ज़िंदगी पल-पल बदलती रहती है, उसी बदलाव में कभी-कभी कुछ ऐसी चीज़ें हो जाती हैं, जिनकी हमने कभी उम्मीद नहीं की होती है! आप सोच रहे होंगे कि मैं अचानक से इतनी धीर-गंभीर बातें क्यों कर रही हूं? दरअसल, पिछले एक हफ्ते से पहले तक मैंने कभी भी बिग बॉस नहीं देखा था। इस शो को मैं अभी तक का सबसे बेकार रीयलिटी शो मानती थी। मैं उन लोगों के बारे में सोचती थी, जो हर साल लगातार तीन महीने तक अपने हर दिन का एक घंटा इस शो को देखने के लिए बर्बाद करते थे। मगर चीज़ें बदलीं और अब मैं इसकी आदी हो चुकी हूं। मैंने अपने काम के लिए बिग बॉस देखना शुरू किया था और अब मैं इसे देखने से खुद को रोक नहीं पा रही हूं।
हालांकि हर रात 10.30 से 11.30 बजे तक आप मुझे बिग बॉस के घर के इन लोगों की बेवकूफियों पर चिल्लाते या प्रतिक्रिया देते हुए देख सकते हैं मगर आज भी मैं यही कहूंगी कि यह शो बेहद बकवास है। जानें, क्यों।
रीयलिटी शोज़ हानिकारक ही होते हैं!
सबसे पहले तो हम सामान्य तौर पर रीयलिटी शोज़ की बात करेंगे। कुछ समय पहले आई एक रिसर्च में बताया गया था कि अगर किसी आक्रामक कंटेंट वाले रीयलिटी शो को लगभग 40 मिनट भी देख लिया तो वह आपको और अधिक आक्रामक बना सकता है। यहां मैं इतना यकीनन कह सकती हूं कि इस पीढ़ी को आक्रामक बनाने में सिर्फ यही शो ज़िम्मेदार नहीं है, मगर कई कारणों में से एक अहम कारण यह भी है; इसकी वजह है कि शो में दिखाए जा रहे लोगों के व्यवहार, लड़ाइयों और प्रतिक्रियाओं को हम ‘रियल’ यानी कि असली मानने लगते हैं।
कौन हैं शो में दिखने वाले ये लोग?
अब घर में रहने वाले लोगों के बारे में: बिग बॉस के घर में रहने वाले ज़्यादातर लोग ग्लैमर वर्ल्ड के ‘नोबडी’ होते हैं, मतलब उन्हें बाहर ज़्यादा लोग जानते नहीं हैं। ये वे लोग होते हैं, जो कोशिश करके हार चुके होते हैं या जिन्हें इमेज मेकओवर की खास ज़रूरत होती है या वे, जो ऐसा ड्रामा क्रिएट कर सकें, जिसे ऑडियंस यानी हम देखना पसंद करते हैं। मगर पिछले दो सीज़ंस से इसमें आम लोगों की भी एंट्री होने लगी है (जो मीडिया इंडस्ट्री के बाहर से हों)- ये वे लोग होते हैं, जो इस शो का इस्तेमाल 5 मिनट की प्रसिद्धि के लिए करते हैं या या बदनामी के लिए, मैं क्या बोलूं? आखिरकार कोई भी प्रचार बुरा प्रचार नहीं होता है।
ताक-झांक है ज़रूरी!
बात यह है कि, अपने घरों में सोफे पर बैठे हुए ही हमें लगता है कि हम मनोविज्ञान को समझने लगे हैं। हमें लगता है कि हमें जो लड़ाइयां, चुगलियां, दोस्ती, बहस या रिश्ते नज़र आ रहे हैं, वे सभी सच हैं और हम उन्हें ही आज के समाज का प्रतिबिंब मान बैठते हैं। मगर सच तो यही है कि हम इस शो को किसी भी अच्छी वजह से नहीं देखते हैं। हम उसे सिर्फ अपनी खुशी के लिए देखते हैं कि लोग कैसे एक-दूसरे का मज़ाक उड़ा रहे हैं और आपस में जानवरों की तरह लड़ रहे हैं।
हां, हमें अच्छा लगता है लोगों को अंधेरे में रोमैंस करते हुए देखना, एक-दूसरे की बेइज़्ज़ती करना, दो लोगों के बीच जानबूझकर लड़ाई करवाना… इससे हमें महसूस होता है कि हम इन ‘स्टार्स’ से बेहतर हैं। गौहर खान को रोते हुए देखना, कुशाल टंडन का चीज़ों को फेंकना या हिना खान का दूसरी स्त्रियों को कम आंकना.. इन सबसे हम अपने कभी-कभार के बुरे या आक्रामक व्यवहार को सही साबित करने लगते हैं। आखिर, अगर ये सभी प्रसिद्ध लोग राष्ट्रीय टेलीविज़न पर ऐसा कर सकते हैं तो हम अपने सीमित सामाजिक सर्कल में क्यों नहीं?
हम भगवान बनने लगते हैं…
मुझे लगता है कि यह शो हमारे अंदर गॉड कॉम्प्लेक्स का भी एक प्रकार विकसित कर रहा है। आप यह सोचिए, आप किसी प्रतिभागी को नापसंद करते हैं और उसे शो से बाहर कर दिया जाता है तो आपको अपने सही ठहराए जाने की बहुत खुशी होगी और आप दूसरे दर्शकों से कहेंगे, ‘मैंने इसके खिलाफ वोट किया था, वह इसी के लायक थी/था’। पर क्या यह गॉड कॉम्प्लेक्स का ही प्रकार नहीं है?
दूसरों को पीड़ित देखने से मिलती खुशी
शारीरिक और सेक्सुअल सैडिज़्म अब पुरानी बातें हो चुकी हैं। अब हमें उन चीज़ों से ज़्यादा खुशी मिलने लगी है, जिनसे दूसरे लोग मानसिक तौर पर प्रताड़ित हो रहे हों। अब हमें यह अच्छा लगता है कि लोग एक-दूसरे को दर्द दे रहे हों, हम उसी में अपनी खुशी ढूंढ लेते हैं। शिल्पा शिंदे ने विकास गुप्ता को परेशान कर रुला दिया था और दर्शक होने के नाते हमने विकास के दर्द में खुशी और मज़ा ढूंढ लिया था। शिल्पा और विकास तो एक उदाहरण मात्र हैं- पर यह शो अपने 11 वें सीज़न में है तो आप सोच ही सकते होंगे कि ऐसे कितने ही उदाहरण यहां बन चुके होंगे।
इस राष्ट्र के भाई – सलमान खान के बारे में तो मैं कुछ कहना ही नहीं चाहती, जो इस शो के जज, जूरी और एग्ज़ीक्यूशनर के तौर पर नज़र आ रहे हैं। इस बात के लिए तो अलग से एक बड़ा पोस्ट लिखने की ज़रूरत पड़ेगी। अभी के लिए मैं बस इतना कहना चाहूंगी कि यह शो टीवी का सबसे घटिया शो है, मनोरंजन के नाम पर इसमें कुछ भी परोसा जा रहा है और इसलिए इसको रोक देना चाहिए, आज ही।
अब मैं अपनी बात को यहीं खत्म करती हूं। धन्यवाद।
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