अरेंज मैरिज यानि सुसंगत विवाह (Arranged marriage) का नाम सुनते ही ढेर सारे ताम-झाम और रस्मो-रिवाज दिमाग में आ जाते हैं...और ये ख्याल परेशान करने लगता है कि अचानक कैसे किसी एकदम अनजान इंसान के साथ हम अपनी पूरी जिंदगी बिता सकते हैं! लेकिन तमाम डर और संदेह के बावजूद अरेंज मैरिज हमारे देश के युवाओं की पहली पसंद बनती जा रही है। क्या ऐसा इसलिए है कि आज की युवा पीढ़ी इसमें ज्यादा सुकून और संतुष्टि महसूस करती है या कुछ और ! खैर, हमारे मम्मी-पापा और हमारे मम्मी-पापा के मम्मी पापा सदियों से अरेंज मैरिज पर ही भरोसा करते आए हैं। तो दादी- मामी- चाची, बुआ और दूसरे रिश्तेदारों की ओर से बताए जा रहे मैरिज प्रपोजल्स पर आप क्यों गौर कर सकती हैं जानिए हमसे
अरेंज मैरिज करने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि आप पुराने जमाने के ख्यालात के हैं। अरेंज मैरिज के बारे में जानने से पहले ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर शादी क्या है? तो आपको बता दें कि शादी का मतलब होता कि आपको एक ऐसा जीवनसाथी मिले, जो पूरी जिंदगी आपके साथ रहे, आपके दुख- सुख का साथी हो और आपको अपनी पलकों पर बैठाकर रखे। आप उसके साथ अपना फ्यूचर प्लान कर सकें। और ये सभी चीजें आपको तभी मिल सकती है जब कोई मिस्टर या मिस परफेक्ट आपका जीवनसाथी बने। लेकिन सिर्फ जीवनसाथी बेहतर होने से भी काम नहीं चलता है। क्योंकि शादी सिर्फ दो इंसानों के बीच नहीं, बल्कि दो परिवारों के बीच होती है। अरेंज मैरिज का मतलब होता है आपसी सहमति से होने वाला विवाह। जिसमें, वर- वधू, समाज और दोनों पक्ष के परिवार वालों की रजामंदी शामिल होती है। इस विवाह में माता- पिता लड़की के लिए एक ऐसा लड़का और लड़के के लिए एक ऐसी लड़की ढूंढते हैं, जो उनके धर्म, जाति की हो और जिसका आचरण, परवरिश, लाइफस्टाइल, आर्थिक स्थिति, सोच, कल्चर उनके ही जैसा हो। दरअसल, इसका ये फायदा होता है कि इससे किसी भी तरह की सामाजिक असमानता की आशंका कम होती है और घर- परिवार के कल्चर में समानता के चलते, आपसी सामंजस्य बनाना आसान होता है और इसीलिए ऐसे विवाह को सामाजिक तौर पर उपयुक्त समझा जाता है।
भारतीय इतिहास में भी सुसंगत विवाह को एक खास स्थान दिया गया है। पहले के जमाने में इसे स्वयंवर कहा जाता था। जहां लड़की की इच्छा के अनुसार शादी के लिए इच्छुक लड़कों के बीच एक प्रतियोगिता रखी जाती थी, जो भी इसमें विजयी होता था वहीं सुयोग्य वर बनता था। इसी पंरपरा के तहत श्रीराम और सीता का विवाह हुआ था। इसके बाद धीरे- धीरे समाज में बदलाव आते गये और विवाह की रीतियां भी बदलती गईं। अब कुंडली के मिलान के बाद लड़के और लड़की के घरवाले आपसी सहमति से रिश्ता तय कर देते हैं और आखिरी और सबसे अहम फैसला भावी वर- वधू के हिस्से में चला जाता है। यदि सबकुछ सही रहता है तो शादी पक्की हो जाती है। जिसे समाज सुसंगत विवाह यानि कि अरेंज मैरिज का नाम देता है।
शादी करना या न करना बेशक किसी का पर्सनल मामला हो सकता है लेकिन यह लव मैरिज होगी या अरेंज, इस बात पर परिवार, समाज सभी की दखलअंदाजी होती ही है। यही कारण है कि अधिकतर लोगों के मन में ये सवाल जरूर आता होगा कि अरेंज मैरिज ज्यादा सही होती है या फिर लव मैरिज ? ऐसे में किसी एक तरह की शादी की तरफदारी करना सही नहीं होगा लेकिन फिर भी सामने आई रिसर्च और आंकड़ों की मानें तो लोग लव मैरिज के मुकाबले अरेंज मैरिज में ज्यादा सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। देखा जाये तो हर रिलेशनशिप की अपनी अलग खूबसूरती और आकर्षण होता है, फिर चाहे वो लव मैरिज हो या अरेंज मैरिज। क्योंकि रिश्तों की मजबूती आपसी समझदारी से ही बढ़ती है फिर चाहे आप अपने