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what is permanent makeup and know about its myths and facts, जानिए क्या है परमानेंट मेकअप? और इसके बारे में फैले मिथक और उनकी सच्चाई

एक्सपर्ट से जानिए क्या है परमानेंट मेकअप? और इसके बारे में फैले मिथक और उनकी सच्चाई

मेकअप करना लगभग हर लड़की को पसंद होता है। मेकअप करने से न सिर्फ खूबसूरती दो दुना हो जाती है बल्कि अपने अंदर से काॅन्फिडेंस भी आता है। यही वजह है कि हम लड़कियां मेकअप प्रोडक्ट्स पर न जाने कितने पैसे खर्च कर देती हैं। ऐसे में हम आपसे कहें कि मेकअप पर थोड़ा-थोड़ा खर्च करने से अच्छा है एक बार में खर्च करके परमानेंट मेकअप (Permanent Makeup) ही करवा लिया जाए तो आप क्या कहेंगी। जी हां, परमानेंट मेकअप भारत में एक नया चलन है, मगर इसके संबंध में कई मिथक भी फैले हुए हैं। क्या है परमानेंट मेकअप के बारे में फैले ये मिथक और इनके पीछे की सच्चाई जानिए परमानेंट मेकअप की एक्सपर्ट, टाइमलैस एस्थेटिक्स की प्रबंध निदेशक, संस्थापक एवं विशेषज्ञ डाक्टर शिखा बागी भंडारी से।

पहला मिथक- यह सिर्फ एक टैटू की तरह होता है?

सच्चाई- लोगों को भ्रम है कि यह एक पारंपरिक टैटू की तरह होता है। टैटू बनाने के लिए एक टैटू मशीन और स्याही की आवश्यकता पड़ती है । वहीं परमानेंट मेकअप में ऐसा कुछ नहीं है, इस प्रोसेस को करने के तरीके, इसके औजार और इसके उद्देश्य में काफी अंतर है। जहां पारंपरिक टैटू में स्याही का प्रयोग होता है वहीं परमानेंट मेकअप में कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों का मिश्रण पिगमेंट उपयोग किया जाता है, जिसे हमारी त्वचा की पहली परत के ठीक नीचे लगाया जाता है, वहीं  टैटू की स्याही त्वचा की गहराई में लगती है। जिस तरह टैटू के लिए टैटू मशीन की आवश्यकता होती है वहीं परमानेंट मेकअप के लिए माइक्रोपिगमेंटेशन मशीन का प्रयोग किया जाता है।

दूसरा मिथक- यह जीवनभर के लिए होता है।

सच्चाई- जीवनभर रहने वाले टैटू के विपरीत परमानेंट मेकअप की समय सीमा लगभग दो साल होती है। जहां टैटू नीले और हरे रंग जैसे हो जाने वाले धब्बे जैसा लगने लगता है, वहीं परमानेंट मेकअप बिल्कुल गायब हो जाते हैं क्योंकि इसमें टच-अप सेशंस का उपयोग किया गया है।

तीसरा मिथक- इसमें ब्लेड्स का उपयोग होता है।

सच्चाई- यह मिथक परमानेंट मेकअप की एक अन्य तकनीक माइक्रोब्लेडिंग के बारे में है लेकिन त्वचा पर पैने रेजर जैसे उपकरण का उपयोग करने की बात गलत है। माइक्रोब्लेडिंग के उपयोग के दौरान सुइयों का एक सेट एक विशेष कोष पर सेट किया जाता है। यह एक ब्लेड की तरह लगता है। इसका यह नाम बहुत पहले से उपयोग किया जा रहा है तो किसी ने इसे बदलने का कष्ट नहीं किया।

चौथा मिथक- यह एक प्रकार का मेकअप है।

सच्चाई- इसके औद्योगिक नाम परमानेंट मेकअप के साथ लोगों के मन में यह विचार आना तो स्वाभाविक है लेकिन आप इसकी तुलना कॉस्मेटिक सर्जरी से नहीं कर सकते, जो त्वचा पर ऐसे तत्व जोड़ने के लिए लगाया जाता है जो वहां नहीं होते, जैसे कि आई शैडो, चिकने होठ या गुलाबी गाल। परमानेंट मेकअप का उद्देश्य त्वचा के उस गुण को दोबारा उभारना है जो किसी कारण से दब गया है, या अभी तक विकसित नहीं हुआ है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है एलोपेसिया, जिसमें किसी व्यक्ति की भौहें पूरी तरह गिर जाती हैं। तो परमानेंट मेकअप बिना कोई अतिरिक्त वस्तु जोड़े या उन्हें कोई अप्राकृतिक आकार दिए मात्र भौहों का लुक दे देता है। इसी तरह होठों में, उन्हें चेहरे की त्वचा से कॉन्ट्रास्ट मैच कराने के लिए प्राकृतिक गुलाबी या हल्के चैरी रंग का उपयोग होता है। तो यह कई उपकरण या अलग से लगाई जाने वाली वस्तु नहीं है, यह सिर्फ वे गुण हैं, जो व्यक्ति में होने चाहिए।

पाचवां मिथक- ये सिर्फ महिलाओं के लिए हैं।

सच्चाई- यह एक बहुत बड़ी भ्रांति है और पूरी तरह गलत है। परमानेंट मेकअप में कुछ ट्रीटमेंट ऐसे भी हैं, जो पुरुषों के लिए अपेक्षाकृत बेहतर हैं, जैसे स्कैल्प माइक्रोपिगमेंटेशन, जो बाल घने रखता है और सर पर बाल और घने करता है। बिना हेयर ट्रांसप्लांट कराए, विग लगाए या विभिन्न स्प्रे किए, परमानेंट मेकअप ज्यादा प्राकृतिक लुक देते हैं। इसके अलावा, परमानेंट लिप कलर का ट्रीटमेंट ज्यादातर पुरुष ही लेते हैं, जिनके होंठ धूम्रपान करने की वजह से गहरे रंग के हो जाते हैं। इसके अलावा एलोपेसिया जैसे अन्य ट्रीटमेंट्स भी उपलब्ध हैं, जिसकी सहायता से भौहें आती हैं।

छठा मिथक- इसमें दर्द होता है।

सच्चाई- इसमें कुछ असुविधा जरूर होती है लेकिन इसमें दर्द बिल्कुल नहीं होता है। आधुनिक उपकरण और अत्याधुनिक तकनीकों के साथ-साथ प्रक्रिया से पहले लगाए जाने वाले वाले टोपिकल एजेंट्स की वजह से दर्द नहीं होता है। और हल्की असुविधा एक्सपर्ट की आंख आपके बहुत करीब होना और मशीन में वाइब्रेशन के कारण होती है।

सातवां मिथक- यह बहुत गहरे रंग का होता है।

सच्चाई- टैटू के विपरीत, पिगमेंट्स अपने तरीके से खिलता है। इसमें कई ट्रांजिशन पीरियड्स होते हैं, जिसमें रंग अपनी वास्तविक अवस्था में 30 दिन में आता है। इस बीच, रंग गहरा होगा, हल्का होगा और पपड़ी बनेगी और ये सब सामान्य हैं। साथ ही पहले सेशन में हमेशा ही बहुत ज्यादा परेशानी होती है, विशेषकर तब जब क्लाइंट बिल्कुल नया हो और इसके बारे में कोई अंदाजा या अनुभव ना हो कि यह कैसा होगा। इसमें चिंता की कोई बात नहीं है, विशेषकर 30 दिन के बाद उसे अंतिम रूप देने के लिए टच-अप सेशन होता है।

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24 Jun 2021

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