अक्सर प्यार तलाशने वालों को जीत नहीं मिलती लेकिन कई बार भूले- भटकों को भी मंजिल मिल जाती है। इस बार ‘मेरा पहला प्यार’ सीरीज में हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही लव स्टोरी के बारे में, जिसकी मोहब्बत की कलम में स्याही नहीं थी लेकिन फिर भी उसने प्यार की एक खूबसूरत दास्तां लिख दी। पढ़िए सुमेधा के पहले प्यार की कहानी, उसी की जुबानी..
हर लड़की को अपनी शादी का बेसब्री से इंतजार होता है, क्योंकि उस दिन उसका राजकुमार सपनों की दुनिया से निकलकर हकीकत में उसे अपने साथ ले जाता है, हमेशा-हमेशा के लिए। लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। बचपन से सांवले रंग की वजह से मुझे हर समय खरी-खोटी सुननी पड़ती थी। मां भी मुझे मनहूस कह कर बुलाती थी। वो हमेशा रुचि दीदी को प्यार करतीं, क्योंकि वो बहुत सुंदर थी। आए-दिन उनके लिए रिश्ते आया करते थे। मेरी उम्र उस समय 24 और दीदी की 26 थी।
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एक दिन शर्मा अकंल दीदी के लिए एक बहुत बड़े घर से रिश्ता लेकर आए। लड़का सरकारी अफसर था और उनकी कोई मांग भी नहीं थी। बस उन्हें एक सुंदर- सुशील लड़की चाहिए थी। तीन दिन बाद वो लोग हमारे घर आए दीदी को देखने। मैं भी उनसे मिलने के लिए तैयार हो रही थी कि पापा ने मना कर दिया कि तुम उनके सामने नहीं जाओगी। मैं जानती ही थी कि कोई नहीं चाहता कि इस शुभ घड़ी में मुझ मनहूस को शामिल किया जाए, इसलिए मैं वहां से चली गई। दीदी को वो लड़का बहुत पसंद आया और उन्हें हमारी दीदी। शादी 1 महीने ही बाद थी क्योंकि लड़के की पोस्टिंग भोपाल में होने वाली थी। इसीलिए उन्हें जल्दी ही शादी करनी थी।
घर में चहल-पहल बढ़ गई। मां और पापा दोनों शादी की तैयारियों में बिजी हो गए । पापा ने 5 लाख का कर्जा लिया था, ताकि उनकी प्यारी बिटिया की शादी में कोई कसर बाकी न रह जाए। मैं भी बहुत खुश थी। एक दिन हम सब आंगन में बैठे थे कि देखा, अचानक दीदी को खून की उल्टियां शुरू हो गईं और उनकी हालत अचानक बहुत बिगड़ गई। हम सब बहुत घबरा गए थे। शादी को बस 20 दिन ही बाकी थे। दीदी को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने बताया कि अब वो बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। ये सुनकर हमारे पैरों तले की जमीन खिसक गई। मां-पापा पूरी तरह से टूट चुके थे और मैं उस दिन खुद की मनहूसियत को कोस रही थी।
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अस्पताल से 3- 4 दिन बाद दीदी को छुट्टी मिल गई और वो घर आ गई। उसने आते ही सबसे पहले अपने मंगेतर को फोन किया और सब कुछ साफ- साफ बता दिया। वो लोग अगली ही सुबह हमारे घर पहुंच गए। मैं उस दिन घर पर नहीं थी, दीदी की दवाइयां लेने शहर गई थी। शाम को जब मैं घर पहुंची तो मां ने मुझे देखते ही गले लगा लिया। सब मुझे देखकर बहुत खुश हो रहे थे। ये बात मुझे हजम नहीं हो रही थी। तभी दीदी ने मुझे बताया कि शादी तो 21 अप्रैल को ही होगी लेकिन उनकी नहीं मेरी। उनकी आखिरी इच्छा थी कि वो मुझे दुल्हन बनते हुए देखें। लड़के वाले भी मेरे लिए मान गए थे। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरी शादी तय हो गई है।
देखते ही देखते वो दिन भी आ गया और शादी भी हो गई। विदाई के समय मां- पापा को देखकर मुझे लगा कि चलो मैं किसी के तो काम आई। दीदी मुझे देखे जा रही थी। उनके आंसू थम ही नहीं रहे थे। ईश्वर ने भी क्या खूब खेला था हमारे साथ। पसंद किसी और की और शादी किसी और से। अशोक .. हां उनका नाम अशोक था। मैंने तो अब तक उन्हें सही से देखा भी न था और शायद न उन्होंने मुझे। खैर, हम वहां से कुछ ही देर में रवाना हो गए।
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ससुराल पहुंची तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब मेरे स्वागत के लिए खड़े हैं। सभी रस्मों को पूरा करने के बाद भरा- पूरा घर धीरे- धीरे खाली हो गया। उस घर में सिर्फ दो ही लोग रहते थे। अशोक और उनकी मां।….. जब मैं अपने कमरे में पहुंची तो देखा अशोक पहले से ही बेड पर लेटे थे। मुझे बहुत घबराहट हो रही थी। मैं जैसे ही कमरे के अंदर पहुंची तो वो जाग गए और उठकर खड़े हो गए। तब पहली बार शायद हम एक-दूसरे को इतने नजदीक से आमने-सामने देख रहे थे।
अशोक दिखने में एकदम गोविंदा जैसे थे, लेकिन मैं अपने सांवले रंग की वजह से उनसे नजरें नहीं मिला पा रही थी। तभी अचानक वो मेरे पास आए और उन्होंने बोला कि घबराओ नहीं, मैं तुम्हें खा नहीं जाऊंगा। माना कि हमारी शादी जल्दबाजी में हो गई, लेकिन प्यार भी धीरे-धीरे हो ही जाएगा। पहले हम एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बनेंगे, फिर अच्छे प्रेमी और उसके बाद जीवनसाथी। सुनकर मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये हकीकत है। प्यार शब्द आज मैंने पहली बार किसी से अपने लिए सुना था।
कई दिन, हफ्ते, महीने बीत गए मुझे अशोक के साथ। हमारी दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। हम एक-दूसरे के करीब आने लगे। तब मुझे पता चला कि जरूरी नहीं है कि प्यार शादी से पहले ही हो। शादी के बाद भी आपको प्यार हो सकता है।
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