साईं कलयुग के ऐसे देवता हैं, जो किसी धर्म या जाति के बंधन में नहीं बंधे थे। क्या हिंदू, क्या मुस्लिम और क्या सिख.. साईं के दरबार उसके हर भक्त के लिए खुले हैं। अगर आप साईं पर भरोसा रखते हैं तो आपके जीवन की नईयां वो खुद पार लगा देंगे। वैसे अपने साईं इतने कृपालु हैं कि एक नमस्कार पर भी रीझ जाते हैं। लेकिन फिर भी साईं बाबा की विशेष कृपा उसी पर होती है जो सदा सत्य का पालन करता है। अगर आपका जीवन भी बेकार की तमाम परेशानियों से घिरा है तो साईं के ये 11 वचन आपको राह दिखाएंगे। किसी भी काम को शुरू करने से पहले साईं के इन 11 वचनों का सच्चे मन से स्मरण कीजिए फिर देखिए कैसे बिगड़ते काम भी बनने लगेंगे।
‘जो शिरडी आएगा। आपद दूर भागाएगा।’ इसका अर्थ है कि साईं बाबा की नगरी शिरडी में जो भक्त भी आएगा उसकी सभी परेशानियां साईं दूर कर देंगे। अगर कोई भक्त शिरडी आने में समर्थ है तो उसकी सच्चे मन से यहां आने की श्रृद्धा ही मौजूदगी के बराबर है।
‘चढ़े समाधि की सीढ़ी पर। पैर तले दुख की पीढ़ी पर।’ इसका अर्थ है कि साईं बाबा की समाधि की सीढ़ी पर पैर रखते ही भक्त के दुख दूर हो जाएंगे।
‘त्याग शरीर चला जाऊंगा। भक्त हेतु दौड़ा आऊंगा।’ इसका अर्थ है कि साईं बाबा भले वर्तमान में शरीर के रूप में मौजूद नहीं हैं लेकिन अगर कोई भक्त मुसीबत में है तो साईं उसकी मदद जूरूर करेंगे।
‘मन में रखना दृढ़ विश्वास। करे समाधि पूरी आसा।’ इसका अर्थ है कि साईं के न रहने पर हो सकता है भक्त का विश्वास कमजोर पड़ने लगे। वह अकेलापन और असहाय महसूस करने लगे। लेकिन भक्त को विश्वास रखना चाहिए कि समाधि के जरिए उनकी हर प्रार्थना पूरी होगी।
‘मुझे सदा जीवित ही जानो। अनुभव कर सत्य पहचानो।’ साईं कहते हैं कि शरीर नश्वर होता है लेकिन आत्मा अजर-अमर होती है। इसीलिए मैं भक्तों के बीच हमेशा जीवित रहूंगा। यह बात भक्ति और प्रेम से कोई भी भक्त अनुभव कर सकता है।
‘मेरी शरण आ खाली जाए। हो कोई तो मुझे बताए।’ यानि कि जो कोई भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से साईं की शरण में आया है। उसकी हर मनोकामना पूरी हुई है।
‘जैसा भाव रहा जिस मन का। वैसा रूप हुआ मेरे मन का।’ साईं कहते हैं कि जिस व्यक्ति के अंदर जैसा भाव होगा, मेरा रूप उसे वैसा ही नजर आएगा। वो जिस भाव से कामना करता है, उसी भाव से मैं उसकी कामना पूर्ण करता हूं।
‘भार तुम्हारा मुझ पर होगा। वचन न मेरा झूठा होगा।’ यानि जो भक्त साईं की शरण में एक बार आ गया उसके दायित्व, उसका जीवन सब साईं के हवाले है। चिंतन से मुक्त वो आजाद परिंदे की तरह विचरण कर सकता है।
‘आ साहयता लो भरपूर। जो मांगा वह नहीं दूर।’ साईं कहते हैं कि जो भक्त श्रद्धा भाव से मेरी सहायता मांगेगा उसकी सहायता मैं जरूर करूंगा। मैं उसे कभी निराश नहीं करूंगा।
‘मुझ में लीन वचन मन काया। उसका ऋण न कभी चुकाया।’ इसका अर्थ है कि जो भक्त मन, वचन और कर्म से साईं में लीन रहता है, साईं हमेशा उसके ऋणी रहते हैं। उस भक्त के जीवन की सारी जिम्मेदारी साईं की ही हो जाती है।
‘धन्य- धन्य व भक्त अनन्य। मेरी शरण तज जिसे न अन्य।’ साईं बाबा कहते हैं कि वो भक्त धन्य हैं जो अनन्य भाव से मेरी हर बात का पालन करते हैं, मेरी नजरिए को अपने जीवन में अपनाते हैं। जो अपनी परेशानी से घबरा का मृत्यु को नहीं बल्कि मुझे चुनते हैं ऐसे भक्तों के लिए अपार प्रेम हैं मुझमें।
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