स्वरा भास्कर ने फिल्म ‘पद्मावत’ देखकर फिल्म के डायरेक्टर-प्रोड्यूसर संजय लीला भंसाली के नाम एक ओपन लेटर लिखा है। इसमें उन्होंने फिल्म में दिखाए गए कुछ दृश्यों पर गहरी आपत्ति दर्शाई है। मैं स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) द्वारा उठाई गई हर बात का विरोध तो नहीं कर रही पर हां, कुछ बातों के लिए मैं उनसे असहमत हूं।
डियर स्वरा भास्कर,
फिल्म ‘पद्मावत’ (Padmavat) को लेकर लगातार चल रहे विरोध के बावजूद आपने यह फिल्म देखी, उसके लिए आप तारीफ की हकदार हैं। हमारे देश में हर नागरिक को अपनी बात कहने व विचार प्रकट करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है इसलिए हम सभी ने आपके पत्र को ध्यान से पढ़ा और उस पर आपस में काफी चर्चा भी की। देखा जाए तो आपकी बात पूरी तरह से गलत नहीं है पर इसका यह मतलब नहीं है कि आपको बिल्कुल सही ठहरा दिया जाए।
सबसे पहले तो आपकी उन बातों के बारे में बताना चाहूंगी, जिनसे मैं सहमत हूं। मैं ही क्या, शायद देश का हर ज़िम्मेदार नागरिक उन बातों के साथ इत्तेफाक रखता होगा। आपने कहा कि रेप जैसी दुर्घटना का शिकार होने के बावजूद महिलाओं को जीने का अधिकार है - सहमत। अपने पति/प्रोटेक्टर/ओनर की मृत्यु होने के बावजूद महिलाओं को जीने का अधिकार है - सहमत। हर बात को किनारे रखते हुए महिलाओं को जीने का अधिकार है - पूर्णत:सहमत। महिलाओं की ही बात क्यों करें, हर व्यक्ति को जीने का पूरा अधिकार है। आपकी इन बातों से हर लड़की बिल्कुल सहमत होगी पर बॉलीवुड की एक फिल्म को देखकर आपको ऐसा क्यों लगा कि ‘महिलाएं सिर्फ वॉकिंग टॉकिंग वजाइना हैं’? आपकी बात से मैं सहमत हूं कि महिलाओं को सिर्फ उनके शरीर के उस एक अंग से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। फिल्म ‘पद्मावत’ तो रानी पद्मावती के शौर्य, सौंदर्य और बुद्धिमत्ता की महागाथा है। इस फिल्म में ऐसा तो कहीं भी नहीं है कि किसी भी लड़की को महसूस हो कि अब उसका कद सिर्फ वजाइना तक ही सीमित हो गया है।
हम दर्शक एक फिल्म को सिर्फ फिल्म या मनोरंजन के तौर पर क्यों नहीं देख सकते? आपने फिल्म की सिनेमैटोग्राफी की काफी तारीफ की, यह अच्छी बात है। अकसर ऐसी विवादास्पद फिल्मों के क्रेडिट्स में एक डिसक्लेमर दिया जाता है। फिल्म ‘पद्मावत’ की शुरूआत भी उसी के साथ हुई। भंसाली या फिल्म से जुड़ा कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर ऐसा कहीं भी नहीं कह रहा कि आपको फिल्म में दिखाए गए हर दृश्य को हकीकत मानना होगा। यह संजय लीला भंसाली की फिल्म है, जिसमें टिपिकल भंसाली वाले सभी एलीमेंट्स प्रमुखता से शामिल हैं : भव्य सेट, गजब सिनेमैटोग्राफी, दमदार अभिनय आदि। फिल्म ‘पद्मावत’ में बाकी फिल्मों से कुछ अलग भी है - इसका 3डी आईमैक्स में बनना। इस तकनीकी एडवांसमेंट से फिल्म में लड़ाई के दृश्य बड़े अलग से बन पड़े हैं। हालांकि मैं जौहर को गलत मानती हूं पर फिल्म देखते वक्त मैं यह क्यों भूल जाऊं कि ‘पद्मावत’ आज की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें 13 वीं सदी के दौर की बात की गई है। दर्शक आज भी भंसाली की फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में ऐश्वर्या राय की खूबसूरती का ज़िक्र करते हैं। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण भी अपनी दूसरी फिल्मों की अपेक्षा कहीं ज्यादा खूबसूरत लगी हैं।
