ऐसे दौर में जब जिंदगी मोबाइल के बटन पर टिक गयी है, सारी बातें, सारी भावनाएं अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर शेयर होने लगी हैं। संयुक्त परिवार की परिभाषा तो लगभग खत्म ही हो चली है। लेकिन शायद हम भूल रहे हैं कि जड़ों को मजबूत रखेंगे तो आगे भी फल पायेंगे और उन जड़ों को मजबूत रखने के लिए हमें अपने परिवार के बड़े- बुजुर्गों के साथ को भूलना नहीं चाहिए। वर्तमान दौर में तो इसकी आवश्यकता और अधिक जरूरी है। अगर आप वाकई चाहते हैं कि आपकी आने वाली जेनरेशन में भावनाएं और रिश्तों की अहमियत बचे तो यह जरूरी है कि उनका ग्रैंड पेरेंट्स से राब्ता न टूटे। यह भी हकीकत है कि ग्रैंड पेरेंट्स ताउम्र बच्चों के साथ नहीं रह पायेंगे। इसलिए उनके पास जितना भी समय है, कोशिश करें कि वह आपके बच्चों के साथ ही बितायें। परिवार में ग्रैंड पेरेंट्स की उपस्थिति बेहद जरूरी है। इनके साथ रहने से परिवार एक जुट रहने के साथ ही हर सुख- दुख में एक- दूसरे का साथी बना रहता है। अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे ग्रैंड पेरेंट्स की उपस्थिति को स्वीकारें तो आपको अपने अग्रजों का मान और आदर करना चाहिए। यह बेहद जरूरी है कि ग्रैंड पेरेंट्स की अहमियत वर्तमान दौर में भी बरकरार रहे और केवल किस्से- कहानियों तक सीमित न रह जाये। इसलिए आपको अपने बच्चों को उनकी अहमियत समझानी चाहिए। वर्तमान दौर में आखिर क्यों जरूरी है कि ग्रैंड पेरेंट्स की घर में उपस्थिति, आज हम इससे जुड़े हर महत्वपूर्ण पहलू से आपको पूरी तरह से अवगत करायेंगे।
ग्रैंड पेरेंट्स के साथ रहने के फायदे – Benefits Of Living With Grand Parents
कई अध्ययन में यह सिद्ध हो चुका है कि जिन घरों में ग्रैंड पेरेंट्स होते हैं, उस परिवार में खुशियां ही खुशियां होती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ग्रैंड पेरेंट्स अपने बच्चों से अधिक उनके बच्चों (ग्रैंड चिल्ड्रेन) को प्यार करते हैं और उनके साथ पूरी तरह से घुलने- मिलने की कोशिश करते हैं। वे बच्चों को वैसी मनोहर और ग्रंथों वाली कहानियां भी सुनाते हैं, जिन्हें सुनने का मौका उन्हें अपने पेरेंट्स से नहीं मिलता है। यही नहीं, वे बच्चों के साथ बच्चा बन कर पूरी तरह से एंजॉय करते हैं, इसकी वजह से घर में हमेशा खुशियों का माहौल होता है।
बच्चों की होती है शानदार परवरिश – Good Care Of Children
पेरेंट्स वर्किंग हों तो वे अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते हैं। ऐसे में घर में बड़े- बुज़ुर्ग हों तो बच्चे कभी भी अकेला महसूस नहीं करते हैं। एक खास बात यह भी है कि पेरेंट्स से अधिक परवरिश का ख्याल और अनुभव बड़े- बुजुर्गों में होता है और वे अपने अनुभव के हिसाब से भी बच्चों का पूरा ख्याल रखते हैं। जिन घरों में दोनों पार्टनर्स वर्किंग होते हैं और उनके बच्चे छोटे हों तो वे उन्हें दिनभर किसी और की निगरानी में नहीं छोड़ सकते। चूंकि किसी और पर विश्वास करना बेहद कठिन होता है। इस स्थिति में भी घर के बड़े और बुजुर्गों पर ही विश्वास किया जाना चाहिए।
