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‘अक्टूबर’ रिव्यू : प्रेम से अलग हटकर एक नया रिश्ता गढ़ती है इसकी कहानी

‘अक्टूबर’ रिव्यू : प्रेम से अलग हटकर एक नया रिश्ता गढ़ती है इसकी कहानी

प्रयोग के दौर में बॉलीवुड में कंटेंट बेस्ड फिल्मों पर जोर दिया जा रहा है। बहुत तड़क-भड़क या बड़ी स्टार कास्ट से लैस फिल्में न बनाकर आजकल लो बजट की साधारण फिल्में बनाई जा रही हैं। फिल्म ‘अक्टूबर’ डैन और शिवली की कहानी है, दो ऐसे युवा जिनके बीच न दोस्ती है और न ही प्रेम।

फिल्म : ‘अक्टूबर’

कलाकार : वरुण धवन, बंदिता संधू, गीतांजलि राव आदि

निर्देशक : शूजित सरकार

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वन लाइन रिव्यू : बॉलीवुड की रेगुलर मसाला फिल्मों से हटकर बिग स्क्रीन पर कुछ गंभीर देखना चाहते हैं तो यह फिल्म ज़रूर देखें।

रिव्यू : आवारगी से शुरू हुआ सफर

फिल्म अक्टूबर की शुरूआत दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल से होती है, जहां डैन यानि दानिश (वरुण धवन), शिवली (बंदिता संधू) और मंजीत जैसे कई युवाओं की ट्रेनिंग चल रही होती है। अपने साथियों से इतर डैन का किरदार काफी मस्तमौला दिखाया गया है। अपने लापरवाह रवैये के चलते उसे बार-बार होटल से निकाले जाने की धमकी भी दी जाती है। अपना रेस्तरां खोलने का सपना देखने वाले डैन की सामान्य ज़िंदगी में एक दुर्घटना के बाद बदलाव आ जाता है। दोस्तों के साथ न्यू ईयर पार्टी का जश्न मनाते वक्त शिवली होटल की तीसरी मंजिल से गिरकर गंभीर रूप से घायल हो जाती है। डैन उस समय उन लोगों के साथ नहीं होता है और अगले दिन जब वह हॉस्पिटल जाता है तो शिवली की हालत देखकर विचलित हो जाता है।

अक्टूबर रिव्यू : यह कैसी दोस्ती… या है प्यार?

शिवली कोमा में चली जाती है और डैन दिन-रात हॉस्पिटल के चक्कर लगाकर उसके ठीक होने की उम्मीद करता है। अपने दोस्तों से उसे पता चलता है कि इस दुर्घटना से पहले शिवली उसी के बारे में पूछ रही थी। वह बार-बार सबसे पूछता है कि आखिर शिवली उसके बारे में क्यों जानना चाह रही थी। फिल्म के कई दृश्यों में ऐसा लगता है कि डैन शायद सिर्फ यही जानने के लिए शिवली के करीब रहना चाहता था। दुर्घटना से पहले वरुण धवन व बंदिता संधू के किरदारों के बीच दोस्ती या प्यार-मोहब्बत जैसा कुछ भी नहीं दिखाया गया है। यहां तक कि दुर्घटना के बाद भी ऐसी कोई भावना नहीं दिखाई गई है, जिससे लगे कि दोनों में से कोई भी दूसरे से प्रेम करता है। डैन की शिवली से ज्यादा बेहतर दोस्ती उसके अन्य दोस्तों के साथ नजर आती है, जो कि इस दौरान डैन की आर्थिक मदद करने के साथ ही उसकी शिफ्ट भी पूरी करते हैं।

नजर आए ये एहसास

शिवली के कोमा में होने पर उसका कोई भी सेंस काम नहीं कर रहा होता है। डैन को याद आता है कि शिवली को हरसिंगार के फूल इकट्ठा करने का शौक था, वह उन फूलों को उसके बेड के पास रख देता है, जिनकी खुशबू से शिवली प्रतिक्रिया देने लगती है। शिवली की मां की भूमिका में गीतांजलि राव ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। बीच में शिवली की मां के कहने पर डैन हॉस्पिटल छोड़कर जॉब करने चला जाता है। फिर उसे मालूम पड़ता है कि उसके जाते ही शिवली की हालत बिगड़ने लगी थी तो वह लौट आता है। इन दो सीन को देखकर लगता है कि जैसे डैन और शिवली के बीच रिश्ते की हल्की सी डोर थी, जिसे शब्दों में पिरो कर उस रिश्ते को नाम देना बेमानी हो जाता। फिल्म में बंदिता संधू को कुछ डायलॉग दिए जाते तो शायद ज्यादा मजा आता। थोड़ी बड़ी भूमिका मिलने पर बंदिता संधू अपने अभिनय को बेहतर साबित कर सकेंगी।

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कुछ अधूरापन भी महसूस हुआ

‘विकी डोनर’, ‘पिंक’ व ‘पीकू’ जैसी फिल्में बनाने वाले शूजित सरकार अपनी हर फिल्म में दर्शकों के लिए रेगुलर बॉलीवुड मसाले से हटकर कुछ नया परोसते हैं। फिल्म ‘अक्टूबर’ में भी उन्होंने प्यार को नया आयाम देने की कोशिश की है। इंटरवल से पहले तक फिल्म काफी धीमी रफ्तार से चलती रही, वरुण धवन के कुछ डायलॉग पल भर के लिए दर्शकों को हंसा ज़रूर देंगे पर वे डायलॉग ऐसे नहीं हैं, जिन पर सिनेमा हॉल से बाहर निकलकर भी चर्चा की जाए। यह फिल्म कुछ सवाल भी छोड़ जाती है – शिवली ने दुर्घटना के पहले या बाद में कभी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया, जिससे लगे कि वह डैन में रुचि रखती है फिर आखिर न्यू ईयर पार्टी में उसने डैन के बारे में क्यों पूछा। मान लेते हैं कि एक को-वर्कर होने के नाते पूछ लिया होगा पर फिर पूरी फिल्म में कहीं भी यह क्यों नहीं दिखाया कि आखिर डैन उस रात वास्तव में था कहां! उसके सारे दोस्त यहीं थे और फिल्म में उसकी मां का भी एक दृश्य है, जिसमें वह डैन के 10 महीने से घर न आने की बात से नाराज हैं, यानि वह घर पर भी नहीं था।

 

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग अच्छी है। हरसिंगार की खुशबू की तरह ही इस फिल्म के रंग भी बेहद खूबसूरत हैं। हालांकि, ‘अक्टूबर’ फिल्म को देखने से पहले दिमाग से वरुण धवन की डांस और रोमांस वाली इमेज को भूलना होगा। मेरी सलाह है कि फिल्म को एंटरटेनमेंट के तौर पर देखने न जाएं।

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