पार्टनर को शादी से पहले प्यार करते हों या शादी के बाद करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अरेंज मैरिज का आॅप्शन चुनने पर रिश्ते की नींव मजबूत करने और उसे उम्रभर निभाने की जिम्मेदारी केवल हमारे कंधों पर नहीं रह जाती। माता- पिता और परिवार की पूरी सहभागिता इस रिश्ते में होती है। ऐसे में सब मिलकर इसकी नींव मजबूत बनाते हैं। अपने पार्टनर के बारे में हर छोटी-बड़ी बात हमें उन लोगों से पता चलती है जो सास- ननद- देवरानी- जेठानी जैसे स्वीट रिश्तों से हमसे जुड़े होते हैं। इस प्यारी सी शेयरिंग से आपसी रिश्ते मजबूत होते हैं।
शादी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी रस्म की जानकारी हमें परिवार से मिलती है। दोनों ही परिवारों के सदस्य इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए तैयार होते हैं। हमें अपने होने वाले पार्टनर का पास्ट पता होता है, परिवार के जरिए! उनके बचपन की शरारतें और पसंद नापसंद सबकुछ। मतलब सात फेरे तो हमारे होंगे लेकिन उन्हें निभाने की जिम्मेदारी पूरा परिवार उठाता है।
यहां बात हो रही है कोर्टशिप पीरियड की। जाहिर तौर पर दोनों का ही परिवार जानता है कि होने वाले दुल्हा-दुल्हन के बीच बातें- मुलाकातें होती हैं पर कोई पूछता नहीं! रोकता नहीं और टोकता भी नहीं! यानी छिपकर मिलने का अपना मजा और पकड़े जाने पर कोई सजा नहीं !
भले ही यह रिश्ता पैरेंट्स ने जोड़ा हो, पर जिंदगी में उतार- चढ़ाव तो आते ही हैं ! लाइफ के इस मुश्किल फेज़ में पैरेंट्स और इन-लाॅज मजबूती के साथ हमारी दिक्कतों को सुलझाने के लिए तैयार रहते हैं। यानि अपनी किसी भी मुश्किल में आप अकेले नहीं होते।
इस बात में तो कोई शक नहीं कि लव मैरिज में हमारी एक्सपेक्टेशन कहीं ज्यादा होती हैं जबकि अरेंज मैरिज में हम लाइफस्टाइल में होने वाले बहुत से बदलावों को अपनाने के लिए शुरू से ही तैयार रहते हैं। एक-दूसरे की आदतों को अपनाने की कोशिश करते हैं। और यही व्यवहार प्यार की गहराई को बढ़ाता है।
जी हां, अरेंज मैरिज करने पर हमारी शादी एक इंसान से नहीं बल्कि परिवार से होती है क्योंकि हर फैमिली मेंबर की खुशी और दुख हमारे होते हैं। होने वाला दूल्हा, दुल्हन के परिवार के साथ समय बिताता है और दुल्हन अपने नए परिवार को समझने की कोशिश करती है। आखिर आने वाले दिनों में किसी भी घर की पूजा सत्संग और पार्टीज दोनों परिवारों की साझा जिम्मेदारी होगी।
अरेंज मैरिज यानी अपने घर जैसे रीति-रिवाज वाले नए परिवार में जाना। क्योंकि यह परिवार हमारे पैरेंटस की पसंद है तो जाहिर तौर पर दोनों परिवारों का कल्चर एक जैसा होगा। सोशल और कल्चरल फंक्शन एक जैसे होंगे। यह मोनोटाॅनी हमारे फ्यूचर के लिए टाॅनिक साबित हो सकती है ! मतलब भले ही हमारी लाइफस्टाइल बदलने वाली हो लेकिन कम से कम नए रीति-रिवाज सीखने की टेंशन तो नहीं रहेगा।
लड़कियों के लिए अरेंज मैरिज का एक फायदा ये भी है कि शादी की बातचीत के शुरुआती दिनों में ही ये तय हो जाता है कि फ्यूचर कैसा होगा। मतलब वर्किंग वुमन अक्सर इस कशमकश में रहती हैं कि पता नहीं ससुराल में जाॅब करने की आजादी होगी या नहीं ! पैरेंटस और होने वाले सास- ससुर इस मुद्दे पर पहले ही फैसला कर लेते हैं और हम अपनी आने वाली जिंदगी के रुटीन को लेकर मानसिक तौर पर तैयार होते हैं।
इंडियन फैमिली में अरेंज मैरिज करने वाले बच्चों को बहुत संस्कारी माना जाता है। पैरेंटस की लाडली के अरेंज मैरिज की हामी भरने से वो और भी खास लगने लगती है। सभी छोटी क़जिन के लिए बड़ी बेटी मिसाल बन जाती हैं और पैरेंटस का भरपूर प्यार उस पर बरसने लगता है। नतीजा मनचाही शाॅपिंग और ढेर से सरप्राइज। यानि शादी में होगा धमाल ही धमाल!