इतिहास से भी रूबरू कराते हैं ग्रैंड पेरेंट्स
यह भी सच है कि किताबों में पढ़ी चीजों से अधिक अगर आपने किसी के अनुभव सुने हैं तो वे किस्से दिमाग में लंबे समय तक दर्ज हो जाते हैं। फर्ज करें कि ग्रैंड पेरेंट्स ने आजादी की लड़ाई देखी है, तो वह बच्चों को बता सकते हैं कि आजादी की अहमियत क्या है। बच्चे उनके नजरिये से इतिहास के पन्नों को पलट पाने में कामयाब होते हैं। यही नहीं, भले ही आज तकनीकी चीजें आपके बच्चे की पढ़ाई को आसान करने में लाभदायक हो गयी हों लेकिन ग्रैंड पेरेंट्स अपने दौर में की गयी पढ़ाई के ट्रिक्स जब शेयर करते हैं तो आपको बिना किसी तकनीक के भी उन प्रॉब्लम को शेयर करने की कला आ जाती है। ऐसे में हो सकता है कि कई बार आपके बच्चे बाकी बच्चों से अलग होकर खुद को साबित करने में कामयाब हो जायें।
पेरेंट्स के बचपन की सैर करा सकते हैं ग्रैंड पेरेंट्स
जिंदगी में यादों की अहमियत भी बेहद खास होती है। यूं तो भागदौड़ में हम यह महसूस नहीं कर पाते हैं लेकिन जब आप स्थिर होते हैं तो कभी- कभी लोगों की चाहत होती है कि वे अपने अतीत में जाएं और पुरानी यादों को ताजा करें। ऐसे में अगर आपके पास कुछ मेमोरी ही नहीं होगी तो आप किसे याद करेंगे। मेमोरी बने, इसके लिए जरूरी है कि बच्चे अपने पेरेंट्स के बचपन के किस्से और कहानियां भी जानें, जो कि सिर्फ ग्रैंड पेरेंट्स ही सुना सकते हैं। वे कहानियां बच्चों को खूब प्रभावित करती हैं और वे अपने परिवार के लोगों के बारे में भी जान पाते हैं।
परिवार में बैलेंस रहता है बरकरार
इन बातों को हम कई बार बहुत छोटा मान कर नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन यह सच है कि अगर परिवार में ग्रैंड पेरेंट्स होते हैं, तो परिवार में सही तरीके से बैलेंस बरकरार रहता है। चूंकि वे बच्चों को पेरेंट्स की कमी महसूस नहीं होने देते हैं। साथ ही उनके पास ज्ञान और अनुभवों का खजाना होता है तो वे बच्चों के साथ दोस्त बन कर उनकी परेशानियों को भी सॉल्व कर देते हैं। ऐसे में बच्चे अपने पेरेंट्स से किसी तरह की शिकायत नहीं करते और पेरेंट्स भी टेंशन फ्री रहते हैं। इससे घर में खुशनुमा माहौल बरकरार रहता है।
बच्चे की भी होती है लर्निंग
यह भी अध्ययन से सिद्ध हुआ है कि जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ रहते हैं, वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के होते हैं और जिद्दी बिल्कुल नहीं होते हैं। चूंकि ग्रैंड पेरेंट्स उन्हें जीवन में अच्छी बातों को ही सीखने की राय देते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि ग्रैंड पेरेंट्स पूरी तरह से अपनी बाकी सभी जिम्मेदारियां पूरी कर चुके होते हैं। उनके पास वक्त की कोई कमी नहीं होती है। इसलिए वे बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं और उन्हें जीवन से जुड़ी नैतिक मूल्य की बातें सिखाते हैं। जब बच्चे बचपन से ही ऐसे विनम्र लोगों के साथ रहते हैं तो उनमें अपने आप वह स्वभाव आ जाता है कि उन्हें जिद्दी न बनकर विनम्र बनना है। वे समझते हैं कि उन्हें खुद में अच्छी आदतें विकसित करनी हैं। यह भी सच है कि अगर आपका बच्चा बचपन से ही देख रहा है कि उनके मम्मी- पापा के माता- पिता उनके साथ रह रहे हैं तो वह भी अपने जेहन में इस बात का ख्याल रखेगा और बड़े होने पर अपनी आने वाली पीढ़ी को वही सिखायेगा लेकिन अगर उसे बचपन से ही ग्रैंड पेरेंट्स से दूर रहने की आदत लगी होगी तो जाहिर सी बात है कि वह अपने बच्चों में भी ग्रैंड पेरेंट्स को लेकर वह भावना नहीं जगा पायेगा। