सनातन धर्म के अनुसार, हमारी भारतीय संस्कृति में मनुष्य के लिए जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें से हर एक संस्कार एक निश्चित समय पर किया जाता है। कुछ संस्कार तो शिशु के जन्म से पूर्व ही कर लिए जाते हैं, कुछ जन्म के समय पर और कुछ बाद में।
महर्षि वेदव्यास स्मृति शास्त्र के अनुसार -
गर्भाधानं पुंसवनं सीमंतो जातकर्म च। नामक्रियानिष्क्रमणेअन्नाशनं वपनक्रिया:।। कर्णवेधो व्रतादेशो वेदारंभक्रियाविधि:। केशांत स्नानमुद्वाहो विवाहाग्निपरिग्रह:।।त्रेताग्निसंग्रहश्चेति संस्कारा: षोडश स्मृता:।
(व्यासस्मृति 1/13-15)
अर्थात् ये सोलह संस्कार हैं - गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नाम करण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, मुंडन, कर्णवेधन, उप नयन, विघारंभ, केशान्त, समावर्तन, विवाह, विवाह अग्नि संस्कार और अंत में अंयोष्टि संस्कार। इनमें से गर्भ संस्कार को बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण बताया गया है। एक गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे शिशु को इस संस्कार के द्वारा संस्कारित किया जाता है ताकि वह जब इस दुनिया में आए तो प्रतिभावान बने, एक अच्छा इंसान बने, अच्छाई के रास्ते पर चले और बुराई से दूर रहे। अपनी विलक्षण और दिव्य प्रतिभा से समाज में परिवर्तन लाए और उसे एक विकसित सोच प्रदान करे। तो आइए जानते हैं, कौनसा संस्कार गर्भवती स्त्री और उसके गर्भ की रक्षा के लिए किया जाता है और गर्भ संस्कार से जुड़ी हर वह छोटी- बड़ी बात, जो हमारे शास्त्रों मे लिखी गई है -
सरल शब्दों में अगर गर्भ संस्कार को समझाया जाए तो इसका मतलब होता है, बच्चों को गर्भ से ही संस्कार प्रदान करना ताकि वे समाज में अपनी आदर्श छवि प्रस्तुत कर पाएं। बहुत से लोग इस बारे में प्रश्न उठाते हैं कि गर्भ से बच्चे को कैसे संस्कार दिये जा सकते हैं। तो आपको बता दें कि ये बातें सिर्फ धार्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी सच साबित हुई हैं कि गर्भ में पल रहा शिशु किसी चैतन्य जीव की तरह व्यवहार करता है। वह सुनता भी है, समझता भी है, साथ ही ग्रहण भी करता है। गर्भ संस्कार की विधि गर्भ धारण के पूर्व से ही शुरू हो जाती है। गर्भ संस्कार में गर्भवती महिला की दिनचर्या, उसका आहार, ध्यान, गर्भस्थ शिशु की देखभाल कैसी की जाए, इन सभी बातों का वर्णन किया गया है।
यह बात तो सभी जानते होंगे कि गर्भ में पल रहा शिशु एक मांस का टुकड़ा नहीं, बल्कि जीता- जागता जीव है। ऐसे में होने वाले माता- पिता, दोनों का यह कर्तव्य बनता है कि वे ऐसे शांत और दिव्य माहौल को अपनाएं जिससे उनके होने वाले शिशु पर अच्छा प्रभाव पड़े। गर्भस्थ शिशु अपने आसपास होने वाली हर घटना की संवेदना को महसूस करता है और उससे प्रभावित भी होता है। साथ ही वह उस घटना पर प्रतिक्रिया भी देता है, जैसे कि अगर कोई गर्भवती स्त्री के आस पास लड़ाई- झगड़ा करता है, जोर- जोर से चिल्ला रहा होता है तो गर्भ में पल रहा शिशु इन आवाज़ों से डरता है और कांपने जैसी प्रतिक्रिया देता है। इसीलिए शास्त्रों में गर्भ संस्कार का प्रावधान है, ताकि उस दौरान गर्भवती स्त्री को ऐसा माहौल प्रदान किया जाए, जहां वह और उसका होने वाला शिशु, दोनों ही इन फिजूल की घटनाओं और वातावरण से दूर रह कर खुश रह सकें।
