धर्म ग्रंथों के अनुसार सभी देवताओं में हनुमान जी एक ऐसे देवता है जो इस पृथ्वी पर सशरीर मौजूद हैं। कहा जाता है कि वो सतयुग में भी थे ,रामायण काल, महाभारत काल में भी थे और वो कलियुग में भी जीवित हैं। कोई उन्हें पवनसुत, कोई मंगलमूर्ति तो कोई संकटमोचन कहकर पुकारता है। उनके नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तों के सारे संकट दूर हो जाते हैं। यहां हम आपको भगवान हनुमान से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें बता रहे हैं जिनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं और जानते भी हैं तो आधा-अधूरा।
हनुमान जी सभी महिलाओं को माता के समान मानते थे। उन्हें किसी भी स्त्री का अपने आगे झुकना नहीं भाता है क्योंकि वह स्वयं स्त्री जाति को नमन करते हैं। और दूसरी तरफ वह ब्रह्मचारी थे, इस कारण भी उनकी पूजा में कई ऐसे कार्य है जिन्हें महिलाएं नहीं कर सकती।
हनुमान जी की पूजा-अर्चना सिंदूर के बिना अधूरी मानी जाती है। इसके पीछे एक कथा है। रामायण के अनुसार हनुमान जी ने सीता जी के मांग में सिंदूर लगा देखकर पूछा- माता! आपने यह लाल द्रव्य माथे पर क्यों लगाया है? सीता जी ने बताया कि इसके लगाने से मेरे स्वामी की आयु लंबी होती है? ये सुनकर हनुमान जी ने सोचा जब उंगली भर सिंदूर लगाने से आयु लंबी होती है तो फिर क्यों न सारे शरीर पर इसे पोतकर अपने स्वामी को अजर-अमर कर दूं। हनुमान जी ने वैसा ही किया। कहते हैं उस दिन से हनुमान जी को स्वामी-भक्ति के स्मरण में उनके शरीर पर सिंदूर चढ़ाया जाने लगा।
शास्त्रों व लोकमान्यताओं के अनुसार हनुमान जी के तीन विवाह हुए थे। शास्त्र पाराशर संहिता के अनुसार सूर्यदेव से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने हेतु हनुमान जी का पहला विवाह सूर्यपुत्री सुर्वचला से हुआ था। शास्त्र पउम चरित के अनुसार वरुण ने अपनी पुत्री सत्यवती का तथा रावण ने अपनी दुहिता अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान जी से कर दिया। लेकिन तीन विवाह होने के बाद भी हनुमान सदैव ब्रह्मचारी ही रहे।
लोकमान्यताओं के अनुसार उस समय हनुमान जी सीता की खोज में लंका पहुंचे। जब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी थी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे। उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जिसका नाम पड़ा मकरध्वज।
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