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपसे हमेशा जुड़ा हुआ महसूस करे तो परिवार में बड़े- बुुजुर्गों का साया बना कर रखना बेहद जरूरी है।
ग्रैंड पेरेंट्स से बच्चे सीखते हैं अच्छी आदतें
जिन परिवारों में बच्चे अपने ग्रैंड पेरेंट्स के साथ रहते हैं, वे परिवार के संस्कार अधिक सीख पाते हैं। साथ ही वे रिश्तों को भी अहमियत देने की कला सीखते हैं। जैसे ग्रैंड पेरेंट्स अगर घर में रहते हैं तो बच्चे भी यह देखते हैं कि अगर उनके पेरेंट्स से कोई गलती हो गयी है तो उनके ग्रैंड पेरेंट्स किस तरह अपने बच्चों को माफ कर देते हैं। ऐसे में बच्चे ग्रैंड पेरेंट्स से क्षमा करने की कला सीखते हैं। गलतियां होने के बावजूद माफ करने में क्यों बड़प्पन है, यह ग्रैंड पेरेंट्स ही सिखाते हैं।
दूसरी अहम बात जो बच्चे अपने ग्रैंड पेरेंट्स से सीखते हैं, वह है गुस्से पर काबू करना। चूंकि बड़े- बुजुर्गों में धैर्य गजब का होता है और वे बेवजह गुस्सा नहीं करते हैं। परिवार को जोड़ कर रखने के लिए किस तरह धैर्य और गुस्से को रोका जाना चाहिए, यह बच्चे ग्रैंड पेरेंट्स को देख कर सीख सकते हैं।
तीसरी बात आती है कम्युनिकेशन की। रिश्तों में कम्युनिकेशन की अहमियत क्या होती है, यह भी बड़े- बुजुर्गों से सीखना चाहिए। चूंकि बड़े- बुजुर्ग सिर्फ काम की बातें नहीं करते, वे पूरे परिवार के बीच कम्युनिकेशन बनाये रखते हैं। ऐसे में किस तरह बिजी शेडयूल होने के बावजूद बातचीत बंद नहीं होनी चाहिए, यह सीख भी ग्रैंड पेरेंट्स से लेनी चाहिए।
फिर बात आती है कमिटमेंट्स की। बड़े- बुजुर्ग अपनी जिंदगी में पूरी तरह से अनुशासित होते हैं और साथ ही वे कमिटमेंट्स को भी हर हाल में पूरा करते हैं। फिर चाहे उन्हें किसी भी परेशानी से जूझना पड़े। ऐसे में बच्चे अपने बुजुर्गों को देख कर उनसे यह अच्छी चीज भी सीख सकते हैं।
दोस्ती करने की एक खास कला में भी बुजुर्ग माहिर होते हैं। वे परिवार के लोगों के साथ ही नहीं, बल्कि घर में बाकी के लोग जैसे माली, नौकरानी या फिर अखबार वाले (जो भी लोग आपकी दिनचर्या का हिस्सा हैं), से बनाकर रखते हैं। उनसे कभी भी अकड़ में बात नहीं करते। वे कभी यह नहीं दिखाते कि वे जो कर रहे हैं, वह छोटा काम है। वे उन्हें दोस्त बनाते हैं और उनके परिवार वालों के बारे में भी पूछते हैं। यही नहीं, उनसे खूब प्यार से बातें करते हैं। ऐसे में ये सारे हाउस हेल्प भी अच्छी तरह से काम करते हैं। बच्चे बुजुर्गों से यह कला भी सीखते हैं कि वे भी बड़े होने पर इन लोगों का कभी अनादर न करें और उन्हें सम्मान देने की कला सीखें।