हमारे पूर्वज मानते थे कि अगर माता- पिता, दोनों में से कोई एक भी मानसिक रूप से शांत और खुश नहीं है तो गर्भधारण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से होने वाली संतान की मानसिक अवस्था पर प्रभाव पड़ता है। धर्म शास्त्रों में मन: स्थिति पर बहुत जोर दिया गया है क्योंकि तनाव से आपके स्वास्थ्य और स्वभाव पर बुरा असर तो पड़ता ही है, साथ ही आपकी होने वाली संतान भी इसी प्रवृत्ति की हो जाती है। इसीलिए माता और पिता, दोनों का ही खुश और चिंतामुक्त रहना जरूरी है। पिता गर्भधारण में केवल सहयोग प्रदान करता है लेकिन मां अपने खून के कतरों से उस बीज को जीव का रूप देती है। बच्चे का एक- एक कण मां से जुड़ा होता है। ऐसे में मां की भूमिका गर्भ संस्कार (garbh sanskar in hindi) में पिता से भी अहम होती है। आइए जानते हैं इसके बारे में।
शुद्ध खानपान से मतलब है, सात्विक और अच्छा आहार ग्रहण करें। इससे आपके होने वाले बच्चे को वे सभी जरूरी प्रोटीन और विटामिन्स मिलेंगे, जो उसके शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक हों।
गर्भावस्था के दौरान अगर मां तनाव में होगी तो बच्चा भी उसी तनाव को महसूस करेगा और इसका असर उसके मानसिक विकास पर भी पड़ सकता है। इसीलिए प्रेगनेंसी के दौरान खुश रहें और आने वाले पलों के स्वागत की तैयारियों में व्यस्त रहें।
अगर कोई महिला गर्भवती होने के बाद भी धूम्रपान या फिर किसी अन्य तरह का नशा करती हो तो उसे यह बिल्कुल छोड़ देना चाहिए। इससे उसके स्वास्थ्य के साथ- साथ होने वाले शिशु की सेहत पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसीलिए इससे बचें और अच्छी आदतों को अपनाएं।
गर्भ में पल रहा शिशु अपनी मां के साथ सीधे संपर्क में होता है। आपके उठने- बैठने का तरीका, सोने का तरीका भी बच्चे के विकास के लिए जिम्मेदार होता है। इसीलिए धीमे- धीमे चलें, झटके से मत उठें और पीठ के बल सोएं और कोशिश करें कि गर्भ पर कभी भी सीधी रोशनी न पड़े, यह बच्चे के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है।
गर्भ में पल रहा बच्चा 23 वें हफ्ते से कुछ आवाज़ों के प्रति रिस्पॉन्स देना शुरू कर देता है और खासतौर से अपनी मां की आवाज़ पर। इसीलिए इस दौरान अपने होने वाले बच्चे को स्पर्श का एहसास दिलाएं और उससे अच्छी-अच्छी बातें करें। उसे संगीत (garbh sanskar music) कविता, गीत और मंत्र सुनाएं। (garbh sanskar mantra) इससे उसका मस्तिष्क तेजी से विकास करेगा।
गर्भ संस्कार (garbh sanskar in hindi) को लेकर अक्सर अभिमन्यु की कहानी सुनाई जाती है। यह महाभारत की प्रख्यात घटनाओं में से एक है। जिसका विस्तार विवरण आपको भगवत गीता में मिल जायेगा। (garbh geeta in hindi) दरअसल, महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य ने पांडवों का वध करने के लिए चक्रव्यूह की रचना की। उस दिन चक्रव्यूह का रहस्य जानने वाले एकमात्र अर्जुन को कौरव बहुत दूर तक भटका ले गए और इधर पांडवों के पास चक्रव्यूह भेदन का आमंत्रण भेज दिया। यह जानकर जब सारी सभा सन्नाटे में थी, तब 23 वर्षीय राजकुमार अभिमन्यु खड़े हुए और बोले - ‘‘मैं चक्रव्यूह भेदन करना जानता हूं।’’ युधिष्ठिर ने साश्चर्य प्रश्न किया - ‘‘पुत्र! मैंने तो तुम्हें कभी भी चक्रव्यूह भेदन सीखते न देखा और न ही सुना।’’ तब अभिमन्यु ने कहा - ‘‘तात्, जब मैं अपनी मां सुभद्रा के पेट में था और मां को प्रसव पीड़ा प्रारंभ हो गई थी, तब मेरे पिता अर्जुन पास ही थे। मां का ध्यान दर्द की ओर से बंटाने के लिए उन्होंने चक्रव्यूह भेदन की क्रिया बतानी प्रारंभ की थी।"