रणवीर सिंह ने भी खिलजी के किरदार में ढलने के लिए अपने मस्तमौला व्यक्तित्व को कुछ समय के लिए भुला ही दिया।
रावल रतन सिंह के तौर पर शाहिद कपूर की भी यह पहली पीरियड ड्रामा फिल्म है। इन तमाम उल्लेखों के बीच जिम सर्भ को कैसे भूल सकते हैं! मलिक काफूर ही तो वह व्यक्ति था, जो खिलजी के हर कुकर्म में उसका साथ देता था। एक समलैंगिक व्यक्ति के किरदार में जान फूंकने में वह सक्षम रहा। बिना ज़्यादा दिखाए ही संजय लीला भंसाली खिलजी और काफूर के बीच के दोहरे रिश्ते को बड़ी आसानी से दर्शकों के सामने ले आए। अगर जौहर के सीन को छोड़कर दूसरी बातों पर विचार किया जाए तो फिल्म ‘पद्मावत’ में दीपिका पादुकोण के किरदार को काफी निडर और बुद्धिमान भी दिखाया गया है। अगर जौहर के लिए उन्होंने रावल रतन सिंह से इजाजत मांगी थी तो राज्य के कल्याण के लिए उन्होंने खुद अहम फैसले भी लिए थे।
फिल्म की तारीफ कर मैं यह नहीं दर्शाना चाहती हूं कि मैं उसमें दिखाई गई हर चीज़ के साथ सहमत हूं। मगर थिएटर में एंट्री लेने से पहले भी मुझे पता था कि मैं बॉलीवुड का एक पीरियड ड्रामा देखने जा रही हूं और लगभग तीन घंटे बाद वहां से निकलने के बाद भी मुझे फिल्म देखने का अपना मकसद याद था। मैं भी महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ हूं। रेप व ऑनर किलिंग जैसी दुर्घटनाएं मुझे अंदर तक तोड़ देती हैं। अखबार ऐसी ही खबरों से भरा रहता है, सच कहूं तो अब अखबार के पन्ने पलटने या न्यूज़ वेबसाइट देखने की खास इच्छा नहीं होती है। फिल्म में जौहर का दृश्य देखकर मैं भी सहम गई थी, भावुक भी हो गई थी पर मुझे पता है कि मेरी ज़िंदगी से जुड़े किसी खास पुरुष को अगर कुछ हो जाता है तो मैं जौहर नहीं करूंगी। मैं आत्मनिर्भर हूं, मजबूत हूं, कुछ समय के लिए टूट सकती हूं पर इस तरह बिखरूंगी नहीं। मैं ऐसा कह रही हूं क्योंकि मैं आज में जी रही हूं, यानी कि 21 वीं सदी में। मुझे लगता है कि एक फिल्म का विरोध करने या उसमें दिखाए गए कुछ मुद्दों पर बहस करने के बजाय अगर हम वास्तविक जीवन में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ एकजुट हो जाएं तो समाज का ज़्यादा भला कर सकेंगे।
फिल्म ‘पद्मावत’ (Padmavat) के शो भारत से लेकर विदेशों तक हाउसफुल हैं। तमाम विरोधों के बीच संजय लीला भंसाली ‘पद्मावत’ को रिलीज़ करवाने में कामयाब रहे और अभी तक फिल्म अच्छा बिज़नेस भी कर रही है। बाकी, देश में हर कोई स्वतंत्र है, सब अपने विचार रख सकते हैं। अगर आप भी ‘पद्मावत’ देख चुके हों तो स्वरा भास्कर या संजय लीला भंसाली की एकतरफा बातों को परे रखकर अपने निजी विचार हमारे साथ ज़रूर बांटें।