एक अच्छी बात यह भी होती है कि अगर बच्चे ग्रैंड पेरेंट्स के साथ होते हैं, तो वह झूठ बोलना भी नहीं सीखते, चूंकि वे जानते हैं कि अगर उन्होंने कोई झूठ बोला तो उनके पेरेंट्स तक सही बात की जानकारी पहुंच सकती है। इसलिए वे भी अपनी हरकतें करते वक्त अलर्ट रहते हैं। यही नहीं, एक बड़ी बात यह भी होती है कि बाहर वाले या पड़ोसी भी अलर्ट रहते हैं कि बच्चे के साथ दिनभर कोई न कोई है, तो वे भी बच्चों के साथ किसी भी तरह की गलत हरकत या फिर बेवजह उन्हें परेशान करने के बारे में नहीं सोचते हैं।
ग्रैंड पेरेंट्स कराते हैं रीति-रिवाज से रूबरू
यूं तो नये जमाने के बच्चे नये जमाने में ही यकीन रखते हैं और उन्हें सबकुछ फटाफट करने की आदत होती है। वे घर के रीति- रिवाजों को उस हद तक तवज्जो नहीं देते हैं। लेकिन अगर बचपन से वे ग्रैंड पेरेंट्स के साथ होते हैं तो हर त्योहार, शादी और पारिवारिक फंक्शन में वे घर के रीति- रिवाज देखते हैं और उन्हें निभाते हैं तो आगे चल कर भी वही परंपरा बरकरार रहती है। चूंकि ग्रैंड पेरेंट्स हमेशा इस बात का ख्याल रखते हैं कि घर के पारंपरिक रीति- रिवाज बरकरार रहें। बच्चा अगर बचपन से उससे रूबरू होगा तो आगे चल कर उसे यह सब ढोंग या बोझ नहीं लगेगा, चूंकि वह इसका आदी रहेगा। इसलिए बच्चों को छोटी उम्र से ही रीति- रिवाजों से रूबरू कराते रहना चाहिए।
अकेलेपन और डिप्रेशन की समस्या नहीं होती
अक्सर हम खबरों में पढ़ते हैं कि ऐसे कई बच्चे हैं, जो अपने वर्किंग पेरेंट्स की वजह से उनके साथ वक्त नहीं गुजार पाते हैं और अपनी मन की बातों को शेयर ही नहीं कर पाते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि वह अपनी बात किससे शेयर करें। ऐसे में उनकी जिंदगी में क्या चल रहा है, क्या नहीं वह किसी को पता नहीं होता है और बच्चे अंदर ही अंदर घुटते चले जाते हैं। अंतत: वह अकेलेपन का शिकार होते हैं और धीरे- धीरे वह कम उम्र में ही डिप्रेशन में चले जाते हैं। चूंकि उन्हें अपनी मन की बातें शेयर करने के लिए कोई मिलता नहीं है। पेरेंट्स को जब तक इस बात का पता लगता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। ऐसे में सबसे अधिक साथ ग्रैंड पेरेंट्स ही देते हैं। अगर वह घर का हिस्सा होते हैं, तो कभी भी घर में बच्चा खुद को अकेला महसूस नहीं करेगा। चूंकि वह अपने दिन भर की बातें अपने ग्रैंड पेरेंट्स से शेयर कर सकते हैं। ग्रैंड पेरेंट्स भी बच्चों का ख्याल रखते हैं और अगर उन्हें बच्चे में किसी तरह की अजीबोगरीब हरकत का पता चलता है तो वह फौरन अपने बच्चों से शेयर करते हैं। फिर पेरेंट्स बच्चे से बात कर उसे सुलझा सकते हैं। ऐसे में न तो बच्चों में डिप्रेशन की किसी तरह की समस्या आयेगी और न ही अकेलेपन की। इसलिए भी ग्रैंड पेरेंट्स का अपने ग्रैंड चिल्ड्रेन की जिंदगी में रहना जरूरी है।
परिवार में ग्रैंड पेरेंट्स की मौजूदगी को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल और उनके जवाब (FAQs)
1. सवाल : ऐसा कई बार होता है कि मेरा बच्चा अपने ग्रैंड पेरेंट्स की शिकायत लेकर आता है, मुझे समझ नहीं आता है कि मुझे क्या करना चाहिए?
