यूं ही नहीं रख दिया जाता है। त्योहारों को नाम दिए जाने के पीछे भी कई संयोगों और धारणाओं को ध्यान में रखा जाता है। दरअसल, बैसाखी के समय यानि कि 13-14 अप्रैल के आस-पास आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस महीने को बैसाखी के तौर पर भी जाना जाता है। वैसे, मान्यता यह भी है कि वैशाखी माह के पहले दिन को बैसाखी कहा जाता है।
बैसाखी को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जैसा कि आपको बताया, इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, इस वजह से इसको मेष संक्रांति भी कहते हैं। असम में यह पर्व बिहू के तौर पर प्रचलित है, जबकि बंगाल में इसे पोइला बैसाख कहते हैं।
किन राज्यों का प्रमुख त्योहार है बैसाखी
बैसाखी का त्यौहार खासतौर पर हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता है। हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि इसे सिर्फ इन्हीं दो राज्यों में मनाया जाता हो। इन राज्यों का मुख्य त्योहार बैसाखी पूरे उत्तर भारत में काफी जोर-शोर के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा कई दूसरे राज्यों में भी इसे मनाने की परंपरा है। असम में बिहू के तौर पर लोकप्रिय बैसाखी के त्योहार को वहां फसल काटकर मनाया जाता है। वहीं, बंगाल में पोइला के नाम से मनाए जाने वाले इसी त्योहार के साथ उनका नववर्ष प्रारंभ होता है। केरल में यही त्योहार विशु के नाम से जाना जाता है। नाम कोई भी हो, इसे मनाने के कारण खुशियों से भरे हुए हैं और इसका जोश इन राज्यों के हर घर में देखा जा सकता है।
बैसाखी का धार्मिक महत्व
बैसाखी बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है। जानिए बैसाखी का महत्व।
ऐतिहासिक महत्व के साथ ही इसके धार्मिक महत्व को भी नकारा नहीं जा सकता है। हिंदुओं के लिए यह त्योहार काफी महत्व रखता है। दरअसल, हिंदू पौराणिक धर्मग्रंथों में मान्यता है कि हज़ारों सालों पहले मुनि भागीरथ ने कठोर तपस्या कर गंगा जी का आह्वान किया था और गंगा जी इसी दिन धरती पर उतरी थीं। हमारे देश में गंगा मइया का पूजन किया जाता है, ऐसे में इस विशेष दिन का महत्व और बढ़ जाता है।
इसी वजह से बैसाखी के मौके पर धार्मिक नदियों में स्नान किया जाता है। इस दिन गंगा किनारे जाकर मां गंगा की आरती करना भी बेहद शुभ माना गया है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो बैसाखी का अलग-अलग राशियों पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिस वजह से इसे सौर नववर्ष भी कहते हैं।
कैसे मनाएं बैसाखी
इस त्योहार की तैयारी कुछ-कुछ दीपावली की तरह ही की जाती है। कई दिनों पहले से ही घरवाले इसकी तैयारियों में जुट जाते हैं। घरों की सफाई और रंगाई-पुताई करवाई जाती है, उनकी नई सजावट की जाती है। आंगनों या बैल्कनी में अल्पना या रंगोली सजाई जाती है।
दीवाली की ही तरह बैसाखी पर भी घरों में लाइटिंग की जाती है और दीयों व मोमबत्तियों से रोशनी की जाती है। अलग-अलग तरह के पकवान बनाकर घरों में खुशी का माहौल बनाया जाता है। सुबह स्नान आदि करके सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारा जाते हैं, वहां गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है और कीर्तन भी करवाया जाता है। आज भी बैसाखी का त्यौहार मनाने के लिए नदियों के किनारे मेलों का आयोजन होता है, जिसमें बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सभी शिरकत कर एक-दूसरे से मिलकर साथ में मस्ती करते हैं।
पंजाबी लोग इस दिन अपना विशेष नृत्य भांगड़ा कर अपनी खुशी ज़ाहिर करते हैं। ढोल-नगाड़ों पर नाचते-गाते हुए विभिन्न राज्यों में हर्षोल्लास के साथ यह त्योहार मनाया जाता है।
स्वर्ण मंदिर में बैसाखी
सिखों के मुख्य त्योहार बैसाखी की बात हो और पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर का ज़िक्र न किया जाए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। बैसाखी के खास मौके पर स्वर्ण मंदिर यानि कि गोल्डन टेंपल (Golden Temple) की रौनक देखते ही बनती है। इस दिन पूरे प्रांत के लोग मत्था टेकने के लिए यहां आते हैं।
वैसे तो यहां हर दिन ही सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं, मगर बैसाखी वाले दिन सभी का उत्साह और भीड़ दोगुनी हो जाती है। यहां दरबार साहिब के दर्शन कर अरदास की जाती है। उसके बाद कीर्तन और शबद राग गायन का आयोजन किया जाता है। फिर वहां स्थित पवित्र सरोवर में डुबकी लगाई जाती है। स्वादिष्ट लंगर का स्वाद चख गुरु जी का आशीर्वाद लेकर भक्त वहां से वापसी करते हैं।
बैसाखी से जुड़े सवाल-जवाब (FAQ’s)
1. क्या बैसाखी एक कृषि प्रधान त्योहार है?
हां, बैसाखी को कृषि प्रधान त्योहार माना जाता है। हालांकि, किसानों के साथ ही आम लोग भी इसे काफी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व भी है।
2. क्या बैसाखी 2 दिन मनाई जाती है?
बैसाखी का त्यौहार एक ही दिन मनाया जाता है। हालांकि, यह कभी 13 अप्रैल को तो कभी 14 अप्रैल को तिथि के अनुसार मनाई जाती है।
3. बैसाखी को और कितने नामों से जाना जाता है?
अलग-अलग राज्यों में बैसाखी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। बैसाखी को बिहु, पोहेला बोशाख, बोहाग बिहु, विशु और पुथंडु आदि नामों से भी जाना जाता है।
4. बैसाखी की खुशी में कौन सा नृत्य किया जाता है?
बैसाखी की खुशी मनाने के लिए आमतौर पर भांगड़ा और गिद्दा नामक नृत्य किए जाते हैं।
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