जानकारों का कहना है कि स्वामी विवेकानंद की मां भुवनेश्वरी देवी गर्भावस्था के दौरान ध्यान लगाया करती थीं, इसी कारण स्वामी विवेकानंद बचपन से ध्यान योग विद्या जानते थे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भक्त प्रह्लाद जब गर्भ में थे, तब उनकी मां को घर से निकाल दिया गया था। उस समय देवर्षि नारद मिले और उन्होंने भक्त प्रह्लाद की मां को अपने आश्रम में शरण दी। वहां नारायण- नारायण का अखंड जाप चल रहा था। जन्म के बाद प्रहलाद इसीलिए भक्त प्रहलाद कहलाए क्योंकि वे नारायण यानि विष्णु भगवान के परम भक्त बन गये थे।
गर्भ संस्कार की प्रक्रिया (garbh sanskar in hindi) गर्भाधारण के दो- तीन महीने पहले से ही शुरू हो जाती है। धर्म ग्रन्थों के अनुसार, जब पति- पत्नी संतान प्राप्ति चाहते हों, उन्हें कम से कम तीन महीने पहले से ही मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक रूप से खुद को तैयार कर लेना चाहिए। क्योंकि इस दौरान जैसा वे सोचते हैं या करते हैं, उसका असर उनके बच्चे पर पड़ता है। गर्भवती महिला को पहले तीन महीने में बच्चे का शरीर सुडौल व निरोगी हो, इसके लिए अपने आहार और दिनचर्या का सही से पालन करना चाहिए। उसके बाद तीसरे से छठे महीने में बच्चे की उत्तम मानसिकता के लिए प्रेरणादायक और सकारात्मक विचार प्रदान करने वाली किताबें पढ़नी चाहिए। (garbh sanskar book in hindi) अच्छी बातें ग्रहण करनी चाहिए। छठे से नौवें महीने में उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता के लिए कोशिश करनी चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान मंत्रों और श्लोकों का उच्चारण करने से होने वाले शिशु पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। आइए जानते हैं गर्भ संस्कार मंत्र (garbh sanskar mantra) के किन मंत्रों का उच्चारण करना श्रेष्ठ रहता है -
ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष: रक्ष त्रैलोक्य नायक: । भक्त नाभयं कर्ता त्राताभव भवार्णवात् ॥
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् । लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
गर्भ संस्कार के लिए अगर आप कोई ऐसी किताब (garbh sanskar book in hindi) पढ़ने के इच्छुक हैं, जिसमें सभी सही जानकारियां हों तो आप आयुर्वेदिक गर्भ संस्कार नामक (ayurvedic garbh sanskar book in hindi) किताब पढ़ सकते हैं। (garbh sanskar book in hindi)
गर्भ संस्कार वह प्रक्रिया है, जो गर्भाधारण से लेकर गर्भावस्था के नौ महीनों तक चलती है। इसमें माता- पिता अपने आचार- व्यवहार से शिशु का गर्भ संस्कार करते हैं। कहीं- कहीं गोदभराई की रस्म के दौरान सिर्फ पंडित की जरूरत होती है।
जी हां, मां की आवाज़ का असर गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ता है। वह सब कुछ सुनता भी है और समझता भी है। गर्भ में शिशु जिस तरह बड़ा होता है, उसके सुनने और आवाज़ पहचानने की क्षमता भी बढ़ती जाती है।
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