जवाब : देखिये ऐसी परिस्थिति में बेहद जरूरी है कि आप अपने पेरेंट्स से पूरी बात करें। कई बार ऐसा भी होता है कि अगर ग्रैंड पेरेंट्स बच्चों की बात नहीं मानते हैं तो वह झूठी बातें बना कर उन्हें परेशान करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चे और अपने पेरेंट्स के साथ बैठ कर बात करें और फिर इस समस्या को सुलझाने की कोशिश करें। सिर्फ बच्चे की बात पर उन्हें गैर जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है।
2. सवाल : मेरा एक ही बेटा है और वह अपने ग्रैंड पेरेंट्स से काफी अटैच हो गया है। मैं वर्किंग वुमन हूं। मुझे कभी- कभी लगता है कि वह मुझसे अधिक अब उनसे ही प्यार करने लगा है?
जवाब : आप बिल्कुल बेवजह की इनसेक्योरिटी का शिकार हो रही हैं। बच्चे हमेशा उनकी तरफ आकर्षित होते हैं, जिनके साथ वह ज्यादा समय बिताते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह आपको भूल जायेगा, बल्कि आपको तो खुश रहना चाहिए कि आपकी अनुपस्थिति में बच्चे का पालन- पोषण सही हाथों में हो रहा है। इसलिए व्यर्थ की चिंता मत करिये।
3. सवाल : क्या यह सच है कि ग्रैंड पेरेंट्स रहेंगे तो बच्चों में डिप्रेशन की समस्या नहीं होती है?
जवाब : जी हां, बिल्कुल। कई बार बच्चे जब अकेले रहते हैं तो उनके दिमाग में कई सारी बातें चलती रहती हैं। वह अपने मन की बात शेयर नहीं कर पाते, तो उन्हें डिप्रेशन होगा ही। जबकि अगर वह ग्रैंड पेरेंट्स के साथ रहेंगे, तो उन्हें भी हमेशा लगेगा कि उनके साथ बातें करने के लिए कोई है। इसलिए यह सही बात है कि ग्रैंड पेरेंट्स के साथ रहने से बच्चे ज्यादा खुल कर बातें करते हैं।
4. सवाल : यह बात कहां तक सही है कि ग्रैंड पेरेंट्स की मौजूदगी में बच्चे अच्छी बातें ही सीखते हैं?
जवाब : बिल्कुल, सबसे पहले तो बच्चे जिद्दी नहीं होते हैं। अपनी रूट्स से जुड़े रहते हैं। साथ ही वह धैर्य से रहना, सच्ची बातें करना, इतिहास के बारे में जानना, लोगों से दोस्ती करने की कला और साथ ही अपने घर में काम करने वाले लोगों (हाउस हेल्प) के साथ भी अच्छी तरह बर्ताव करने जैसी कई अच्छी बातें सीखते हैं।
5. सवाल : कई बार ग्रैंड पेरेंट्स बच्चों से उनके माता- पिता से जुड़ी बचपन की बातें शेयर कर जाते हैं, जो उन्हें नहीं भी करनी चाहिए। ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाना चाहिए?
जवाब : आपके बच्चों का हक है कि वह अपने माता- पिता के बारे में पुरानी बातें जानें। इससे एक अच्छी ही परंपरा आगे बढ़ती है। इसमें कोई बुरी बात नहीं है। अपने बच्चों से ऑनेस्ट होने में बुराई क्या है। यह तो अच्छी बात है कि बच्चे भी फिर खुल कर आपसे सारी बातें शेयर करेेंगे। बच्चे आपके इतिहास के बारे में जितना जानेंगे, उतना जमीन से जुड़े रहेंगे।
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