अरेंज मैरिज के बाद लड़के और लड़की दोनों के ही पैरेंटस अपने नाती-पोते की देखभाल के लिए हर समय तैयार रहते हैं। साथ ही बच्चों को पारिवारिक और संस्कारी माहौल मिलता है। हमें अपने निजी काम से जाना हो तो घरवाले खुशी से बच्चों की देखभाल के लिए तैयार हो जाते हैं। एक और बड़ा फायदा अगर ये चीजें अपने फेवर में न हों तो हम अपने पैरेंटस को तो कह ही सकते हैं!
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जैसे हर सिक्के दो पहलू होते हैं वैसे हर किसी रिवाज के कुछ फायदे और कुछ नुकसान भी होते हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अरेंज मैरिज करने के मुकाबले लव मैरिज करने में ज्यादा सहजता महसूस करते हैं। क्योंकि उन्हें अरेंज मैरिज में कई खामियां नजर आती हैं। आइए जानते हैं अरेंज मैरिज के साइड इफेक्ट यानि कि नुकसानों के बारे में -
कुछ लोगों का मानना है कि अरेंज मैरिज में मनचाहा साथी न मिल पाने के कारण बात तलाक तक जल्दी पहुंच सकती है।
एक- दूसरे को समझने का कम समय मिलता है। ऐसे में कई बार गलत जीवनसाथी मिल जाता है और जिंदगी जीते जी नर्क बन जाती है।
अरेंज मैरिज में कपल के बीच प्यार की कमी होती है। जिसके कारण आये दिन घर में लड़ाई- झगड़े शुरु होने लग जाते हैं।
महिलाओं का बहुत ज्यादा शोषण होता है और जीवनभर उन्हें हर चीज में समझौता करना पड़ता है।
कई बार सिर्फ दहेज के कारण ही लोग शादी कर लेते हैं। ऐसे में पार्टनर के प्रति जिंदगी भर मन में आदर व सम्मान का भाव नहीं पनप पाता है।
भारत में आज भी लव मैरिज को असंगत माना जाता है। दूसरी जाति और धर्म में शादी करने से परिवार वाले उतने खुश नहीं रहते हैं जितना वो अरेंज मैरिज में रहते हैं। वैसे आजकल ज्यादातर लोग लव मैरिज को अरेंज मैरिज बना देते हैं लेकिन फिर भी अगर इस रिश्ते के लिए परिवार तैयार न हो तो हमेशा परिवारवालों के मन में खटास बरकरार रहती है। यही कारण है कि यहां आज भी लोग लव मैरिज करने से डरते हैं। वहीं दूसरी तरफ प्यार में धोखा खा चुके लोग अरेंज मैरिज को ज्यादा सही समझते हैं। क्योंकि इसमें उन्हें सभी खुश और रजामंद नजर आते हैं।
यूनिसेफ की एक रिसर्च में ये तथ्य सामने आया कि भारत में 90 प्रतिशत लोग अरेंज मैरिज करते हैं और तलाक का रेट सिर्फ 1.1 प्रतिशत है। ये फैक्ट काफी है ये बताने के लिए कि भारत देश में अरेंज मैरिज कितनी सक्सेफुल है। क्योंकि यहां ज्यादातर लोग मानते हैं कि अरेंज मैरिज करने से न केवल पार्टनर खुश रहता है, बल्कि उसका पूरा परिवार और समाज भी खुश रहता है और जब हर कोई खुश रहता है तो ऐसी शादी सक्सेसफुल हो ही जाती है।
भारत में यूं तो 18 साल की लड़की और 21 साल के लड़के को कानूनी रूप से शादी करने का हक है, लेकिन आजकल हर कोई शादी से पहले अपनी जिंदगी को सेटल करना चाहता है, जिस वजह से कई बार शादी की सही उम्र निकल जाती है और बाद में पछताना पड़ता है।
शादी के लिए दोनों के बीच उम्र के फासले के पीछे भी फिजिकल, इमोशनल और फाइनेंशल कारण होते हैं। इसके अलावा ढलती उम्र के लक्षण पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में देर से नजर आते हैं। इसलिए कहा जाता है कि लड़कों के लिए शादी की सही उम्र 28 और लड़कियों की उम्र 25 होनी चाहिए। इस बारे में और ज्यादा जानने के लिए यहां क्लिक करें ....
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