स्त्री, यह शब्द पढ़ने और बोलने में जितना आसान है, महसूस करने में उतना ही मुश्किल है। क्यूंकि स्त्री होना इतना भी आसान नहीं है जितना औरों को लगता है। ये तो वो अनसुलझी पहेली है जो बरसों से अपनी पहचान ढूढ़ने में लगी है। ये वो शक्ति है जो पुरुषों को जन्म देने के बाद भी ज़िन्दगी भर उन्हीं के नाम से जानी जाती रही है। कभी अपने पिता के नाम से तो कभी अपने पति और बेटे के नाम से।
मगर अब समय बदल चुका है। अब हर दूसरी लड़की बड़े होने पर सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर आने वाले राजकुमार के सपने नहीं देखती बल्कि अपने करियर को एक बेहतर दिशा में ले जाने के सपने देखती है। वो इतनी सक्षम होती है कि अपना नाम खुद बना सके और खुद अपनी पहचान कायम रख सके।
हर साल 8 मार्च को कहीं बस का किराया माफ़ करके तो कहीं सिनेमा हॉल के टिकट आधे करके लोग अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते आएं है. मगर क्या सिर्फ यही तरीका है महिला सशक्तिकरण का। आज भी कई जगह पर ऐसा देखा जाता है कि जो लड़की शादी से पहले अपने पिता द्वारा मिले नाम और सरनेम से दुनिया में अपनी जगह बना चुकी होती है, वो शादी होते ही पति के सरनेम के साथ एक बार फिर लग जाती है अपनी नई पहचान तलाशने में। जबकि पुरुषों को ऐसा कुछ नहीं करना होता।
वो नाम जो उसे बर्थ सर्टिफिकेट में मिला, जिससे स्कूल में एडमिशन मिला, वो नाम जिससे उसने अपना कॉलेज पूरा किया, वो नाम जो आधार कार्ड से लेकर पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस तक में है। वही नाम या सरनेम शादी के बाद बदल जाता है।
आज शादी होते ही फेसबुक पर अपने नाम के आगे अपने हसबेंड का नाम जोड़ लेना तो जैसा एक ट्रेंड सा बन गया है। कुछ महिलाओं को ऐसा करके ख़ुशी मिलती है तो कुछ पर दबाव बना कर उनका नाम बदलवा दिया जाता है। पर इस भीड़ में अभी भी ऐसी बहुत सी नौकरीपेशा महिलाएं है जो शादी के बाद अपना नाम बदलने के पक्ष में नहीं होती। वे न तो फेसबुक और ना ही अपने डाक्यूमेंट्स में अपना नाम बदलती है। क्यूंकि वो खुद अपने नाम से अपनी पहचान बनाना चाहती है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हमने कुछ महिलाओं से इस टॉपिक पर बात की। हमने उनसे पूछा कि शादी के बाद उनका नाम बदले जाने पर उन्हें कैसा महसूस होता है? क्या ऐसा करना उन्हें खुद पसंद होता है ? या फिर समाज और पुरानी सोच उन्हें ऐसा करने पर मजबूर कर देतीं हैं ? आइये जानते है उनकी राय।
भोपाल की आकृति शर्मा एक फैशन डिज़ाइनर हैं। आज इनका अपना एक बुटीक है. आकृति के पुराने कस्टमर इन्हें इसी नाम से जानते हैं। यहाँ तक कि शादी के बाद भी आकृति ने अपना नाम नहीं बदला. वो हमें बताती हैं कि, “मैंने शादी के कुछ ही साल पहले अपना बुटीक खोला था। लोग मुझे आकृति शर्मा के नाम से ही जानते थे और मैं चाहती थी, मेरी शादी के बाद भी वो मुझे इसी नाम से जाने न कि किसी और नाम से। मेरे इस फैसले में मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया। वे खुद मेरी अपनी एक इंडिविजुअल पहचान बनते देखना चाहते हैं। वो बहुत खुश होते हैं जब कोई उनसे मेरे डिजाइंस की तारीफ करता है।”
वहीं दूसरी ओर फेसबुक पर नाम के आगे अपने हसबेंड का नाम जोड़ने वाली पंजाब की पायल राघव चोपड़ा को उनका ये नया नाम बहुत ही पसंद हैं। वो इस बारे में कहती हैं कि, “शादी के बाद अपना नाम बदलने पर एक बहुत अच्छी फीलिंग आई थी। मेरा नाम उसके साथ जुड़ गया था जो अब मेरी ज़िन्दगी में भी जुड़ चुका था। लोग हमारे नाम को एक साथ पढ़ते हैं तो बहुत खुश होते हैं। अपने नाम के आगे राघव का नाम जोड़ने पर मुझे ऐसा लगा जैसे हमारी तरह हमारे नाम भी दो से एक हो गए।”
मगर इस कहानी का एक पहलू और भी है। कानपुर की मेघना त्रिपाठी की शादी को 15 साल हो चुके है। उन्हें अपना नाम बदलकर अदिति चतुर्वेदी सिर्फ इसीलिए करना पड़ा क्यूंकि उनके हसबेंड को वो नाम नहीं पसंद था। मेघना बताती हैं, “मुझे अपने नाम से बहुत प्यार था इसीलिए जब मेरा नाम बदल दिया गया तो ये बात मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आई थी। यहां तक कि ससुराल की तरफ से छपे शादी के कार्ड में भी मेरा नाम अदिति ही लिखा हुआ था, जिसे मैंने शादी के बाद ही देखा लेकिन नई-नई शादी की वजह से मैं शांत रही। आज सोचती हूँ, अगर उस समय आवाज़ उठा दी होती तो आज मैं इस दोहरी पहचान से नहीं गुज़र नहीं होती।”
वहीं दिल्ली की अनुषा जैन को तो शादी के बाद सिर्फ फेसबुक पर ही नहीं बल्कि अपने सारे डाक्यूमेंट्स में भी सरनेम चेंज करना पड़ा। उस समय को याद करते हुए अनुषा बताती हैं, “मेरी शादी 8 साल पहले हुई थी। उस समय पासपोर्ट में हसबेंड का ही सरनेम ज़रूरी हुआ करता था। इसीलिए मुझे अपने पुराने सरनेम ‘कंसल’ को बदल कर जैन करना पड़ा। आज मेरे पासपोर्ट के साथ मेरे सभी डाक्यूमेंट्स में भी जैन सरनेम ही लिखा हुआ है। फेसबुक पर ज़रूर मैंने शादी के शुरूआती खुमार के चलते अपना नाम अनुषा मयंक जैन लिख दिया था और अब सोचती हूँ, कौन चेंज करे। जो चल रहा है उसे ही चलने देते है।”
इनके जैसी बहुत सी महिलाएं है जो शादी के बाद अपने नाम और पहचान की तलाश में उलझी हुई हैं। आपका नाम आपके व्यक्तित्व में एक बहुत ही अहम् भूमिका निभाता है। स्त्री होना अपने आप में गर्व की बात है। और जब एक स्त्री खुद ही अपने नाम के साथ अपनी पहचान बनने में सक्षम है तो भला क्यों हो उसकी पहचान किसी और के नाम की मोहताज।
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